['त्यागी उवाच' के तेवर से
अलग पेश है आज एक
कविता]
कई दिनों बाद,
शाम भूख महसूस होने पर
भेल बनाई,
खाते-खाते टीवी पर
बकवास देखी.
कई दिनों बाद,
आज बालकनी से
सूखे कपडे उतार कर
तह किये.
पौधों को
कई दिनों बाद
जी भर पानी दिया.
कई दिनों बाद,
सुबह-सुबह चाय पर
'भास्कर' और 'हिन्दू'
शब्द-शब्द चाट डाला.
नाश्ता कर चुकने पर
थोड़ी देर
सुस्ताना भी हो गया.
थाली में
दाल रोटी समेत,
कई दिनों बाद
जो चीज घर में
जहाँ हुआ करती थी
उसी जगह लौट आई.
रात में
सोने से पहले आज
कई दिनों बाद,
तकिये के पास पड़े
'नया ज्ञानोदय' की
दो चार कहानियाँ तो
पक्का पढ़ मारूंगा.
'रूटीन'
सच में
कितना अच्छा है!!
Very true!
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत दिनों बाद किए गए कार्य नएपन का अहसास कराते हैं . यह कविता नागार्जुन जी की कविता --बहुत दिनों के बाद अबकी मैंने जीभर देखे मौलश्री के ताजे टटके फूल ...की याद तो दिलाती है पर अपने आप में विशिष्ट है . यह तेवर भी अच्छा है .
ReplyDeleteकुजा राम राम, कुजा टप टप...कहाँ नागार्जुन, कहाँ ये ख़ाकसार! आपको ये तेवर पसंद आया, हमारा सौभाग्य!!
Deleteकई दिनों बाद आपके ब्लॉग को पढ़ने का अवसर मिला
ReplyDeleteकई दिनों बाद बैठा हूँ अपने लैपटाप पर।
आप रोज-रोज लैपटॉप पर बैठें....आमीन!
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, पतन का कारण - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteनजरे- इनायत का आभार शिवम् भाई
ReplyDeleteकई दिनों बाद आप दिखाई दिये
ReplyDeleteकई दिनो बाद हम भी आ गये :)
अच्छा लगा आप अपने ठिकाने पर लौट आये....हमारी इंतजार ख़त्म हुई!
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
manobhawon ka sundar shabdankan.....gazab ki prastuti sir ....
ReplyDeleteThanks Nisha ji for your appreciating words
Deleteरूटीन पर बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है.साधुवाद.
ReplyDeleteसच है रूटीन के बिना बोरियत सी होती है
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दर प्रस्तुत किया
और ईन्तजार रहेगा
सच है रूटीन के बिना बोरियत सी होती है
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दर प्रस्तुत किया
और ईन्तजार रहेगा