कल
एक क्विज़ प्रतियोगिता देखी जैसी पहले कभी न देखी थी। गो दूसरी प्रतिस्पर्धाओं की
ही तरह इसमें भी कई टीमें हिस्सा ले रही
थी, सवालों के कई चरण थे,
हर चरण में कई राउंड थे, दर्शक थे, गाहे
बगाहे तालियाँ भी थी। मगर फिर भी इसमें कुछ ऐसी बात थी जो इसे दूसरों से अलग बनाती
थी। दरअसल, प्रतियोगिता में भाग ले रही चारों टीमें एक दूसरे
को जो जबर्दस्त टक्कर दे रहीं थी वह आम तौर पर मुश्किल से देखने में आती है। पहले
चरण में चार दौर थे जिसमें हर टीम के लिए एक सवाल तय था। सवाल पूछे जाने के साथ ही
सभी टीमों में अंक जुटाने की एक होड सी लग गयी।
एक टीम जो अंक हासिल करती, अन्य सभी टीमें भी अपनी-अपनी
बारी आने पर उतने ही अंक अर्जित कर लेती। नतीजा यह हुआ कि हर दौर के बाद कोई किसी
से आगे नहीं निकल पाता। पहले चरण के चार राउंड समाप्त हुए। आयोजकों ने बड़े गर्व से
सभा को बताया कि बेहद कडा संघर्ष होने के कारण सभी टीमों ने बराबर अंक अर्जित किए
हैं। सभी के शून्य अंक हैं। बात गलत नहीं थी। पर संघर्ष के अलावा मुमकिन है इस आलम
के कुछ और दीगर कारण भी रहे हों... मसलन सभी टीमें मिल कर एक भाई चारे की मिसल पेश
करना चाह रही हों या फिर प्रतियोगिता के विजेता को इनाम में ऑडी कार नहीं दिये
जाने का अपने खास अंदाज़ में विरोध कर रही हों।
खैर
जो भी हो, आयोजकों की हिम्मत की दाद देनी होगी कि ऐसे
हालात बन जाने के बावजूद वे प्रतियोगिता को अगले चरण मे ले गए। इस चरण में किसी
टीम से प्रश्न का सही उत्तर ना मिलने पर उसे दूसरी टीमों को ‘पास’ करने का प्रावधान किया गया, ताकि टीमें जो हैं वे कुछ बोनस अंक हासिल कर थोड़ी बहुत इज्जत बचाने का
बंदोबस्त कर सकें । लेकिन हुआ कुछ और ही। कई प्रश्न अश्वमेध घोड़े की तरह सभी टीमों, यहाँ तक कि
दर्शकों से भी बाकायदा ‘पास’ होते हुए वापस
आयोजकों के पास ही पहुँच जाया करते। चूंकि सही उत्तर आयोजक ही दे रहे थे लिहाजा दर्शकों
के पास आयोजकों के लिए ही तालियाँ बजाने के अलावा कोई और चारा बचा भी नहीं था। यूं
ही चला चली के माहौल में माशाल्लाह वो मुबारक घड़ी भी आ ही गयी जब एक टीम ने न केवल
अपना, वरन प्रतियोगिता का पहला अंक हासिल करने का कारनामा कर
दिखाया। अभी तक मायूस पड़े माहौल में अचानक खुशी की लहर यूं दौड़ गयी मानों मन्नतों
के बाद किसी के घर में किलकारियाँ गूंज उठी हों! दर्शकों ने झूम-झूम कर कर देर तक
तालियाँ बजाईं। जिसका असर यह हुआ कि ये
अंक उस टीम के लिए अंतिम अंक साबित हुए। मालूम होता था जैसे दल के सदस्यों को अपना ‘सेलिब्रिटी
स्टेटस’ हजम नहीं हो पाया। चुनांचे शेष प्रतियोगिता में वे कटे-कटे
से रहते हुए अंक बटोरने से कतराते रहे।
प्रतियोगिता
का ‘लूट सके तो लूट’ नामक
अगला चरण भी प्रतिभागियों के लिए अंकों की झमाझम बरसात ले कर नहीं आ सका। इस फटाफट
राउंड के प्रश्न कुछ आसान थे। सो टीमों ने कुछ अंक तो जरूर जुटाये किन्तु गलत
उत्तर पर अंक काटे जाने कारण दो कदम आगे बढ़ा कर चार कदम पीछे खींच लेने जैसे वाकये
ही ज्यादा नजर आ रहे थे। प्रतियोगिता के समापन के करीब आते-आते इस बात का यक़ीन पुख्ता
होता जा रहा था कि आईआईटी-जेईई की तरह ही विजेता टीमों का कट ऑफ बहुत ही ‘लो’ रहेगा। हुआ भी यही...एक भी टीम दहाई का आंकड़ा
नहीं छू पायी। क्रमशः आठ अंक वाली टीम को विजेता और पाँच नंबर वाली टीम को
उपविजेता का खिताब बैठे-बैठे मुफ्त में मिल गया।
अब यह
रहस्य समझ में आ रहा है कि आखिर प्रतियोगिता की चारों टीमों के नाम क्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ही
क्यूँ रखे गए थे....किसी भी टीम का नाम आकाश क्यूँ नहीं था!!
Humesha ki tarah lajawaab sir
ReplyDeleteधन्यवाद मैडम
Deleteकमाल की पोस्ट गुरुदेव!! आखिरी पंक्तियों पर इतना सधा हुआ छक्का आप ही लगा सकते हैं! इसलिए आज कोई मज़ाक नहीं. शानदार!!!!
ReplyDeleteआभार सलिल भाई, सच में!
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ReplyDeleteमतलब एक और कमेन्ट झोली में आ रहा था...क्यूँ रोक लिया भाई!!
Deleteप्रतियोगिता की प्रतियोगिता , प्रतियोगिता से जबसे होने लगी है तब से cutoff लो होने लगा है ....बहुत सुंदर वर्णन आज के माहौल के अनुकूल 😊😊😊
ReplyDeleteमेहरबानी मैडम जी
DeleteAti sunder varnana sir... Maza aagaya... Aisa laga Jaise humare aankho k saamne hi ye pratiyogita ho rhi ho..
ReplyDeleteतारीफ का शुक्रिया दिव्या जी
Deleteबहुत शानदार लेखनी ......
ReplyDeleteबहुत शानदार लेखनी ......
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