Thursday, May 1, 2014

एक घंटी की अग्नि परीक्षा



किसी को मजा चखाना हो, भरे बाज़ार पगड़ी उछालनी हो या फिर खाट ही खड़ी करनी हो, तो दुबई के भाई हैं ना! दुबई दूर लगती हो अथवा सुराज का कीड़ा काटता हो तो घर के पिछवाड़े ही सीबीआई है, आरटीआई है, पीटीआई है। इनके गुर्गे हैं, लठैत हैं, पहलवान हैं। अब हम जैसे दो कौड़ी वालों पर सीबीआई तो क्या हाथ डालेगी! हाँ, बाकी बचे देसी भाइयों में से एक की बानगी देखिये। (वाकया एकदम सच्चा है, बस लज़्ज़त बनाने की गरज से वार्तालाप की प्रस्तुति में थोड़ी ड्रेसिंग की छूट ली गयी है- बोले तो, क्रिएटिव फ़्रीडम’)

मौका-ए-वार्तालाप

एक रोज रात तकरीबन 9 बजे लेंडलाइन फोन की घंटी बजती है। रिसीवर उठाया तो पता चला कि शहर के एक नामचीन अखबार के और भी भीषण नामचीन रिपोर्टर हैं। दीगर सी बात है कि उस वक़्त हम एक बेहद तुच्छ और घरेलू क्रिया यानि खाना खाने में मुब्तला थे। वे रुतबे की ठसक में थे। सो, यह पूछने की ज़हमत उठाने का सवाल ही नहीं उठता था कि क्या हमें उस वक़्त बात करना गवारा होगा? वे तो यक-ब-यक ऐसे घुसे चले आए जैसे रेल के डब्बे में ताली बजाने वालों की उपद्रवी मंडली घुस आती है। अब अपनी भलाई इसी में थी कि फौरन जो भी बने वह नेग उनकी हथेली पर टिका कर अपना पिंड छुड़ा लें। फिर लगभग बलात जो वार्तालाप सम्पन्न हुआ वह अविकल आपके सामने प्रस्तुत है।

वार्तालाप: सर से पा

वे- परसों नैक (निरीक्षण) की टीम आपके विभाग के दौरे पर आ रही है और आपके यहाँ अभी भी हाथ से पुराने जमाने की घंटी बजाई जा रही है। नैक के सामने क्या इज्ज़त रह जाएगी आपके विभाग की?
हम- सर, विभाग की इज्ज़त घंटी पर ही टिकी है क्या? नैक की टीम पढ़ाई-लिखाई , शोध वगैरह भी तो देखेगी। लैब-लाइब्रेरी और प्लेसमेंट भी देखेगी। केवल घंटी ही थोड़े देखेगी!  
वे- ठीक है, पर जमाना कितना आगे निकल गया है और आप है कि जहां थे, वहीं खड़े हैं! आप नहीं समझते आको बदलते वक़्त के साथ बदलना चाहिए?
हम- जी, मगर हमारी घंटी शुद्ध पीतल की है, चन्दा सी गोल मटोल। मनभावन टनाटन आवाज़ निकालती है। ईको-फ्रेंडली है, और बिजली के भरोसे नहीं रहती। बड़ी बात यह कि ठोके लगाने वाला कर्मी इस कला में माहिर है। अपने सधे हुए हाथ से वह इस अदा से माकूल जगह चोट करता है कि घंटी की आवाज़ भवन के कोने-कोने तक तो पहुँचती है, पर आर-पार जाने की हिमाकत नहीं कर पाती। ऐसी घंटी से भला किसी को परहेज क्यूँ हो?
वे- ऐसा है तो बड़े-बड़े विभागों में आज इलेक्ट्रिक बेल क्यों यूज़ हो रही है? जब वे कर रहे हैं तो आप क्यूँ नहीं कर सकते?
हम- मान लिया हर तरफ आर्केस्ट्रा का शोर है पर इस वजह से हम अपनी बांसुरी फेंक दें, तानपुरा तोड़ दें, पेटी (हारमोनियम) बजाना छोड़ दें? यह तो कोई बात नहीं हुई!
वे- आप मुद्दे से बहक रहे हैं। मैं घंटी की बात कर रहा हूँ, आप बीच में पेटी ला रहे हैं!
हम- मेरा मतलब था कि दूसरे विभाग कल के पैदा हुए हैं। हमारा विभाग सबसे पुराना है। अपनी बिल्डिंग भी किसी पुश्तैनी हवेली जैसी है। .....और आजकल ऐसी घंटियाँ मिलती भी कहाँ हैं?
वे- ठीक है, पर एक तरफ आप कंप्यूटर चला रहे हैं और दूसरी तरफ आदम बाबा की घंटी! बाहर वालों पर क्या इंप्रेशन पड़ेगा?
हम- घंटी से भला इंप्रेशन क्यों बिगड़ेगा? क्या मंदिरों में आज भी घंटे-घड़ियाल नहीं बजते, अदालतों में खुद जज साहब हथोड़े की चोट से घंटा बजा कर आर्डर’, आर्डर नहीं करते?
वे- कुछ भी कहो, देखना आपकी यह घंटी ग्रेड की तमाम कोशिशों पर पानी फेर कर रहेगी!
हम- सर, यह कोई हमारा पहला निरीक्षण तो है नहीं! पाँच साल पहले जब हमें ग्रेड मिला था, तब भी यही घंटी थी।
वे- मिल गया होगा! मगर पीतल कि यह घटिया घंटी आपको हर बार नहीं दिलवा सकती। आखिर आप इलेक्ट्रिक बेल लगवा क्यों नहीं लेते?
हम-  देखिये जनाब! आप होते कौन हैं हमसे इस तरह जवाब तलब करने वाले? वल्लाह, आज तलक हमारे अफसरों तक ने हमसे इस बाबत कोई सफाई नहीं मांगी!
वे- पर हमारी भी तो कोई ज़िम्मेदारी बनती है कि नहीं? हम प्रैस वाले हैं। सड़ी-गली प्रथाओं का विरोध हम नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? निज़ाम की खामियों का पर्दाफ़ाश करने का पूरा हक़ है हमें। (फोन रख देते हैं)

पश्च वार्तालाप टीप

अगले दिन सुप्रभात में नैक के सामने घंटी बजी, तो बज जाएगी घंटी नामक लेख छाप कर उन्होने आखिर घंटी बजाने की कुप्रथा का पर्दाफ़ाश कर ही दिया!
गनीमत यह रही कि अव्वल तो हमारे विभाग को एक बार फिर ग्रेड मिल गया, वरना ग्रेड का ठीकरा उस गरीब घंटी के सर जा फूटता। दूसरे, यह भी अच्छा हुआ कि नैक की तैयारियों के चलते, वक़्त की तंगी से हम इलेक्ट्रिक बेल नहीं लगवा पाये। वरना ग्रेड का सेहरा अपने सर बांधते हुए वे एक बार फिर छाप देते-
सुप्रभात ने ही सबसे पहले छापी थी खबर
नैक के सामने घंटी बजी, तो बज जाएगी घंटी


  

20 comments:

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  2. ये पेपर वाले समझते हैं कि ये किसी की भी घंटी बजा सकते हैं……

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  3. Hahaha. Today's media is not REPORTING, its SENSATIONALIZING.

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  4. बहुत खूब ,सदैव की भांति बेहतरीन अंदाजे बयां ए वाक़या। ए ग्रेड की घोषणा के बाद फ़ोन नहीं आया उन खबरनवीस महोदय का ?

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    1. “A” नहीं मिलता तो जरूर आता…. !

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  5. hahahaha! Can you upload a snapshot of that article?

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  6. Kursi par viraajman hamari hasi ki kalkaari to aisi chhuti ki aas pados k logo ne kaha kahin baura to nahi gye ho!
    Mauke ko taadte hi humne bhi aap ka blog un logo ko padhva maara.. Isi bahane aap k blog k ek-do aur mureed badh jayenge..

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  7. vaah mouke ka badhiya fayada uthaya...blog bechne ki achchi tarqeeb!!

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  8. त्यागी सर!
    गोया आपने बीड़ा उठा ही लिया है कि जो बातें मैंने पिछली पोस्ट पर कही थीं और जिनका आपने सार्वजनिक रूप से खण्डन किया था उसे सच साबित करके ही दम लेंगे!! अगर खुलकर कहूँ तो अभी हमारे सिर से "जलपति बप्पा" का भूत ही नहीं उतरा था कि आपने "मौक़ा-ए-वार्तालाप" की घण्टी बजा दी. अब पता नहीं ये हमारे दिमाग़-ए-शरीफ में कब तक यूँ ही करती रहेगी टन्न्न्न्न टन्न्न्न्न टन्न्न्न्न!!
    वैसे शुकर मनाइये कि उन्होंने दो ढाई घण्टे बाद घण्टी नहीं बजाई. वर्ना आप 'हलो' कहते और वो जनाब चीख़ते हुए उधर से फ़रमाते, "चैन से सोना है तो जाग जाओ और 'ए' ग्रेड पाना है तो घण्टी बदलवाओ!"
    ख़ैर, उन जनाब को पता नहीं था कि किससे पंगा ले रहे हैं. हमारे त्यागी सर, वो शै हैं जो पीतल की घण्टी से भी उतनी ही शिद्दत से मोहब्बत करते हैं जितनी अपने सोने जैसे काम से. ऐसे में 'ए' ग्रेड भला क्या कहाँ उनसे पीछा छुड़ा सकता है!!
    गुरुदेव! अगर छा जाना इसी व्यंग्य लेखन को कहते हैं तो छा गये आप!! प्रणाम स्वीकारें अपने इस शिष्य का!!

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    1. हम डर रहे थे कि कहीं हमने आपको मेल से पोस्ट की घंटी दे कर डिस्टर्ब तो नहीं किया! और, कहीं सफर में अँग्रेजी वाली ‘सफरिंग’ का सबब तो नहीं बने! किन्तु आपका जवाब पा कर सब डर काफूर हो गए। तसल्ली भी हुई कि आप सही सलामत पहुँच गए।
      आपकी टिप्पणियाँ आपके लेखों की तरह अलग तासीर लिए होती हैं। इसीलिए, मुझ समेत कई ब्लोगर्स आपकी और तकते रहते हैं।
      वैसे भी ब्लोगिंग की हमारी दूसरी पारी आपकी बदौलत है.... ना आप बुलाते, ना ही हम आते!!

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  9. हा हा इधर भी आर्डर घूम रहा है झूठ के पुलिंदे इक्ट्ठा किये जा रहे हैं । बहुत बढ़िया :)

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    1. धन्यवाद, जोशी जी।

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  10. इस कठिन परीक्षा में सफलता के लिये पीतल की घंटी को बधाई

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  11. Thnx professor, you could decipher the msg correctly. Who knows it better than you, being head and dean for a long period in politically vibrant capital city like Lucknow!!

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  12. wah wah kya kahne ghanti ke ek bechari ghanti jiske sir mad rahe the asaphlata....

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  13. wah wah kya kahne ghanti ke ek bechari ghanti jiske sir mad rahe the asaphlata....

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    1. Ghanti ke baraaste asafalata ham par hi aati...ghanti akhir kiski hai?

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  14. घंटी पर गहराई से चिंतन किया गया उसके सभी पहलू पर प्रकाश डाला गया .बेहतरीन लेख .

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