[खबर है कि गुजरे जमाने की बॉक्स ऑफिस पर सुपर-हिट फिल्म शोले एक बार फिर बनने जा रही है।
शूटिंग कभी भी शुरू हो सकती है। हाँ, यह रील शोले नहीं, बल्कि रियल शोले होगी। कास्ट तय हो गयी है, पट-कथा भी लिखी जा चुकी है। ‘फिर शोले’फिल्म की स्टोरी लाइन आपकी ख़िदमत में पेश है।]
क्लैप सीन
तरेरा के बीहड़ों
में गब्बर का गिरोह हजार-हजार कोस की रियाया पर हुकूमत का ठर्रा चढ़ा कर झूमता हुआ।
सामने प्रोफेसरानों की उम्र के कुछ देर पहले घिघियाते साल 63, 64 और 65 अपनी
जान बच जाने के मुगालते में बरबस खिलखिला कर सुरक्षित भागते हुए। अचानक गब्बर की पिस्टल से निकली ठाँय, ठाँय, ठाँय की गूजों के बाद सन्नाटा। धरती पर औंधे मुंह गिरे खून से लथपथ वर्ष 63, 64 और 65। गब्बर
सरदार अपनी पिस्टल की नाल का धुआँ फूंकते हुए।
फ्लैश बैक: शिक्षक गढ़ का सीन
शिक्षक गढ़ का
दृश्य। हर तरफ मुर्दनी छाई हुई। .... खबर है कि गब्बर आ रहा है, वो कभी भी आ सकता
है! रिटायरमेंट के 65 से वापस 62 होने के सरकारी हुक्मनामे के कभी भी आ धमकने की दहशत से बुजुर्ग
गढवासियों के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही हैं। 1947 में बँटवारे के फैसले
के बाद सरहद पर बसे गाँव वासियों को एक अरसे तक यह इत्मीनान नहीं था कि उनका
गाँव हिंदुस्तान में आता हैं कि पाकिस्तान में! कुछ ऐसा ही हाल उन प्रोफेसरों का
था जो 62 के पार थे। वे टोबा टेकसिंह की तरह सोच-सोच कर हलकान हुए जा रहे थे कि वे अभी सेवा में माने जाएंगे या कि सेवानिवृत!
यदि 62 में रिटायरमेंट का फरमान आता है तो उनका विदाई समारोह अतीत में कैसे आयोजित
किया जाएगा? क्या सब टाइम मशीन पर सवार हो सन 2013 या 2012 में जाकर शॉल-श्रीफल ग्रहण करेंगे? इनसे पढे विद्यार्थियों की डिग्रियाँ क्या निरस्त कर दी जाएंगी? डिग्रियाँ वैध बनाने के लिए क्या
इन्हें दोबारा दाखिला लेकर वैध शिक्षकों से पढ़ना होगा? जो पढ़ लिख कर नौकरियों
पर लग चुके हैं क्या उन्हें निकाल बाहर किया जाएगा? मान लो इस खबर की डोंडी दोपहरी में
पिटती है, तो क्या पढ़ाते-पढ़ाते प्रोफेसरों
के हाथों से चाक छीन कक्षा-बदर कर जबरन घर भेज दिया
जाएगा? देर शाम खबर आती है, तो ऐसी सूरत में क्या घर पर फोन लगाकर कह दिया जाएगा, “कल से आपको कॉलेज आने की जरूरत नहीं
है। आपकी पारी आज सायं 7 बजे खत्म हो चुकी है...अब आप सेवानिवृत्त हैं।”
चुनाव आते ही
प्रोफेसरों में सवाल सवाल का एक दिलचस्प खेल शुरू हो जाता है। हर कोई दूसरे से
पूछता है- “क्यूँ, ड्यूटी तो नहीं आयी ना?” अगर नहीं आयी हो तो दूसरे का जवाब होता है- “अभी तक तो नहीं आई, पर पता नहीं कब आ जाए!” 65 से 62 के खटके के चलते अब रिटायरमेंट-रिटायरमेंट का खेल खेला जा रहा है। ।
इस खेल में पूछने वाला पूछता है, “और, आपका रिटायरमेंट कब है?” तो सामने वाले का जवाब कुछ ऐसा होता है- “अभी तक तो 2017 है, पर पता नहीं कब तक?”
[सस्पेन्स!! आखिर 65 से 62 की उलट बांसी
की वजह है क्या? कोई तो राज है जो इसकी तह में छुपा है!
जवाब जानने के लिए हमें फिर बीहड़ चलना होगा।]
तरेरा बीहड़ का सीन
सांभा नाम का, सरदार का एक मुंह लगा बागी। हिन्दी के किसी प्रोफेसर द्वारा पीएच. डी. कराये
जाने से इंकार के बाद बेहद खफ़ा। प्रोफेसरों की पूरी कौम से बदला लेने के लिए एक अदद मौके की तलाश में। एक दिन
सरदार को खुस्स देखा तो आवाज़ मे नरमी भर कर बोला, “सरदार, ये बूढ़ी गायें अब बस घास खाती हैं और दिन भर जुगाली करती हैं। पहले सी दुधारू
भी नहीं रहीं। इन्हें बूचड़खाने भेज दिया जाए तो सरकार का खर्च ही नहीं बचेगा, उलटे आमदनी भी होगी। आप तो जानते ही हैं कि आजकल अपना पकड़ का धंधा कितना मंदा
पड़ गया है।” पहले पहल सरदार माना नहीं, पलटकर बोला- यूं ही हांक रहे हो सांभा, या तुम्हारे पास कोई सुबूत है कि ये गायें अब थनों से नीचे दूध नहीं उतारती? यह सुन सांभा झट से उठा और खोह में अस्सलाह में छुपा कर रखी एक किताब उठा
लाया। बोला- सरदार, जान की बख्शीश देते हो तो पढ़ कर सुनाऊँ? लिखा है:
कहीं पे
धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे
शाम सिरहाने लगा के बैठ गए।
दुष्यंत नाम के प्रोफेसर ने खुद कुबूल किया है, अब तो मानोगे ना? उसका कहना है कि सांझ होते–होते ये लोग सिरहाना ढूँढने
लगते हैं। सरदार, आप सोच नहीं सकते ये कितने शातिर हैं! इन्होंने सन्यास से पहले अपने लिए वानप्रस्थ का इंतजाम
कर रख छोड़ा है। आखिर के तीन चार साल सुस्ताने के....रिसर्च कराना धीरे-धीरे
ठप्प, कक्षाएं भी शनै-शनै गोल! फिर 65 से 62 का आयडिया सरदार की खोपड़िया में घुसाने
की गरज़ से जोड़ा- सरदार, इस तरकीब के दो फायदे हैं! बोले तो फक्कत एक गोली
से दो-दो भेजे बाहर!! अव्वल तो इन मरदूदों को रिटायरमेंट से पहले किस्तों में
रिटायर होने की कोई सुविधा नहीं मिलेगी, यानि आखिरी दम तक जम कर काम लेने की फुल गारंटी! ग्लोबलाइज़ेशन
का भी यही तक़ाज़ा है। दूसरे, दुनिया का सबसे बड़ा सरदार, अमरीका भी आपके इस कारनामे पर खुस्स होगा
और आपको खूब साबासी देगा!
इतना सुनना था कि गब्बर सुरती थूक उठ खड़ा हुआ और बेल्ट फटकारते हुए चट्टान पर
इधर से उधर टहलने लगा। ....फिर मन ही मन कुछ ठान कर टीले पर बैठ
गया और पिस्टल में गोलियां भरने लगा।
रिटायरमेंट को रियल शोले के द्वारा बहुत ही अनोखे ढंग से प्रदर्शित किया गया है अन्त से पहले की शायरी भी रोचक लगी. प्रसंशनीय लेख .
ReplyDeleteआपका आभार, सुनीता जी...नज़रे इनायत के लिए!
Deleteत्यागी सर!
ReplyDeleteई जो सोले का रीमेक बनाइ हैं आप... इसको पढ़ने बाद 63, 64और 65 वाले गुरूजी के मन में क्रोध का सोले भड़कने लगा होगा और गब्बर बोला होगा - सो ले!! नहीं तो सुला दूँगा।
हमारे बैंकिंगगढ़ वालों ने तो गब्बर को बोरियाँ भिजवाई थी की भैया 60 सर 65 कर दो। मगर का मालूम का हुआ।
खैर... आपके तमाम साथियों से सहानुभूति दर्शाते हुए यही कामना है भगवान उन्हें एक अदद ठाकुर या एक जोड़ा जय - वीरू प्रदान करे।
आपका शुक्रिया, सलिल भाई....गब्बर की गोलियों के आगे सहानुभूति की ढाल भले ही न चले! हाँ, आपके गुजरात में कहीं वीरू-जय या खुद ठाकुर दिखें तो हमारा पता उन्हें दे देना।
ReplyDeleteरही बात बोरियों की...आप बेफिक्र रहें। वो मेरा एक दोस्त है दिल्ली के मालगोदाम मे। उससे पुछवाता हूँ कि वज़न कुछ कम तो नहीं रह गया बोरियों का! ....बस काम हुआ ही समझो!!
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन इंडियन इंडिपेंडेस लीग के जनक : रासबिहारी बोस - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह शोले का क्या नया वर्शन बनाये हैं।
ReplyDeleteprastuti ak par rang anek hain ..sir ........gagar men sagar bhad diya ......prasangik rachna ...........
ReplyDeleteDhanyavad madam Maharana....asal me bhog se ye post nikli hai.
ReplyDeleteBhugtbhogi jo thahre!
khair.. ab to aisa malum padta hai ki 63, 64 aur 65 to marne k baad bhi uth kar bhaag khade hue! Gabbar haath malta rah gya?!
ReplyDeleteअभी तो 63, 64, और 65 जान बच जाने से खिलखिला कर भाग ही रहे हैं....गब्बर अभी पिस्टल ताने खड़ा है। बस सोच में है कि कितनी मोहलत दूँ!!
ReplyDeleteचका चक. गब्बर भड़क जाएगा तो 59, 60 और 61 क़ा भी नंबर लगा देगा.
ReplyDeleteआप पधारे, अपुन धन्य हुए..... अब गब्बर से भी निपट लेंगे!!
ReplyDeleteधन्नो और बसंती नहीं दिख रहे…!!
ReplyDeleteमुझे तो बसंती दिख रही हैं... धन्नो पार्किंग में होगी!! :)
Deleteअब डराओ मत भिया …गब्बर क्या कम था!
ReplyDeleteGabbar ka ant aate aate to kaiyon ka ant aa chukega...
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