अच्छे भले चले जा रहे थे।
रामपुर तिराहा आ चुका था। मंजिल अब बस पचासेक किलोमीटर दूर रह गयी होगी कि सड़क पर
लगे बेरिकेड ने रास्ता रोक लिया। पुलिस जवान ने बताया आगे मीलों लंबा जाम लगा है। फिर
इशारा करते हुए सलाह दी, “इधर से देवबंद होते हुए निकल जाइए।”
क्या करते... कुछ पल
झल्लाने के बाद आखिर हमने ड्राइवर को बताई गयी दिशा में गाड़ी मोड लेने को
कह दिया! अब दो बैलों की कथा में झूरी के हीरा-मोती की तरह अपनी गाड़ी अनमनी सी अनजान
राहों पर निकल पड़ी। खेत-खलिहान के बाद ‘देता’ और पथुआरों के किनारे से गुजरती हुई अपनी गाड़ी एक नामालूम से गाँव में
प्रवेश कर गयी। यहाँ हम दिलकश नजारों से दो चार थे- घेर के बाहर खाटों पर हुक्का
गुडगुड़ाते ताऊ लोग, और संकरी गलियों के वो गज़ब अंधे मोड!....कहीं-कहीं
तो अपने में से किसी एक को नीचे उतर कर ट्रक के क्लीनर की माफ़िक गाड़ी को सही सलामत
मुड़वाना पड़ता! खैर दो तीन गाँव निकलने के बाद हाइवे आ गया।
हाइवे क्या था, गाँव की सरहद वाली चक-रोड से भी गया गुजरा था.... काफी हद तक खाईखेड़ी के गौहर से मिलता जुलता! तभी सामने से एक
कार आती दिखाई दी, यूं लगा मानों गर्दो गुबार की कोई लपलपाती
हुई सुनामी सब कुछ लीलती हुई हमारी जानिब बढ़ी चली आ रही हो। ड्राइवर का तो पता
नहीं उसने क्या किया मगर हमने दहशत से अपनी आँखें मूँद ली! कुछ लम्हों के बाद जब आँखों
के सामने धुंधले-धुंधले दृश्य उभरने लगे उस वक़्त ही हमें यकीन हो पाया कि वाकई हमारी
खोई हुई सुध-बुध लौट आई है। फिर तो कोसों तक यही राम-धुन दुहराई जाती रही। तब सपाट
रास्ते पर कुछ काले-काले धब्बे दिखाई देने शुरू हुए तो खटका हुआ कि कहीं सड़क पर्व
तो शुरू नहीं हो गया। कुछ आगे बढ़ने पर महसूस हुआ जैसे हमारी गाड़ी एक बेबस डोंगी की
तरह किसी भयंकर तूफान की चपेट में जा फंसी हो। लगातार लग रहे थपेड़ों की वजह से अक्सर
यह होता कि कभी हम बगल वाले की गोद में जा गिरते, तो कभी बगल
वाला हमारी पीठ के ऊपर विराजमान हो जाता। इधर पेट का पानी जो है वह हिल-हिल कर
मट्ठा हुआ चाहता था... उधर अपने ब्लैडर का ढक्कन गाड़ी के ब्वायलर के ढक्कन की तरह
लगता था कि निकल कर अब गिरा कि अब गिरा। हम बेहद डरे हुए थे...लग रहा था कि कहीं हिचकोलों
में झूलते रहने के कारण पेट के अंदरूनी हिस्सों मसलन जिगर और गुर्दा, आमाशय और तिल्ली आदि ने अपनी-अपनी जगह आपस में न अदल-बदल ली हो! यही सोच कर
मुसलसल हलकान हुए जा रहे थे कि खुदा ना खास्ता, अगर बायीं
किडनी दायीं तरफ वाले घर जा बैठी और दायीं वाली बायेँ बाजू पहुँच गयी तो हमारा
क्या होगा! आखिरकर वो घड़ी आ ही गयी जब हमने उस तवील सुरंग से बाहर आ कर खुले में
सांस ली। अब गाड़ी की चाल देख कर ऐसा लग रहा था मानों कूदती फाँदती शोर मचाती भागीरथी
मैदानों में पहुँच कर प्रौढ़ा गंगा की तरह बहने लगी हो...जैसे खूनी कलिंग जंग के
बाद सम्राट अशोक बुद्ध की राह पर चल पड़ा हो!!
ड्राइवर ने बताया कि करीब आधे
घंटे में ठिकाने लग रहे हैं। मगर चूंकि ड्राइवर पर से हमारा यकीन तब तक पूरा उठ
चुका था सो एक पंजाबी ढाबा नजर आते ही हमने जुआ डाल दिया। फौरन से पेशतर हमने अपनी
पसंदीदा साग भाजी तो बाकी लोगों ने उनका दिल-अज़ीज़ बकरा ऑर्डर किया। अब वे एक तरफ तर
और अर्द्ध तर माल सूँतते जा रहे थे तो दूसरी तरफ बकरे की अस्थियों को एक सफ़ेद तश्तरी
में भी संचित करते जा रहे थे। यह रस्म देख कर ऐसा मालूम होता था गोया आगे पड़ने
वाली गंग नहर में उन्हें प्रवाहित कर वे बकरे की मृत आत्मा को शांति प्रदान करने
की योजना बना रहे हों। जहां अनेक लावारिस इंसानी लाशों को ढंग का क्रिया क्रम भी
नसीब नहीं हो पाता वहाँ उस अनाम बकरे के इस सौभाग्य पर मुझे रश्क़ हो उठा। खैर लंबी
डकार के बाद वे हाथ धो कर लौटे तो हमें ढाबे के बाहर पाया। बोले- अरे!, आपने हाथ नहीं धोये! हमने कहा हमने बकरा थोड़े ही खाया है, खाली घास-फूस को छूने पर क्या हाथ धोना!
अब उनके पेट में बकरा था तो जहन
में बेफ़िक्री! गो कह रहे हों कि आगे रहगुज़र में आए जो भी आफ़ात आए। मंजिल का क्या है, जब आए तब
आए...बतर्जे ‘आए कुछ अब्र कुछ शराब आए,
उसके बाद आए जो अज़ाब आए’!!
बहुत जीवंत यात्रा वृतांत सर ....आँखों देखी हाल जैसे ...कई बार सामना हुआ है ....
ReplyDeleteआप का आभार मैडम, अक्सर आपसे खाता खुलता है कमेंट्स का!
ReplyDeleteहमें भी तालीम दी जाए......कि अनुभवों को शब्दों में बयाँ कर सकें।
ReplyDeleteघर आ जाओ...मुफ्त ट्यूटोरियल मिलेगा लड्डू के साथ!
ReplyDeleteShayad bakraa shraapit tha jis ka taaranhaar aur swarg praapti aap prabhu logo k haatho likha hua tha! Aap ka pet bhar k us ka jeevan nishchit hi safal ho gaya
ReplyDeleteअल्ला को प्यारी है कुर्बानी...
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ReplyDeleteचिकित्सा विज्ञान की एक सम्पूर्ण प्रायौगिक यात्रा के उपरान्त आपके नाम के पूर्व स्थित डॉक्टर शब्द की सार्थकता का अनुभव हुआ! आपकी यह यात्रा आपके डॉक्टरत्व प्राप्ति की एक दुर्लभ यात्रा के रूप में सन्ततियाँ किंवदन्ती के रूप में कहे सुनेंगी! गुरुदेव, आपने शरीर के अंगों के स्थानांतरण की बात कही है, मेरी शंका है कि यदि इस प्रयोगशाला में किसी गर्भवती स्त्री को यात्रा करने की बाध्यता हो तो उस बेचारी का क्या होगा!
हे 'योगी'राज! आपके प्रदेश की इस तपोभूमि की कोई समुचित व्यवस्था करें तथा हमारे गुरुदेव की ज्ञानप्राप्ति स्थली पर एक चिकित्सा विश्वविद्यालय का निर्माण करवाएँ!
जय गुरुदेव!!
सलिल भाई, आपकी आपकी शंका का समाधान अत्यंत सरल है...गर्भवती स्त्रियाँ यदि ऐसी यात्रा पर गमन करें तो स्त्रियों के लिए मातृत्व की बाध्यता स्वतः ही नहीं रहेगी। एक अन्य लाभ यह है कि देश के सामने बढ़ती जनसंख्या की समस्या का निवारण भी लगे हाथों हो जाएगा।
DeleteIs yatra ka jeeta jagta udahran Mai.. kandha bhi Mera Tha. Aur mera bada sa Dil hichkole khaye jaa raha Tha... Bus khane vala part Mera andekha hai..
ReplyDeleteजी, मैं मानता हूँ पिछली सीट पर वो आप ही थी!...थोड़ी फ़्रीडम ली थी हमने लिखने में, किस्से के बकरा पार्ट से ताल मेल बिठाने के लिए!
DeleteDesh ki jugaadu sadak waywastha par ek sateek wayang
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteआभार चंचल जी आपका
ReplyDeleteयात्रावृतांत में प्रेमचंद की कहानी' दो बैलों की कथा' के बैल हीरा मोती, इतिहास से अशोक व साइंस से किडनी,गुर्दा, व गाँव व शहर की जीवन शैली सभी काे बहुत ही सुंदरता से लेख में समावेशित किया है|
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