Friday, August 13, 2010

परप्रांतीयता पर एक राज्य नेता की पत्रकार वार्ता

पत्रकार- महोदय, आपका बयान आया है कि परप्रांतीय लोगों से राज्य में मलेरिया फैल रहा है. हमें तो प्राइमरी में यही पढाया गया था कि मच्छर ही मलेरिया फैलाते हैं. हमारी तुच्छ बुद्धि में यह बात नही बैठ पा रही कि आखिर प्रांतीयता मच्छरों की जननी कैसे हो सकती है. 
राजनेता- वे शिक्षक जिन्होंने आपको यह गलत पाठ पढाया अवश्य ही परप्रांतीय रहे होंगे! 
पत्रकार- चलिए मान लेते हैं कि पाठ गलत था. किन्तु गलत पाठ पढने से मच्छर तो नहीं पैदा हो जाते? तब प्रान्त पर भला मलेरिया संकट कैसे आ सकता है? 
राजनेता- आप नहीं जानते परप्रांतीय जब भी आते हैं तो अकेले नहीं आते. खटमल भरा बिस्तर, मच्छरों की पौधशाला कीचड और ख़राब रहन सहन भी साथ लाते है. 
पत्रकार- लेकिन परप्रान्तियों की झोंपड पट्टियों में पनपने वाले मच्छर तो इन्हीं गन्दी बस्तियों के रहवासियों को काटेंगे ना?
राजनेता- यही तो भेद है. ये मच्छर भी परप्रांतीय होते हैं, इसलिए हमारी संस्कृति को नष्ट करना चाहते हैं. सो रातों में चुन-चुन कर स्थानीय लोगों को ही काटते हैं.
पत्रकार- तो मलेरिया की रोकथाम का क्या रास्ता सोचा है आपने?... क्या स्वच्छ और पक्के मकान मुहैय्या कराने अथवा कोई ज्यादा कारगर मच्छर मार दवाई विकसित करने की योजना है? कहीं आप प्रत्येक राज्यवासी के लिए एक यू आई ड़ी बनवाने की तो नहीं सोच रहे?
राजनेता- नहीं, नहीं...ये सब बकवास हैं. एक ही रास्ता है- परप्रान्तियों की घुसपैठ पर पूरी तरह रोक लगाना. जो पहले से यहाँ रह रहे हैं, उन्हें डंडे के जोर पर खदेड़ बाहर करना. 
पत्रकार- माफ़ कीजिये, आप ने फैज़ साहब के वे शे'र तो सुने होंगे...
        हम कि ठहरे अजनबी इतनी मुलाकातों के बाद 
        फिर बनेंगे आशना कितनी मुलाकातों के बाद 
        कब नज़र में  आएगी  बेदाग़  सब्जे की  बहार
        खून के धब्बे  धुलेंगे  कितनी  बरसातों के बाद 
राजनेता- बब्बर शेर मुजरे नहीं सुना करते अदीब...परदेसियों के तो हरगिज़ नहीं! वे तो बस दहाड़ सुनते है. आपका काम सवाल पूछना है, आप सवाल पूछिए.
पत्रकार- मेरा सवाल है कि परप्रांतीय कोई उठाईगीर हैं क्या? इनकी अगली पीढ़ी भी यहीं इसी प्रान्त में पैदा हो चुकी है. आप बताएँगे कि इन्हें प्रांतीय कहलाने में अभी और कितना अरसा लगेगा?
राजनेता- साँप होता है न, उसका बच्चा तो सपोला ही कहलायेगा? शहर में रहने से क्या अपना स्वभाव छोड़ देगा?...ये लोग परप्रांतीय थे और परप्रांतीय ही रहेंगे. 
पत्रकार- चलो, मलेरिया का खात्मा तो हो गया. मगर डायबिटीज़, कैंसर, एच आई वी, हार्ट अटैक आदि का क्या होगा? अपने प्रिय प्रान्त को एक सम्पूर्ण निरोगी प्रान्त बनाने के लिए आप कौन से ठोस कदम उठाने जा रहे है. 
राजनेता- हम प्रादेशिक सीमा के चप्पे-चप्पे पर कार्यकर्ता तैनात करेंगे. जो परप्रांतीय मानसूनी हवाओं को प्रदेश में तभी प्रवेश देंगे जब वे परप्रांतीयता नामक विषाणु से रहित होने का प्रमाण प्रस्तुत करेंगी. साथ ही वे यह भी देखेंगे कि बैरी बदराओं की आड़ में राज्य की जनता की सेहत से खिलवाड़ करने के लिए कहीं पडौसी सूबों से नर्सों की कबूतरबाजी तो नहीं की जा रही?
पत्रकार- ठीक है, मगर इस योजना में मानवीय चूकों की सदा गुंजायश रहेगी. इस के मद्दे-नजर आपके पास क्या विकल्प हैं?
राजनेता- सही कहा आपने. परप्रांतीयता की समस्या से सदा-सदा के लिए निजात पाने के लिए हमें अपने प्रिय प्रान्त को देर सबेर किसी टापू पर शिफ्ट करना होगा...राज्य की जनता को चाहिए कि वह इस कठोर निर्णय के लिए तैयार रहे. 



Sunday, August 8, 2010

दुआ

मैं हमेशा से तंगदिल और कमतर इंसान नहीं था, हालातों ने मुझे ऐसा बना दिया है.  किसी समय मेरे झोंपड़े में भी दस-दस, पंद्रह- पंद्रह मेहमान हफ़्तों-हफ़्तों रहेमगर मजाल है जो अपने चेहरे पर जरा भी शिकन आई हो. आज यह आलम यह है कि दो जनों के आ जाने से ही प्राण सूखने लगते हैं. सुबह- सुबह जब फ्लश में बाल्टी भर पानी डाला जाता है तो अपना कलेजा मुंह को आने लगता है. गुसल में अतिथियों द्वारा डाला गया एक-एक मग पानी हमें अपनी नंगी पीठ पर दस-दस कोड़ों की तरह बरसता लगता है.... खुदाया या तो नल दे वरना ये दिन किसी को न दिखाए.  
                             फिर जच्चागिरी
आठ दस साल हुए फ्लेट और कार की किश्तों से फ़ारिग हुए. फिर सब तरफ से बराबर दबाव डाला जा  रहा है कि गाडी बदल लो , बँगला बुक करा लो. मतलब फिर से बैंकों के चक्कर, लोन की किश्तें चुकाने का सिलसिला. ठीक वैसा ही जैसे बच्चे बियाहे ठाए हो जाने पर किसी औरत को फिर से जच्चागिरी का शौक चर्राने लगे.
                              सच्चा भारतीय
खबर है कि अमरीका और यूरोप में आइसक्रीम सबसे जियादा खाई जाती है. खुद बराक ओबामा आइसक्रीम के दीवाने हैं. छटे चौमासे शादियों- जन्मदिनों की दावतों में मैं आइसक्रीम खा जुरूर लेता हूँ, मगर प्रेम से तो मैं गन्ना ही चूसता हूँ. इसी तरह पिज्जा बर्गर के   बदले भड़भूजे से भुनवाये चने  ही चबाना पसंद करता हूँ. तभी तो सच्चा भारतीय होने पर मैं गर्व से भर उठा हूँ!