Thursday, July 15, 2010

पहाड़ों की सैर कर लो

चलो आज पहाड़ों पर 'घूमें'।यहाँ के सफ़र की तो बस पूछो ही मत! सड़कें इस कदर संकरी कि आमने सामने के वाहनों के ड्राईवर चाहें तो एक दूसरे को धौल जमाते निकलें, लाल-बत्ती रहित मोड़ इतने अंधे कि रोड रोलर भी जब तक नाक पर न चढ़ आये तब तक न दिखे, और रास्ते इस हद लहरदार कि आपको उत्तर दिशा में जाना हो तो सारा समय या तो आप पूरब को जा रहे होते हैं या पश्चिम को। चाल को आधार बना कर यह पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि साँप चाहे मैदानों, रेगिस्तानों में भी मिलते हों परन्तु उनकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा जरूर पहाड़ों में हुई होगी। चक्कर के घनचक्कर की एक बानगी देखिये। हमने एक राहगीर से पूछा- भाई साहब, ये बिन्सर महादेव कहाँ पड़ेगा? बोला- बस चलते चलो, जब एक सौ उनतालिसवें घूम पर पहुँचो तो समझो वहीँ बिन्सर महादेव है!
ढलान, चढ़ाव और घुमाव के पहाड़ी जगत की ज्यामिति ही अलग है। मालूम नहीं, यहाँ के स्कूलों में गणित के शिक्षक सरल रेखा और लम्ब के उदाहरण कहाँ से लाते होंगे? वर्ग, आयत आदि को पढ़ाने का जुगाड़ कैसे करते होंगे? दो स्थानों के बीच की दूरी कैसे निकलती होगी? बाकी की तो क्या कहें, यहाँ के तो देवता भी 'गोलू' देवता हैं। सड़कों पर चक्कर खाती गाड़ियों को इन्हीं गोलू देवता का वरदान प्राप्त है कि जब तक वे पहाड़ की साइड रहेंगी तो नहीं पलटेंगी, मगर अभिशाप भी कि घाटी की तरफ पलटी तो बचेंगी नहीं। थोड़ी-थोड़ी दूर पर सड़कों में हलके झोल डाले गए थे ताकि पंचर होने की सूरत में ड्राईवर को पहिया बदलने की जगह मिल सके।
पहाड़ों के सफ़र की एक और खासियत है। इस दौरान आपकी इकलौती आँख कार्यशील रहती है, दूसरी चौपट हो जाती है...बारी-बारी। पहाड़ कभी आपकी बांयी आँख पर मोटा पट्टा बांध देता है तो कभी दांयी आँख पर, ठीक हिंदी फिल्मों के बदमाश की तरह। कुल मिला कर पांच दिनों के सफ़र में ढाई दिन आपके वाम चक्षु चलेंगे तो ढाई दिन दक्षिण। हर मोड़ पर कुदरत की किताब के नए-नए वरक खुलते चलते है। हो सकता है राह में किसी बियाबान जगह आपको एक स्कूल का साइन बोर्ड मिल जाए, मगर चारों तरफ निगाह दौड़ाने पर कोई भी इमारत न दिखे। ऐसे में आप खुद को एक अजीब गुत्थी में उलझा पाएंगे- यही कि पिक अप वैन की इंतजार कर रहे बच्चे रसोई में चीनी पर जमा चींटियों की तरह आखिर किन ठिकानों से आये हैं?
चौराहों पर राहें फटती नहीं वरन उठती या गिरती हैं। अब यह आप जानों कि आपको ऊपर वाली सड़क पकडनी है या नीचे वाली...ऊपर की तो कितने ऊपर की और नीचे की तो कितने नीचे की? हाँ, एक बात और...मकानों के बराबर में रखी टंकियों को देख कर यह भरम मत पालिए कि ये इन्हीं मकान मालिकों की है। दरअसल ये निचले तल्ले के लोगों के ओवरहेड टैंक हैं। धान के खेत ऐसे नज़र आते हैं गो किसी विशाल किन्तु उजाड़ स्टेडियम की सीढ़ीनुमा दीर्घाओं में मिटटी डाल कर रौपाई कर दी गयी हो।
रही बात यहाँ के बाशिंदों की- यहाँ के इंसान, पालतू पशु और मकान सब पहाड़ों की छाया में ठिगने दिखाई देते हैं। पहाड़ी कुत्ते की ही मिसल लें। गठा बदन, मैदानों के मुक़ाबिल झबरीला मगर कद काठी में उन्नीस, जैसे गढ़ने वाले ने ऊपर तथा साइडों से दबा दिया हो।...वो कहते हैं न कि 'अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे'।

8 comments:

  1. sir mujhelagta hai ki wahan ke log sirf curve padate honge..........jinki masteri dusare topic par naa ho unhe wahan par jakar maths padana chahiye...........SUNDER CHITRAN YATRA KA.....

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  2. " चाल को आधार बना कर यह पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि साँप चाहे मैदानों, रेगिस्तानों में भी मिलते हों परन्तु उनकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा जरूर पहाड़ों में हुई होगी "

    aisi sochne ki shamta ek mahir darshanrthi ko hi ho sakti hai.. jise dekne ka kam par usme doobne ki adhik chah hoti hai.. fir us dubki ko kagaz pe utarne ka hunar..!!

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  3. uncle ye ek post reh gai thi meri.. samay nikal ke plz dekh ke batayein aap ko padhne pe kya laga.. main dekhna chahta hu jo main bolna chahta tha wo sahi me bol saka ke nahi.. and aapse behtar mujhe koi nahi bata sakta..
    http://salinedreamz.blogspot.com/2010/07/worry-is-dark-room-where-negatives_9318.html

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  4. हमरा त एक्के बार का तजुर्बा है अईसन पहाड़ पर जात्रा करने का... ओतने में परान सूख गया... आप त अल्टरनेटिभली आँख बंद करने का बात बोले हैं, हमरा त कंटीनिउअसली दुनो आँख बंद रहा, देखिए नहीं पाए नजारा, पहाड़ का... फिर मने मन खयाल आया कि कि इससे जादा घुमावदार मोड़ त आदमी का जिन्नगी में है... तब्बो पहाड़ से डरता है... आपका लेखन भी कम डरावना नहीं है... नया आदमी पढ ले डरे जएबे नहीं करेगा...

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  5. "What is mind?
    Does not matter,
    What is matter?
    Never mind!"

    zabardast laga ye to.. ekdam satik yahi chal rha tha man me.. :)

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  6. Wah, humne bahut travelogue daale, par yeh bidlaa hai !!

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