Tuesday, September 1, 2009

जश्न के कोलाहल में

जश्न के जबरदस्त कोलाहल में
आज इतने गहरे उतरो
कि एक मनहूस स्तब्धता कल
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते तुम तक आ पहुंचे
तो तुम्हे ज़रा भी मलाल न हो।
पूरी शिद्दत से आज
इस कदर पंख फडफडाओ
कि कल किसी दिशा से अचानक
कोई क्रूर शिकारी
तुम्हारे सुनहरे-नर्म पर
चिंदी-चिंदी कर हवा में बिखरा दे
तो तुम बेहाल न हो।
कारूं का खजाना हैं
धूप के ये उड़ते हुए टुकड़े भी
देखना! कहीं हाथों से न फिसलें
ताकि कल अगर मौसम पलटे
तो जीना मुहाल न हो।

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