Tuesday, April 27, 2010

मुंह दिखाई की रस्म

दो दिन की भर्ती के बाद अस्पताल से विदाई ले कर हमने घर में कदम रखा ही था कि धमकाने वाले फोन आने शुरू हो गए। शाम तक कई रिश्तेदार बारी-बारी से हमे फटकार लगा चुके थे कि हमने इंश्योरेंस वालो को खबर करने की हिमाकत तो कर दी मगर उन्हें बताने की जरूरत तक नहीं समझी। हमने उन्हें आश्वस्त किया कि अगली दफे समय रहते ही शुभेच्छुओं की वर्ण-वार सूची तैयार रख छोडूंगा और अस्पताल में थोड़े लम्बे अरसे तक भर्ती रहूँगा ताकि किसी को भी शिकायत का मौका न मिल सके। ...आज मेरी हालत में काफी सुधार था, चाहता तो ड्यूटी पर जा सकता था किन्तु मैंने दो एक रोज़ छुट्टी और बढ़ा कर मरीज़ बने रहने का फैसला किया जिससे मुलाकाती जो हैं वे निराश न हों और अपनी सुविधानुसार दर्शन लाभ ले सकें। अस्पताल के बस्ती से दूर होने के कारण कई मित्र गण वहाँ पहुँच पाने में असमर्थ रहे थे, मेरी अब यही कोशिश है कि धर्म निभाने में मैं उनकी पूरी मदद कर सकूँ। सोचता हूँ कि शादी ब्याह के समय डबल दावत रखने की परंपरा के पीछे भी दूसरा मौका देने की यही मंशा रही होगी कि जो सज्जन किंही कारणों से पाणि ग्रहण में शरीक न हो सके हों वे रिसेप्शन में हो लें। ...बहरहाल सरे शाम हम बेडरूम छोड़ कर बैठक में लाये जाते। फिर तो चिंतातुरों के सवालों के जवाब देते देते हांफ उठते। मुलाकातियों के रात्रि-विश्राम का समय होने पर ही हमे बिस्तर नसीब हो पाता।

5 comments:

  1. ABhi tak chal raha hai kya darshan laabh ???

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  2. ab tabiyat kaisi hai uncle??

    main bhi aise haalaat dekh chka hu..is liye wo hospital wala post likha tha :P

    ye aspatal milne ane walo ka ek aisa drama hota hai jise dekh big-b bhi dar ke mare acting chod dein..

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  3. muh dikahi me koi paise nhi de kar gya????... Uff ye log?? bager paise chale aate hai ??? hospital se aya banda(Marij) nyi naveli dulhan ki tarah hta hai... itna to logo ko samjna chahiye .. is ka jikr reh gya

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  4. tabiyat ab sambhal chuki hai, nipun ji.Avtar sir ji title me chupi hai apki baat!

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