Wednesday, November 1, 2017

दीवाली, पटाका और पटाखा


दिवाली के आते ही घरों में पटाखे आदि लाये जाते हैं. या यूँ कहें कि दिवाली तभी आती है जब पहले पटाखे आदि ले आये जाते हैं. पटाखा बिन दिवाली कंगली-कंगली, अमंगली दिवाली मानी जाती है . खैर पटाखे लाये जरूर जाते हैं मगर घर में तब तक दाखिल नहीं हो पाते जब तक पहले उन्हें छत पर सूर्यदेव के श्रीचरणों में मत्था टिकवा कर उनका आशीर्वाद न दिलवाया जा चुका हो. इसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से पटाखे ऐन वक़्त पर दगा नहीं देंगे अर्थात किसी ऊपरी बाधा के चलते फुस्स हो कर नहीं रह जायेंगे. यह रस्म कुछ-कुछ वैसी ही है जैसे नई बाइक खरीदते समय निबाही जाती है. बाइक को शो रूम से सीधे खजराना गणेश मंदिर में पुजारी जी से बाधा-हरण टीका लगवाने के बाद ही घर लाया जाता है.

छत की कड़ी धूप में संक्षिप्त परीक्षण के बाद जब यह विश्वास हो जाता है कि पटाखे फूटने लायक हो चले हैं, अनारों से अब सीटियाँ नहीं शोले बरसेंगे और चकरियां जो हैं वे चक्कर काटते-काटते अचानक घुटने टेक कर नहीं बैठ जाएँगी तब उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी घर के भीतर आने दिया जाता है. आते के साथ ही सबसे पहले पूरे ढेर में से क्रिकेट टीम का एक हिस्सा निकाल कर अलग रख दिया जाता है. ताकि पाकिस्तान पर जीत का कानफोड जश्न मनाया जा सके और जरूरत बगैर-जरूरत अपनी पीठ पर देशभक्ति का ठप्पा भी लगवाया जा सके. इसके बाद एक और हिस्सा  डोल ग्यारस पर सोये हुए देवों को उठाने के लिए उठा कर एक तरफ कर दिया जाता है. अब जो अस्सलाह  बचता है उसे दिवाली के दिन जनता जनार्दन- खास कर बुजुर्गों, बीमारों, कमतरों, कमजोर दिलवालों और बे-जुबान चौपायों के नाक में दम करने के काम में समर्पित कर दिया जाता है. गली मोहल्लों में पटाखे बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से फोड़े जाते हैं. दिवाली के एक अरसा पहले बाकायदा रेकी करायी जाती है. जानकारों का एक दल उस खास जगह की खोज करता है जहाँ से धमाकों का लुत्फ़ तमाम रहवासियों तक बराबर-बराबर पहुँचाया जा सके. दिवाली वाले दिन चौघडिया देख कर पटाखे फोड़ने के शुभ मुहुर्त की खबर घर-घर भिजवा दी जाती है.

गौर से देखा जाये तो आतिशबाज़ी का काम कुछ-कुछ तक इश्कबाज़ी जैसा है. दोनों ही कामों को सरअंजाम करने के लिए साथियों का सहारा लिया जाता है. अक्सर देखा गया है कि दब्बू किस्म के कुछ इंसान जब तक बिना रुस्वा हुए छोकरी को पटाने की योजना बनाने में भिड़े रहते हैं तब वह किसी मनचले के साथ रफूचक्कर हो चुकी होती है. ठीक ऐसा ही मंजर आतिशबाजी में भी देखने को मिलता  है. इधर टोली के कुछ दानिश्वर पानी की बाल्टी, रेत की ढेरी वगैरह के इंतजाम में लगे रहते हैं उधर कोई फिरकीबाज तब तक अनार फुलझड़ी चला चुका होता है. इन दोनों कामों में लज्ज़त तो खूब है मगर जोखिम भी कुछ कम नहीं हैं. दोनों में ही उम्र भर के दाग मिल जाने का खतरा है, जान पर बन जाने का भी डर है. ज़िगर मुरादाबादी ने क्या खूब कहा है-     

 ये इश्क़ नहीं आसां इतना ही समझ लीजे 

 इक आग का दरिया है और डूब के जाना है

तो मियां, पेपर पर बम रख कर पेपर को आग लगा देने से बम नहीं फूटा करते, पेपर जरूर जलाया जा सकता है! आतिशबाजी का जलवा उसी के नसीब में आता है जो सुतली बम की आँखों में आँख डाल आग से खेल कर उसे फोड़ने की हिम्मत रखता हो. अगर आपको अपनी जान प्यारी है तो आतिशबाज़ी को तो भूल ही जाइए.... चाहो तो बच्चों के साथ मिल कर  चहकते हुए यहाँ वहां टिकलियाँ फोड़ते फिरिए. बकौल फ़ारूक बख्शी-      

ये सौदा इश्क़ का आसान सा है

ज़रा बस जान का नुकसान सा है

सुनते हैं त्रेता युग में रामजी हुए किन्तु उस युग में पटाखे हुए कि नहीं, मुझे नहीं पता. हो न हो पटाखे रहे भी हों....क्यूंकि उस युग में जब शून्य था, पुष्पक विमान था तो पटाखों की क्या मजाल जो रहने से इंकार कर दें. खैर, खुदा न खास्ता गर वाकई उन दिनों पटाखे थे तो सोचा जा सकता है कि रामजी के जी पर क्या गुजरी होगी जिन्होंने एक नहीं, दो नहीं, पूरे चौदह बरस कुदरत के बीच शांति में गुजारे थे. अयोध्या वापसी पर जब उनका विस्फोटक स्वागत हुआ होगा तो वे आने वाले दिनों में राज-काज संभालने लायक तो क्या ही बचे होंगे! सो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि भरत से मिली अपनी खडाऊं फिर से उन्हें सौंप कर वापस वन को लौट गए होंगे. खैर! रामजी की तो रामजी जानें. अलबत्ता दिवाली की रात आप हम पर क्या गुजरती है यह सब अच्छे से जानते हैं. रात के ढाई तीन बजे हैं. बमुश्किल अभी-अभी आँख लगी है. अचानक ऐसा लगता है जैसे किसी ने आपके बिस्तर के ठीक नीचे विस्फोट कर दिया हो. आप बिस्तर से उछल कर जमीन पर आ गिरते हैं. सोचते हैं निश्चित ही यह कोई दहशतगर्द था जो अलार्म लगा कर सोया होगा ताकि सोये लोगों पर घात लगा कर हमला कर उन्हें आतंकित किया जा सके.


दिवाली तो किसी तरह गुजर जाती है मगर अपने पीछे सड़क पर जगह-जगह कचरे के महकते हुए ढेर छोड़ जाती है. जिन्हें देख कर लगता है जैसे जांबाज टुकड़ियों के बीच भोर होने तक आपस में जमकर धमाकेबाज़ी हुई हो. सुना है जिसकी लीद बड़ी हो वही जानवर बड़ा कहलाता है. इसी तर्ज़ पर दिवाली की पटाखा प्रतियोगिता में  भी जिसका कचरा ज्यादा हो वही दल खुद को मन ही मन जीता हुआ मान लेता है. जहाँ तक अपना सवाल है हमें इस बात का सख्त मलाल रहेगा कि किनारे बैठ तमाशा देखने वाले हम जैसे बुजुर्ग इस कचरा अभियान में कोई जाति योगदान नहीं दे सके. इसके लिए हमें उस दिन का इन्तजार है जिस दिन आतंकवादियों की तकनीक हमारे हाथ आ जाएगी और हम भी अपनी बालकनी में खड़े-खड़े मोबाईल के रिमोट कंट्रोल से धमाका कर धरती के सालाना साज-सिंगार में अपना अल्प किन्तु बेशकीमती सहयोग दे सकेंगे.            


32 comments:

  1. Matematical analysis of fire crackers

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  2. Very nicely written.. bin patakhe diwali ka koi maza ni reh gaya...

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    1. True...A part of the post is derived from your childhood days at Indore!

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  4. Thanks fundamental Professor sahab...

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  5. गुरुदेव आपकी यह पोस्ट माननीय सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आती है! अभी भी समय है डिलिट मारिये और बुढ़ापा ऊप्स बुजुर्गियत संभालिये! आदेश कि पटाखों पर रोक है... ऐसे में ऐसी पटाख़ा छाप धमाकेदार पोस्ट का क्या जवाब है आपके पास! और तो और इसे पढ़ने के आरोप में कहीं हम भी अंदर कर दिए गए तो मेरी बची खुची नौकरी भी जाएगी!
    लिहाजा मुझपर दया दिखाएँ... आपको मेरे बच्चों का वास्ता, ऐसी पोस्ट में मुझे शामिल न करें! देशप्रेमी या देश बेवफा जो भी करार दिया जाऊँ, मेरे लिए असहनीय होगा!!
    आपका क्या है, आपको तो बधाई!! बहुत बहुत बधाई!!

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    1. Ye dilli nahi hujoor aur na hi ham itne bujurg! Mashallah abhi Asharamo aur N D Tiwariyon se to jawan thahare!!

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  7. सर, आपके द्वारा किया गया दिवाली का धमाकेदार विवरण पढ़ ही रही थी कि किसी ने पटाखों के आखिरी स्टॅाक को पटखनी देना शुरू कर दिया ... क्या पहुंच है।। ����

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  8. Padha to poora liya na... kabhi bhataka di ho dhamake ne!

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    1. Poora padha sir, patakhon Ki dhamak itni nahi Ki aapke lekh k dhamake matlab padhne se rok de... 😊

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  9. Bilkul sahi sirji, diwali ishkbaji se kam nahi hai.

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  10. Bilkul sahi sirji, diwali ishkbaji se kam nahi hai.

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    1. आपको पसंद आया...आभार!

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  12. बातों ही बातों में कई बातें बता दी सर आपने ....राम जी की हालत खराब हुई थी या नही पर हमारी हालत जरूर खराब हो रही है ...खुशी व्यक्त करने का बड़ा ही बेकार तरीका है ये ...कानफोड़ू पटाखा मानसिक , शारीरिक और संवेदनशील पतन का संकेत है ...कोई बीमार है ...किसी को परेशानी हो रही है , इन सब से परे व्यक्ति अपनी पटाखेबाजी के शौक का ढिंढोरा पीटता है ...बहुत जबरदस्त लेखनी ...👌👌👌

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    1. आपके उत्साहवर्धन के लिए हम आपके तहे दिल से शुक्रगुजार हैं मैडम

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  13. पटाखे का फिजूलखर्च
    राम राज्य का दृश्य
    शांति भंग होने का दुःख
    कानफाड़ू/कर्कश ध्वनि के मनोरोग
    अवांछनीय आकर्षण की चाह
    धन का दुरूपयोग
    सबका बखूबी वर्णन
    लेखनी और लेखन कला को सलाम!सलाम!सलाम!

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    1. धन्यवाद गणपति जी

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  14. लेखन और शब्दों का संग्रह तो लाजवाब हैं। सर

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  15. अच्छा लगा देख कर दोनों शैलियों ke भाषा-कौशल- ताऊवाली शैली और ये वाली !

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