Friday, March 23, 2012

ऊंचे दिमागों वालियाँ



क्या हुआ मिसेस सिंह, इतनी बुझी-बुझी सी क्यों लग रही हो? तबीयत तो ठीक है ना?
तबीयत को क्या होना है हमारी?
फिर क्या बात है?....तुम्हें मेरी कसम बताओ ना!!
क्या बताऊँ बहन, वही बाई का रोना! एक महारानी भेजी थी मिसेस वर्मा ने...मगर बात नहीं बनी!
क्यों? बहुत ज्यादा पगार मांग रही थी क्या?
ज्यादा? इसे ज्यादा हैं? मरी कह रही थी हजार झाड़ू पोछे के, हजार कपड़ों के, और दो हजार पानी भरने के!
झाड़ू पोछा तो ठीक, मगर पानी भरने के दो हजार! घोर कलियुग आ गया!...पूछा नहीं इतना मुंह काहे फाड़ रही है?
पूछा था....
फिर?
बोली- बाई सा गैस वाला टंकी चढाता है तो दस रुपये ऊपर से लेता है कि नहीं?... महीने में पंद्रह दिन तो हैं ही पानी आने के, हर दिन पाँच बाल्टी भी चढ़ाओ ...बताओ कित्ते हुए?
मैंने कहा- कुल जमा साढ़े सात सौ। ...और तुम मांग रही हो पूरे दो हजार!
फिर?
फिर क्या! मरी बोली- मगर पानी आता ही कितना है, और जब आता है तो कित्ता धीमे-धीमे, अक्खा दुनिया जानती है बाई सा! घड़ी-घड़ी देखते रहो कि बाल्टी अब भरी कि अब भरी....! इत्ता जादा टैम लगता है, इत्ती देर में तो दो घरों के बरतन निपटा के आ जाऊँ!  

Wednesday, March 7, 2012

ठिठोली होली की



  • तुम्हारे बाल तुम्हारी संपत्ति नहीं हैं, ये तुम्हारी संतति की संपत्ति हैं। तुम इन्हें अपनी लापरवाही से हरगिज़ नहीं उड़ा सकते, इन्हें नोचने का हक़ सिर्फ तुम्हारे बच्चों-बीवी को है।

  • दूधवाले भैया, बहुत देर कर दी! आज देर से सो कर उठे क्या?
नहीं! मैं तो टाइम से ही उठ गया था...
फिर?
   वो...भैंस जरा देर से उठी।

  • जलसे के बाद ऑडिटोरियम के प्रांगण में प्लास्टिक के गिलास यूं बिखरे पड़े थे   गोया कुदरत से ज़ोर-जबर्दस्ती करने के बाद बलात्कारियों ने घूरे पर कंडोम फेंक मारे हों।

  • तखल्लुस, यानि रमी के खेल का जोकर जिसे मक़्ते में जहां चाहे फिट कर दो मिसरों का वज़न खुद ब खुद बराबर हो जाता है।

  • मोबाइल का हंडसेट शिशुओं की टीथिंग के छुआरे  की तरह है, जिससे बच्चे युवक-युवती  और उम्रदराज़ अपनी खुजयाती उँगलियों की खुजली मिटाते देखे जा सकते हैं।  

  • ग्राहक जल्दी में था। साइनबोर्ड पर पासपोर्ट फोटो सिर्फ एक मिनट में लिखा देख कर दुकान में घुसा। बात सुनने के बाद काउंटर पर बैठे सज्जन ने बेहद नरम आवाज़ में कहा- सर, बस पाँच मिनट बैठें... आदमी जरा चौराहे तक गया है!!

  • आदमी को सदा सर उठा कर ही नहीं चलना चाहिए। गाहे-बगाहे निगाह नीची भी रखनी चाहिए... ताकि पता लग सके कि कहीं पेंट की जिप खुली तो नहीं रह गई!  

  • मार्च का महीना यानी सेमीनारों के नाम पर सालाना सरकारी ग्रांट को ठिकाने लगाने का आखिरी मौका...!