Thursday, November 13, 2014

मेरिज गार्डन एक खोज



शादी के कार्ड पर साफ शब्दों में लिखा था-‘सरताज मेरिज गार्डन, राजीव गाँधी चौक के पास’. राजीव गाँधी चौराहा शहर का जाना माना चौराहा था, लिहाज़ा पूछताछ की जरूरत महसूस नहीं हुई. हाला कि मेरिज गार्डन कभी पहले देखा नहीं था पर चूँकि शहर में रहते तीस साल हो गए थे इतना जरूर पता था कि हमारी मंजिल चार में से किन दो राहों के बीच स्थित थी. पहले एक राह पर गाड़ी डाली. जब बहुत दूर तक गार्डन नजर नहीं आया तो तय पाया कि किसी जानकार से पूछना बेहतर होगा. एक ठेले वाले ने बताया कि गलत दिशा में आ गए, दूसरे वाली राह पकड़नी थी. अब हमने गाड़ी मोड़ कर दूसरी राह पर डाली किन्तु इत्मीनान नहीं होने से सोचा पूछताछ  कर लें. गाड़ी ठहराकर एक दुकानदार से पूछा तो उसने बताया कि पहली दफा जिधर गए थे उधर ही जाना था. फिर तो अगले आधे घंटे हम शूर्पणखा की तरह कभी राम से लक्ष्मण, तो कभी लक्ष्मण से राम की तरफ ठेले जाते रहे.        

अब अपने सब्र का बाँध टूटने को था. सभी साथियों से मशविरा करना शुरू कर दिया था कि ख़राब मौसम में अमरनाथ यात्रियों की तरह क्यूँ न घर लौट चला जाये. एक कुलीग को सबसे लिफाफे इकठ्ठा करने को कह इंडियन कॉफ़ी हाउस चलने की भी ठान ली थी. तभी एक नौजवान साथी ने अपने मोबाइल पर जीपीएस लगा लिया और वास्कोडिगामा की तरह मेग्नेट की सुई सी देखते हुए हमें दिशा बताने लगा. जीपीएस ने अब हमें जिस सड़क पर डाला उसके किनारे पर एक पुर आबाद कलाली थी जहाँ कई दीवाने किलोलें कर रहे थे. आगे का मार्ग नीम-अँधेरे में लिपटा पड़ा था, निपट सुनसान. मन में डरावने विचार आने लगे. अपनी गाड़ी किसी फोकटिया की तो थी नहीं जो एक लिफाफे में पूरा कुनबा जिमाने ले जा रहा हो. दुल्हन के बाप के हम छह कुलीग थे- फ़ी बाराती एक लिफाफ़ा वाले. किसी अंतर्राष्ट्रीय लग्ज़री कार की तरह लूट के सॉफ्ट और लुभावने टारगेट. रास्ते का ये आलम था कि गाड़ी आगे बढ़ने के साथ-साथ मेरिज गार्डन मिलने की उम्मीद कमतर होती जा रही थी. अब तो हमें गूगल पर भी शंका होने लगी थी कि कहीं अपहरणकर्ताओं के हाथों में तो नहीं खेल रहा! तब जेब से निमंत्रण-पत्र निकाल कर उत्तरापेक्षियों की लम्बी सूची में से पासा फेंक कर एक को फोन लगाया और समारोह स्थल के कोआर्डिनेट पूछने चाहे. लेकिन अपना दुर्भाग्य कि बारात दरवाजे पर आ चुकी थी. शोर शराबे में उत्तर सुनना तो दूर, उन्हें प्रश्न सुनाने में ही पसीना आ गया.

देखते-देखते बस्तियां भी विदा हो गयीं. दायें-बाएं खेत उग आये. मगर सर पर कफ़न बांधे जांबाजों की तरह हम फिर भी आगे बढ़ते गए. मुड़ते-मुडाते अब हम एक मुकाम पर पहुंचे. यही समारोह स्थल था.  देख कर लगता था कि कल अलसुबह जब लाईट और साउंड का तिलस्सिम टूट कर बिखरेगा तो यह भव्य स्थल किसी गन्ने पेरने की चरखी या खेतों को सींचने के रहट सा नज़र आएगा.


वहां पहुँच कर हमने खैरियत मनाई. साथ ही कसम खाई कि आइन्दा समारोह स्थल की अच्छे से रेकी कराये बगैर किसी शादी में शरीक़ नहीं होंगे.  

10 comments:

  1. वो सब तो ठीक है, ये बताओ की खाना नसीब हुआ की नहीं?

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  2. हुया, क्योंकि हनु साथ था! (यंग कलीग के किरदार में)

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  3. khana ke saath-saath ik sundar si rachna ke liye prerna bhi sundar warnan paristhitiyon ka ....

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  4. sir sona tapne k baad he chamakta hai...

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  5. आओ संजीत जी, आपका स्वागत है ब्लॉग पर...

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  6. बचपन में एक खेल खेलते थे (आज का समय होता तो कहता कि एक गेम होता था हमारे हाथ में)... एक प्लास्टिक की डिब्बी, जिसके अन्दर चक्रव्यूह के अन्दाज़ में (जैसा कि बी आर चोपड़ा साहब ने महाभारत सीरियल में दिखाया था) अलग-अलग (छोटी होती) त्रिज्या वाले वृत्ताकार घेरे बने होते थे जिनके विपरीत दिशा के सिरे खुले होते थे. डिब्बी के अन्दर एक छर्रा हुआ करता था जिसे उन वृत्ताकार मार्गों से पिरोते हुये अंतिम अर्थात बीच वाले घेरे में ले जाना होता था.
    बस यह छर्रा आपकी गाड़ी और विवाह स्थल वह बीच वाला घेरा... आप फँसे हुये अभिमन्यु की तरह.

    निकले थे कहाँ जाने के लिये, पहुँचे हैं कहाँ, मालूम नहीं
    हम अपने भटकते क़दमों से, मंज़िल का निशाँ मालूम नहीं!

    यहाँ गुजरात में बाकायदा नक्शा बना कर विवाह स्थल का मार्ग निर्धारित किया गया होता है निमंत्रण पत्र के पीछे!
    वैसे पिछली कड़ी में आपने लिफ़ाफा थमाया ( दो टुकड़ों में) और इस कड़ी में घर ढूँढ रहे हैं...?? ये गाड़ी रिवर्स गियर में कैसे गुरुवर??

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    1. आप आ गए, हम तो सोच रहे थे कि बुलाना पडेगा....!

      एक लिफाफा (साबुत या दो टुकड़ों में) देने के बाद अगला लिफाफा/लिफाफे फिर तैयार हो जाते हैं दिए जाने के लिए!

      आपकी बात भी सही है दोनों पोस्टों को जोड़ने की ही योजना थी. जो नदियों को जोड़ने की योजना की तरह फ्लॉप हो गयी. सोचा जाने दो अलग अलग ही...

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  7. आखिर समारोह में पहुंच ही गए . रेकी करवाने का विचार अच्छा है . प्रसंशनीय लेख.

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