कोविड़-19
के चलते फैक्ट्रियाँ बंद होने से मजदूर बेरोजगार हो गए। ऐसे ही कॉलेज और
विश्वविद्यालयों के बंद होने से प्रोफेसर कर्म विहीन, वाक विहीन और विद्यार्थी बेसहारा हो गए। उनके भारी नुकसान
को देखते हुए देश में ऑनलाइन भलाईवीरों की बाढ़ सी आ गयी। विद्यार्थी समुदाय के कल्याण के
लिए रातों रात न जाने कौन कौन से अलाने फलाने मंच जहां-तहां कुकुरमुत्तों की तरह उग आए। कई बार यह बात चकित
करती है कि ये कल्याणकारी लोग अभी तक कहाँ छुपे महामारी का इंतजार कर रहे थे। खैर, उग आए तो ओई बात नहीं,
किन्तु दिक्कत की बात यह है कि जोश से भरा
हर भलाई मंच मानों फटकार-फटकार कर हमें कह रहा हो – हे मूर्ख, खलकामी हम तेरी भलाई के लिए रात दिन एक कर रहे हैं और
एक तू है कि नाश्ते के बाद झपकी लेने की हिमाकत कर रहा है...अपनी इस नीच हरकत पर तुझे शर्म आनी चाहिए! हम तो खैर खेले-खाये हैं, सो उनकी इस धिक्कार
को अपनी मोटी चमड़ी से अंदर नहीं आने देते। किन्तु कच्ची उम्र के कुछ लौंडे शर्मा
भी जाते हैं और फिर खाने पीने की सुध-बुध छोड़ कर पक्के जुआरियों की तरह तीनों बखत भलाई
कराने में भिड़ जाते हैं। तब उनकी हरकतें कुछ-कुछ ऐसी होती हैं जैसे तुरत फुरत
जवांमर्द होने की कोशिश कर रहा कोई किशोर डौले बनाने के लिए जमीन-आसमान एक किए जा रहा
हो।
आप
मोबाइल पर थोड़ी तफ़रीह के लिए फेसबुक खोलो तो दिखाई देता है कि ऑनलाइन भलाई करने
वालों के हुजूम के हुजूम आपकी तरफ चढ़े
चले आ रहे हैं। भलाई का यह सिलसिला ब्रह्म मुहूर्त के साथ शुरू हो जाता है और भले आदमियों
के सोने के समय के बाद भी अनवरत जारी रहता हैं। जिसे देखो वही फेसबुक लाइव और वेबिनारों
के जरिए देश का भला करने पर पिला पड़ा है। प्रत्येक कॉलेज इस जुगाड़ में हैं कि
लॉकडाउन के दौरान अपनी फ़ैकल्टी का इतना डेवलपमेंट कर दें कि अगले सौ सालों तक
उन्हें डेवलपमेंट की जरूरत ही न पड़े। जिसका नतीजा यह है कि फ़ैकल्टी अपना नॉनस्टॉप
डेवलपमेंट करा-करा कर हाँफे जा रही है। यह सब देख कर मेरा मन अत्यंत व्यथित है। अतः
ऑनलाइन भलाई करा रहे समस्त पीड़ितों के सर्वजन हिताय,
सर्वजन सुखाय मैं भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय से ऑनलाइन भलाई करने वालों
के लिए मानक संचालन प्रक्रिया बनाने के लिए अपने बहुमूल्य विचार रख रहा हूँ। सरकार
चाहे तो मुफ्त में इनका लाभ ले सकती है!
1. यूं कोविड़-19 के समय में घर पर ठाली बैठे-
बैठे थोड़ी भलाई करा लेने में कोई बुराई नहीं है, किन्तु डर इस बात का है कि कहीं
भलाई के चक्कर में हम अपनी बुराई न करा बैठें। । अतः भलाई कराने से पहले यह देखना
पड़ेगा कि सामने वाला भलाई करने लायक भी है अथवा उसे स्वयं ही भलाई की जरूरत है! आप
कहोगे कि इसमे कौन सी बड़ी समस्या है! जब आपको लगने लगे कि बिगड़ी बनाने वाले आपकी बिगड़ी
को बना कम और बिगाड़ ज्यादा रहे हैं तो आप तुरंत भलाई करवाना बंद कर दें। किन्तु समस्या
यह यह है कि बिगड़ी बनवाने वाला भोला-भाला होता है (समझदार
होता तो खुद भलाई न करने लगता!)। मरीज को कहाँ पता होता है कि उसे किससे, किस
प्रकार का रक्तदान ग्रहण करना चाहिए! अतः जरूरी हो जाता है कि केवल सर्टिफाइड भलाई
करने वालों को ही ऑनलाइन भलाई करने दिया जाना चाहिए।
2. सच्चा वाकया है: एक रोज किसी ने भरी दोपहरी घर का दरवाज़ा खटखटाया। उस वक्त मैं घर पर अकेला था और आराम
कर रहा था। झुँझला कर दरवाजा खोला तो आगंतुक ने तुरंत अपनी पीठ पीछे से एक
चम्मचों का सेट निकाल कर मेरी ओर बढ़ाते हुए
कहा, ‘हम आपको दे रहे हैं- बिलकुल मुफ्त!’ हमने कहा, ‘तुम हमे मूर्ख समझते हो! अरे, तुम्हें यह सामान किसी को मुफ्त ही देना था तो इसे
भँवर कुआं चौराहे पर छोड़ कर न चले जाते!’ सोचने की बात है कि सप्ताह भर पहले डुगडुगी
पीट-पीट कर, लोगों के दरवाजे खटखटा कर कोई किसी की
भलाई भला क्यों करना चाहेगा! इसका जवाब ढूँढना
कोई मुश्किल काम नहीं है। दरअसल कोरोना जैसी वैश्विक महामारी रोज-रोज नहीं आती।
ऐसा मौका सौ साल में एक बार आता है। आपने जानकारों के श्रीमुख से सुना भी होगा कि जहां
कोरोना एक चुनौती है तो वहीं एक अवसर भी है- भुनाने का! आज की स्थिति में सुनने
वाले फुर्सत में हैं और सुनाने वाले मुफ्त में तैयार हैं। अतः राष्ट्रीय कार्यशाला
ही नहीं, आज अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला कराने का सुनहरा
मौका है- न रिसोर्स पर्सन के हवाई टिकट का टंटा,
न होटल और खाने के बिल चुकाने का लफड़ा। तो सरकार को यह देखना चाहिए कि जन-भलाई की
आड़ में कहीं मलाई तो नहीं काटी जा रही!
3. देखने में आया है कि फेसबुक लाइव द्वारा
भलाई कार्यक्रमों के लिए कोई तयशुदा समय नहीं है। भलाईबाज टाइम बेटाइम प्रकट हो कर
हाँके लगाना शुरू कर देते हैं, ‘भलाई करा लो- भाइयों बहनों, नौजवानों बुजुर्गों , पढ़ने-पढ़ाने वालों सब
आओ... भलाई करा लो।‘ इधर दो घड़ी आराम के लिए आपकी आंखे मुंदी जा रही हों
और उधर कोई आपकी कुंडली जगा कर आपकी भलाई करने पर तुला हुआ हो तो आप क्या कहेंगे! सरकार
को चाहिए कि भलाई के लिए दैनिक स्लॉट निर्धारित किए जाएं। किसी मंच अथवा व्यक्ति
द्वारा निर्धारित स्लॉट के बाहर लाइव होने की स्थिति में स्पॉट फाइन की व्यवस्था हो, साथ ही भविष्य में लाइव होने से उसे वंचित किया जा
सके।
4. एक बार लाइव हो चुकने के बाद किसी भी वक्ता
को संजीवनी जैसा कुछ पी कर फिर से जिंदा नहीं होने दिया जाना चाहिए। सृष्टि का भी
यही नियम है कि जो जन्म लेता है वह मृत्यु को प्राप्त होता है। जुकरबर्ग को परम
पिता के विधान में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है! अन्यथा भी फेसबुक पर लाइव
होने के असंख्य इच्छुकों को अवसर उपलब्ध कराने के लिए यह जरूरी है कि एक बार
लाइव होने के बाद वक्ता को सदा-सदा के लिए
आर्काइव कर दिया जाए।
5. एक बड़ी आबादी के दिन भर ऑनलाइन टंगे रहने
से घर के सारे ऑफलाइन कामकाज देश की अर्थव्यवस्था की तरह चौपट हुए जा रहे हैं। यह
सिलसिला अगर यूं ही जारी रहा तो कालांतर में घर के बुजुर्गों और छोटे बच्चों का
जीना दुश्वार हो जाएगा। अतः कोई भी मंच अथवा व्यक्ति प्रतिदिन अधिकतम सीमा के अंदर
रहते हुए ही भलाई कर सकेगा। किसी को भी एक दिन में दो बार से अधिक भलाई करने अथवा
कराने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
चिंता
का विषय है कि ऑनलाइन भलाई की इस आपाधापी में देश के कर्णधारों का व्यवहार
असामान्य होता जा रहा है। कानों में हेड
फोन लगाए शिक्षक और विद्यार्थी दिन भर मोबाइल और लैपटाप से चिपके हुए दीख पड़ते
हैं। वे किसी के आवाज देने पर कुछ नहीं
सुनते, संकेतों में बात कहने पर भी कहीं दूर शून्य
में ताकते नजर आते हैं, यहाँ तक कि झिंझोड़े जाने पर भी उनमें कोई
हरकत पैदा नहीं होती। इस अवस्था में
इन्हें वन में अगर कोई रीछ देख ले तो सूंघ कर वापस चला जाए! ऐसा मालूम होता है
मानो किसी अहिल्या को शापित कर शिला बना दिया गया हो। सरकार को चाहिए कि वह ऑनलाइन
भलाईवीरों पर स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के जरिए अति शीघ्र नकेल कसे ताकि इन
अहिल्याओं को शापमुक्त किया जा सके!
Ye sabh Abhi baccho aur teachers ke liye Naya hai. Shayad acchi tarah apnane Mai time lag Sakta hai!
ReplyDeleteWow sir bahut sundar vyangya
ReplyDeleteJai ho sir jai ho दंडवत प्रणाम स्वीकार करे
Deleteदेखो, आखिरकार आम जानो की भलाई का असली जिम्मा तो सरकार का ही है। तो क्यों न भलाई करने वालो पर पूर्णतः बंदी लगाते हुए (संचालन से भली पाबन्दी!) खुद ही भलाई इंडस्ट्री में कूद पड़े? और अगर सरकार कोविड रुपी मौके को भुनाने की ठान ले तो मैं तो कहता हूँ की मनरेगा जैसी स्कीम भी अब ऑनलाइन मंचों के ज़रिये ही साझा करवानी चाहिए। भलाई की भलाई होती रहेगी, सरकार का संचालन करने का सरदर्द ख़त्म हो जायेगा, सड़को पर बेमतलब के मनरेगा के नाम के गड्ढे कम खुदेंगे और डिजिटल इंडिया का परचम भी अपने आप ही फहरेगा। और भलाई की स्पिरिट में कहूँ तो इस बहुमूल्य सुझाव का भी सरकार मुफ्त में ही फायदा उठा सकती है।
ReplyDeleteसरकार है ही भडभूजा... इसका काम ही भुनाना है!
Deleteबहुत बढ़िया सर जी, इस शिक्षाप्रद व्यंग्य के लिए आभार। वैसे तो विज्ञान और तकनीकी का उपयोग जीवन को सरल व सुगम बनाने हेतु किया जाता है,किन्तु जब यह सुखी और सरल जीवन का साधन ना होकर बाधा उत्पन्न करने लगे तब व्यंग्य के माध्यम से ऐसे ही बहुमूल्य सुझाव अधिक प्रभावी होते हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteसर ऐसा लग रहा है जैसे हर कोई अपनी खुजल मिटाने निकला है। अचानक देश में विद्वानों की बुद्धिजीवियों की बाड़ आ गई है । एकदम नई फसल निकल आईं है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा
Deleteहम भी थोड़ा बहुत भलाई में सहयोग दे ही दें। कुछ तो नया सीखने में भी भलाई ही है।
ReplyDeleteथोड़ी क्या करनी, पूरी भलाई करो जो करनी हो!
Deleteबहुत कटाक्ष व्यंग्य है
ReplyDeleteमेहरबानी आपकी
Delete😊😊😊😊👌👌👌👌👌जोरदार बातें(कटाक्ष) सर....जहाँ धुरंधर ऑन लाइन लाइव होकर ज्ञान उजाला फैला रहे हैं वहीं मैं ऑफ लाइन होकर अपने घर का काया पलट कर रही हूँ .. कोरोना जो करवाये वो कम है .....आप का तरीका शानदार है .... जिधर देखिये उधर कुकुरमुत्ते ....😊😊 गज़ब की लेखनी ..समय का उत्तम सदुपयोग ...
ReplyDeleteलगता है आप अपनी भलाई नहीं चाहती!
DeleteBohot sunder vyangya Sir ji
ReplyDeleteThanks Nirmala
Deleteबनो भलाईवीर, दिक्कत क्या है!
ReplyDeleteअति उत्तम व्यंग्यात्मक लेखनी।। कोटि कोटि प्रणाम sir��
ReplyDeleteअत्यंत आभारी हूँ मैडम
Deleteआपके इस आलेख से जानकारी मिली और संतोष भी हुआ कि मैं इधर लॉक डाउन में बंद था तो देश में सहायता कार्य रुका नहीं है! आज जाकर मुझे इत्मिनान हुआ कि देश में ज़बर्दस्त और ज़बरदस्ती दोनों तरह से काम करने वालों की कमी नहीं है, बस इस तरह की महामारियाँ अपना टूअर बनाती रहें!
ReplyDeleteयहाँ आने में भी ज़रूरत से ज़्यादा देर हो गई मुझे... यहाँ तो चल जाएगा मगर देश सेवा में विलम्ब और व्यवधान नहीं हुआ इस बात को जानकर अब मैं झोला उठाकर कहीं भी निकल सकता हूँ!!
असल में गलती हमारी थी...हमारा ख्याल था लोगों को वीक डेज़ में दफ़्तर में फुर्सत होती है, ब्लॉग व्लॉग पढ़ने की...आगे से वीक एंड पर डाला करेंगे!
ReplyDeleteआपका आभार!
The SOP ought to be implemented at the earliest!
ReplyDelete
ReplyDeleteएकदम सटीक सर जी👏👏👏
Smita dubey...ex student activity