Friday, June 11, 2010

वक़्त की पाबन्दी के साइड इफेक्ट्स

हमें एक पुरानी स्टुडेंट की शादी में जाना था। कार्ड देख कर समय की तस्दीक की। लिखा था- ७बजे से आपके आगमन तक। इस लेख का हमने यह अर्थ लगाया कि आपको जब आना हो आओ , लेकिन सनद रहे कार्यक्रम ठीक सात बजे शुरू हो जायेगा। इस हिसाब से हमें पौने सात पर चल देना चाहिए, यही सोच हमने पत्नी को फटाफट तैयार होने को कहा। वह पलट कर बोली- इतनी जल्दी भी क्या है? हमने कहा- भागवान! हम पर नहीं तो दूल्हे के बाप पर तो तरस खाओ, वे बेचारे बुजुर्गवार ७ बजे से मंडप के गेट पर हाथ जोड़ कर मूर्ति से खड़े हो जायेंगे। मैरिज गार्डेन पहुचे तो गेट पर गहरा सन्नाटा था, अन्दर जरूर गहमा-गहमी थी। टेंट वाले कुर्सियां उतारने में लगे थे तो केटरर मेजें सजा रहे थे। अब हम पर क्या गुजरी वो हम ही जाने!
कुछ दिनों बाद हमारे एक सहकर्मी के भाई की शादी पड़ी। तब तक हम काफी दुनियादार हो चुके थे ओर वक़्त का कुछ-कुछ मतलब समझने लगे थे। इस बार हम दो घंटे लेट यानि ९ बजे मंडप पहुंचे। स्टेज सजी थी मगर दूल्हा-दुल्हिन कहीं नजर नहीं आ रहे थे। हमने अनुमान लगाया कि टायलेट वगैरह गए होंगे, आ जायेंगे। कुछ घड़ियाँ इंतज़ार के बाद पहले भोजन कर लेना ही हमें उचित विकल्प लगा। आइसक्रीम खा चुकने के बाद पान का बीड़ा मुंह में दबाने तक भी स्टेज खाली पड़ी थी। हाँ, जेवरों से जियादा मेक अप में दबी कुछ संभ्रांत महिलाएं ऊंघती सी वहाँ जरूर आ बैठी थी। वर वधु की करीबी समझ कर हमने उनसे पूछा- दूल्हा-दुल्हिन कहाँ हैं, आपको पता है क्या? अहसान सा उठाते हुए एक ने आँखे खोली और कहा- नहीं । आशीर्वाद हाथ में लिए हम तकरीबन पौना घंटे दूल्हे की तलाश में यहाँ-वहाँ भटकते रहे। फिर हमने अपनी गाड़ी उठाई और जनवासे का रुख किया। वहाँ पहुंचे तो देखा जनाब रकाबी में पैर रख कर घोड़ी पर चढ़ रहे हैं।...और दुल्हिन, जाने वह कहाँ थी? हो न हो ब्यूटी पार्लर से मंडप के लिए निकल पड़ी हो!
संगीत की एक महफ़िल की सुनाएँ। देश के एक नामचीन गायक की एकल प्रस्तुति थी। पास पर साफ और मोटे हरूफों में लिखा था कि कृपया समय से १५ मिनट पूर्व स्थान ग्रहण कर लें। हमें यह भी मालूम था कि कलाकार बेहद नाज़ुक मिजाज़ होते हैं और बेवजह की हरकतें प्रस्तुति के दौरान पसंद नहीं करते । सो गाडी पार्क करने से ले कर सभागार में अपनी सीट ढूँढ कर उसे ग्रहण करने में खर्च होने वाले समय का हिसाब लगाया, जो कि दस मिनट निकला। अब पंद्रह में ये दस मिनट जोड़ कर हम कोई पच्चीस मिनट पहले पहुँच गए। सभागार खाली था, कुछ कद्रदान गेट पर अवश्य मंडरा रहे थे। मुमकिन है, अकेले में दम घुटता सा देख बाहर आयोजकों में आ खड़े हुए हों। रफ्ता-रफ्ता रसिकों की आमद-रफ्त का सिलसिला बना लेकिन जब तक साजिन्दे मंच पर आ कर अपने साज़ ठीक करते, भले आदमियों का सोने का समय को चुका था।

9 comments:

  1. aapki baat padh ke flop show ka wo episode yaad aa gaya jisme jaspaal bhatti chief guest banaye jaate hain aur samay se pehle pahunch jaate hain....:D

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  2. aapne ekdam sahi mudda uthaya hai.. aakhir admi jaye to kis samay? ye card par samay to gumrah kar deta hai..

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  3. sir apane dekha hoga card par likha hota hai SUHANI SHAM SE DHALTI RAAT TAK.....
    pata nahi unki sham kab dhalti hai, agar ye mention kar de to aane walon ko thodi si suvidha ho jayegi.

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  4. गोल मोल लिखने से आदमी समय नहीं बनाये रखने के गुनाह से तो बच ही सकता है।

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  5. :)

    muskan hee chodne ka man ho raha hai.......

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  6. Isliye apna toh shaadi kaa funda hai, khana khao aur rapat lo !!

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  7. त्यागी जी! इण्डिया में IST (Indian Self Time) चलता है, माने सब का अपना अपना टाईम. अऊर आप Indian Standard Time से चले गए..सब उसी का फेरा है!!

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  8. Ah, that is so true. Awesome!!

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