Monday, May 17, 2010

पडौसी जनम जनम के

वे दोनों अगल-बगल के नहीं अपितु उर्ध्वाधर अर्थात ऊपर नीचे के पडौसी थे। सरहदरुपी छत जो कि दूसरे के लिए फर्श थी, उन्हें अलहदा करती थी। वे एकदम पाठ्य-पुस्तकीय यानि आदर्श किस्म के पडौसी थे जो जरूरत- बगैर जरूरत पडौसी धर्म निभाने पार उतारू रहते थे। मसलन झड़प की हुड़क चढ़ने पर अंग्रजों की तरह एक पडौसी का सात समंदर पार जाना दूसरे के लिए धिक्कार की बात थी। उनका फलसफा था कि हाथ भर पर कुआँ हो तो नहाने के लिए मानसरोवर क्यों जाया जाये?
सह अस्तित्व की भावना तो उनमे कट्टरता की हद तक कूट-कूट कर भरी थी, जिसका मतलब है कि वे एक दूसरे के बिना सुख चैन से नहीं रह सकते थे। अब यही देखिये यदि एक की नींद उचट रही हो, तो क्या मजाल है जो दूसरा झपकी भी ले ले। ऊपर वाले जब बच्चे को मेज-रुपी तबले की थापों पर बहला कर सुला चुकते तो पूर्ण चेतनता को प्राप्त नीचे वाले दीवारों में कील ठोकने लगते या दरवाजों की कुण्डियाँ दुरुस्त करने में जुट जाते। रात के चौथे पहर तक कुछ इसी तरह की जुगलबंदियां चलती रहती। पौ फटने के करीब नींद लगने की मजबूरी ही दोनों थोकों को खामोश करा पाती।
उनका आपसी भाई-चारा भी बेमिसाल था। अच्छे पडौसियों की तरह उनमे तरह-तरह की वस्तुओं का विनिमय सदैव चलता रहता था। खास बात यह थी कि वे संताक्लॉज की तरह एक दूसरे का छुप-छुप कर भला नहीं करते थे वरन दिन-दहाड़े, डंके की चोट पर ऐसा करते थे। एक अगर पोछे और साबुन के गंदे पानी से दूसरे को अर्घ्य देने से बाज नहीं आता तो दूसरा कचरे की होली जला कर अपने प्रिय पडौसी को फोगिंग मशीन की मुफ्त सेवाएं देने पर तुल जाता।
अब दिलजले मोहल्लेवालों की न कहिये जो इनकी प्रीत से बेतरहा फुंकते थे। ये जहाँ-तहां उड़ाते फिरते कि उपरी मंजिल वाले नीचे आँगन को पीकदान या कचरापेटी जैसा कुछ समझते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि ऐसा कुछ भी नहीं था। दरअसल वे तो गले की खंखार, नाक का नजला, कटे नाखून, फलों के बीज आदि हवा में उछालते भर थे जो गुरुत्वाकर्षण की गलती से जमीन पर जा टपकते थे। इसी तरह ऊपर वालों के हिस्से का पानी मोटर से खीच कर भूतल वाले यदि अपने बगीचे को सींच भी लेते तो कोई भी आसमान टूट कर नहीं गिरता, आखिर वे प्राकृतिक छटा और ठंडी घनी छाया को तो बाँध कर नहीं रखते, पडौसी को भी जी भर कर मज़ा लूटने देते थे।
दोनों प्रतिदिन भगवान से यही मनाते हैं कि अगले सात जन्मों (नहीं, छः या आठ जन्मों) में भी एक दूसरे का पडौसी ही बनाये - बस बारी बारी से मंजिल की अदला-बदला करता रहे। इति।

11 comments:

  1. hahaha kya vyang kiya sirji maan gaye...

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  2. satire at it's utmost best form.. :)

    mjhe hamare padosiyon ki yadd aa gayi..cooler ka paani jab tapakta tha to neeche ke padosi gussa ho jate the :P

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  3. Thanks dileep and nipun- I feel encouraged by your comments of appreciation!

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  4. sheer optimism with just the right dosage of satire.. hats off to such wonderful neighbors that we have got till date! :)

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  5. चाचा नमस्ते !! दिल गदगदा उठा,,,,बोहोंत ही अच्छा, मजेदार और गहरा लिखा है आपने....आज कल ऐसा कुछ बोहोंत ही कम दीखता है...

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  6. वाह रे दुनिया..भगवान सभी को दे ऐसे एह्दर्शनाभिलाशी पडोसी :)

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  7. स्वागत और शुक्रिया, शौनक!

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  8. I wish everyone could think in the same way.
    extreme positivism.........is your blood group B+ve?

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  9. Welcome madam, how are you (if you are Dubey)? My blood group is A+

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  10. yes sir I'm smita dubey. thanx for recognizing me.I am very well you also seems to be fine.

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