25
मई 2015
का
दिन. आन्दोलनकारी गुज्जर रेल की पटरियों पर, हम रेल में! यानी इतिहास रचने का
पूरा-पूरा मौका. अफ़सोस, हम ही नहीं लपक सके! दरअसल हमारी होशियारी ही हमें ले
डूबी. जाने हमें क्या सूझा जो हमने बेटे की बारात की यात्रा के लिए एक पूरा दिन
रिजर्व में रख लिया. उधर दूल्हे और उसके खास मित्रों के फ्लाईट के टिकट बुक करा
दिए. खैर, माना कि हमसे गलती हुई, पर रेलवे
वाले तो सहयोग कर सकते थे! चाहते तो दर्जनों दूसरी गाड़ियों की तरह
दिल्ली-त्रिवेंद्रम राजधानी को भी वे रद्द कर सकते थे. शर्म की बात तो यह है कि
बदले हुए रूट पर चलाने के बाद भी वे उसे बारह घंटे से ज्यादा लेट नहीं कर पाए. इस
सबका नतीजा यह हुआ कि हम इतिहास बनाते-बनाते रह गए. हमारे बेटे की शादी को दुनिया की पहली ई-शादी
होने के गौरव से वंचित हो जाना पड़ा. वरना हम रेल के डब्बे में स्काइप पर मंडप में
बैठे पंडितजी से मन्त्र पढ़ रहे होते.
आगे
का किस्सा यूँ कि जहाँ बाप हम एक झटके में ही बन गए थे, वहीँ कानूनन बाप यानि
फादर-इन-लॉ बनने के लिए हमें जाने क्या-क्या पापड़ बेलने पड़े! अट्ठाईस की शादी बताई
गयी थी किन्तु हमें सत्ताईस को ही अलसुबह उठा दिया गया. पता चला मंडपम के लिए हमें
तैयार करने 'मेक अप आर्टिस्ट' आये हैं. फ़ादर-इन- लॉ न हुए, कोई कथकली कलाकार हो
गए! फिर शुरू हुआ नौगजा धोती पहनने का कार्यक्रम! हमने बहुत ना-नुकुर की. कहा-
हमें बख्शो भाई, शादी बेटे की है हमारी नहीं. बोले- चिंता मत करो उसे भी नहीं
छोड़ेंगे. खैर, टॉपलेस वस्त्रम में मंडपम में लाये गए तो वहां उसी युनिफार्म में
पिता अपनी पुत्री के संग पहले से मौजूद थे. दो तमिल पंडित उन्हें कुछ रस्में कराने
पर पिले पड़े थे. हमें तत्काल संस्कृत भाषी पंडितों की दूसरी जोड़ी के हवाले कर दिया
गया. उन्होंने बताया कि आपसे बेटे की शादी के लिए 'अनापत्ति प्रमाणपत्र' माँगने के
लिए कुछ रस्में की जायेंगी. कोई उनसे पूछे- भले आदमियों, पचास बारातियों को
अड़तालीस घंटे की रेल तपस्या कराने के बाद क्या हम यह कहने को हाजिर हुए हैं कि
हमें यह रिश्ता मंजूर नहीं! अब जो नज़ारा नजरों के सामने था उसे देखने पर ऐसा मालूम
होता था मानों अक्षय तृतीया पर जोड़ों का 'पेरेलल' में पाणिग्रहण चल रहा हो.
फिर
शुरू हुआ हमारी दुर्गति का असली सिलसिला. इस दुर्गति के दो तीन कारण थे...अव्वल तो
बंद हॉल के अंदर लगातार मंगल-ध्वनि, उस पर हमारा जरा ऊँचा सुनना. दूसरे देवभाषा का
हमारा कच्चा ज्ञान! तीसरी सबसे अहम् वजह जो थी, वो थी संस्कृत के मन्त्रों का तमिल
बघार में हम तक पहुंचना. पर हम भी खाये-पिये थे. हमने बुदबुदा कर चकमा देने की वही
स्ट्रेटेजी पकड़ी जो हम खुद के पाणिग्रहण में आजमा चुके थे. किन्तु यहाँ के पंडितजी
बड़े चालाक निकले. प्रायमरी के किसी घाघ मास्टर की तरह वे अगले हरुफ़ पर तब तक नहीं
पहुंचते, जब तक पिछला ठीक-ठीक नहीं बुलवा लिया जाता. इस दौरान हमसे क्या क्या
हरकतें नहीं करवाई उन मरदूदों ने ! .... कभी वो हमसे कानों पर हाथ धरवाते, कभी हवा
में सूत सा कतवाते. कभी उठक-बैठक लगवाते तो कभी दंडवत करवाते. मालूम होता था गोया
पंडितों के चोगे में फायनल ईयर के सीनियर अपनी पूरी मंडली के साथ हमारी रेगिंग का
मज़ा लूट रहे हों. मन में बारहा खयाल आता कि भाग खड़े हों, पर हनु के नुकसान की सोच
कर रुक जाते. उधर लड़की के पिता भी अनजान बने बीच-बीच में कनखियों से हमारी दशा देख
कर कुटिलता से मुस्कुरा देते. बचपन में पढ़ी लोमड़ी और सारस की कथा याद हो आई...समझ
गए यह सारस का बदला है. सगाई के वक़्त फलौदा में जो गत हमने उनकी बनाई थी, उसी का
फल गुरुवायूर में आज हम भुगत रहे हैं.
सदया
(केला पत्ता भोज) के ऐलान के साथ रस्में ख़त्म हुई, पर परीक्षा की घड़ियाँ अभी बाकी
थीं. अपना तो सर ही चकरा गया जब सामने फैले केले के पत्ते पर कई कतारों में
थोड़ी-थोड़ी दूर पर सैकड़ों नैवैद्यम की फसल सी पलक झपकते ही रोप दी गई. अब ठीक उसी
पहेली की सी सूरत थी जिसमे बताना होता था कि भूल भुलैय्या के इधर खड़ी बकरी दूर
किसी कोने में रखे घास के ढेर तक कैसे पहुंचेगी! समझ नहीं आ रहा था कि क्या खाया
जाये, और जो खाया जाये वह कैसे खाया जाये. एक तरफ चटनी को सब्जी और सब्जी को चटनी
समझने का पूरा खतरा था. तो दूसरी तरफ हलुवे को कढ़ी के साथ खाये जाते देख जगहंसाई
का डर भी था. गनीमत ये रही कि हमारे बाजू में एक मल्लू भाई साहब आ बैठे. उन्हें
देख-देख कर खाते हुए अपनी नैया भी वैसे ही पार लग गयी जैसे परीक्षा हॉल में
होशियार बच्चे के ठीक पीछे बैठा बुद्धु बच्चा भी टीप टीप कर पास हो जाता है!
गुरुदेव जय हो! एक लंबे इंतज़ार के बाद यास एपिसोड सेंसर ने प्रसारण के लिए पास किया और कैंची ऐसी चलाई है कि अंत बस यूँ ही सा हो गया! ख़ैर पुत्र और पुत्रवधु को पुनः आशीष और इस वर्णन के बाद हम सोच रहे हैं कि हम अच्छे बचे!
ReplyDeleteइस पोस्ट ने कहाँ ले जाकर पटका है! अगर हमारी मोहब्बत की जड़ में घरवालों ने मट्ठा न डाला होता तो हम भी वो सब योगाभ्यास कर रहे होते जो सब आपने बताया!
मज़ा आया गुरुदेव, पर अंत अचानक कर दिया आपने! बहुत दिनों बाद पहली टिपण्णी मेरी!
आप एक नंबर पर हों न हो ,आपकी टिप्पणी सदा एक नंबर की ही होती है, सलिल भाई!
ReplyDeleteरही बात अंत की, मै आपसे सहमत हूँ...पर सवाल यह कि ओ हेनरी, मोपांसा और सलिल वर्मा का अंदाज़ कहाँ से लाऊं!
गुरुदेव आप पाप का भागी बनाएंगे मुझे! आपकी तमाम पोस्ट्स पढी है मैंने और जानता हूँ कि आपके व्यंग्य की धार कैसी होती है! इसलिए ये अंत खटका!
Deleteरही बात मोपासाँ और ओ. हेनरी की, तो गुरुदेव नत हूँ आपके समक्ष!! आपने जो सम्मान मुझे दिया वो मैं बिना विरोध लौटा रहा हूँ! शायद लौटाने से साहित्यकार बन जाऊँ! :)
यह बात मैं सौ फ़ीसदी होशो हवास में, बिना लेशमात्र भी हास्य-व्यंग्य बोध के कह रहा हूँ...सलिल-लेखनी में समापन का फन इन उस्तादों में से किसी से भी कम नहीं है!
Deleteमंटो का नाम भी इस फेहरिस्त में रखा जा सकता है....
Bahut sundar wyakhya sir .... mn ke bahut sare bhawon ki ati uttm abhiwayakti....
ReplyDeleteaap ka ye haal hua to socho mera kya hua hoga.. maine to ek sadya bhi miss kar di! :P
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आपका लिखा इतने फुरसत से पढ़ पाया। वाह! क्या वर्णन है! आनंदम। और हाँ.... सलिल दा के टीप की एक पंक्ति कापी-पेस्ट...हमारी मोहब्बत की जड़ में घरवालों ने मट्ठा न डाला होता तो हम भी वो सब योगाभ्यास कर रहे होते जो सब आपने बताया!
ReplyDeleteफुर्सत से पढ़ने और काबिले तारीफ पाने का आभार!
Deleteएक दूसरी पोस्ट डालिए जिसमें कुछ मत लिखिए...सिर्फ इस लिखे के अनुसार चित्रों का चयन कर पोस्ट कर दीजिये। शीर्षक इसी का पार्ट 2 लिखिए और इसका लिंक दे दीजिये। आनंद आएगा।
ReplyDeleteफोटो का आपका विचार उत्तम है...देखना है कि अपने बस में है कि नहीं!
Deleteथोडा इंतजार करें...
ओह ,तो आप क्या समझे थे सबकुछ इतना आसान है .... बधाई हो भाई .....मगर मिठाई न जाने कब तक तरसाएगी ... :-) ...
ReplyDeleteएकाध फोटो फेसबुक से यहाँ जमा कर लेते तो और अच्छा होता ..... :-)
जी आभार...
Deleteमिठाई तब तक तरसायेगी जब तक आप चाहोगे!
यानी जब तलक आप आने की फुर्सत निकालोगे.
फोटो का देखता हूँ कर पाऊँगा तो...
और हाँ ...हनु को बधाई ....
ReplyDeleteMai bhi jeeta jagta udaharan hoon iska.. BarabRi se saath diya humne bhi...but maja aaya hame to!
ReplyDeleteMai bhi jeeta jagta udaharan hoon iska.. BarabRi se saath diya humne bhi...but maja aaya hame to!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ब्लॉग बुलेटिन: प्रधानमंत्री जी के नाम एक दुखियारी भैंस का खुला ख़त , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteAbhar Shivam bhai....Apki bhains ne hamari yah post (gaay) feeki Kar di!
DeleteLajawab likha hai...
आप इन्हें चोरी की रचना पर बधाई दे रहे हैं, यह फ़ेकिंग न्यूज़ का लेख है (15 अकटूबर 2015), जिसे इन्होंने बिना स्रोत का ज़िक्र किये अपने ब्लॉग पर छाप दिया.
Deleteइन सागर साहब ने इस लेख को आपके शिवम भाई से एक दिन पहले ही अपने ब्लॉग पर छाप दिया था लेकिन उन्होंने ईमानदारी से स्रोत बता दिया था- http://saagartimes.blogspot.in/2015/11/blog-post_47.html
DeleteYe to Bahut Hi Mast tragedy thi Uncle ji... Maja aagya aapki Aapbiti sun Kar
ReplyDeleteArey vaah Gauri! Khushaamadeed....
Deleteजब एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति से मिलन होता तब कुछ अलग प्रकार के अनुभवों का मिलना तो आवश्यक हो जाता है त्यागीजी
ReplyDeleteJee apke shubhagman se dhanya hue ham!
DeleteJee apke shubhagman se dhanya hue ham!
Deleteसुन्दर प्रस्तुति , बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
ReplyDeletehttp://madan-saxena.blogspot.in/
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http://mmsaxena69.blogspot.in/
lagta hai aapka hal to madari ke bandar jaisa ho gaya tha...gulti bhi marna .....magar salike se...
ReplyDeleteसही फ़रमाया जनाब...
DeleteBahut hi umda varnan kiya hai aapne uncle ji.
ReplyDeleteAapne jo hasye-ras isme milaya hai vo kabile tareef hai.
Agar Hanu ne mujhe bataya hota to shayad mai apne Gurjar bhaiyyo ko keh kar lohpathgamini ko tanik aur der kara deta. Hame bhi e-vivaah dekhne/sunne ka avsar mil jaata.
Aapke samast parivaar ko vivah ki anek anek shubhkamnaein.
Aho bhaya Jo apna likha aap ko achcha laga jagirbhati ji!
ReplyDeleteShubhkamnaon ka abhar....
Uncle aur thoda detail mein likhiye ek aur post... Ye to bohot umda hai... :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपोस्ट आपने पढ़ी और पसंद की , आभार कार्तिक!
ReplyDeleteआगे और बढाने की कोशिश करूँगा ....बस आयडिया आना चाहिए!
Wah sir maza aa gaya. Ghar mein bhi sabhi ko sunaya. Sabko bohot pasand aaya.
ReplyDeleteआज ब्लॉग पर? बहुत दिनों बाद? धन्यवाद...
DeleteNamaskar Uncle ji! Aaj aap ki kuch rachnayein padhne ka mauka mila. Hansi se lot pot kar dene wala hai aapka lekhan! Aaj se main aapke blog ki niyamit follower hoon. Swati ( Manu ki mitr)
ReplyDeleteलेखनी की खुशकिस्मती जो यह आपके चेहरे पर हंसी ला पाने में कामयाब हुई! लेखनी चलाने वाला आपका कर्जदार हुआ...!!
Deleteइतने दिन पहले परोसा, आज ठंडा खाया.... फिर भी चटपटा लगा! यानि आपके स्वाद तंतुओं पर उम्र का कोई असर नहीं हुआ!! या यूं कहें कि ये और तीखे हो गए चढ़ती उम्र के साथ........
ReplyDeleteबहरहाल बंदा आपका आभार प्रकट करता है.
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