Monday, July 13, 2009

काबू

शांतिपूर्ण आन्दोलन उस वक़्त हिंसक हो उठा जब प्रदर्शनकारियों में से किसी ने अचानक पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। मामले की गंभीरता भांपते हुए दंगा निरोधक बल की एक टुकडी तत्काल घटना स्थल की और रवाना कर दी गई। उग्र भीड़ को बेकाबू होते देख जिले के आला अफसर भी मौके पर पहुँच गए। फायरिंग की चेतावनी समेत खूनखराबे पर उतारू भीड़ को तितर-बितर करने के सभी उपाय बेअसर रहे। तभी जिला अधिकारी ने माइक संभाल कर दंगाइयों को संबोधित किया। उनकी घोषणा के चंद मिनटों के अन्दर घटना पूरा स्थल खाली हो गया।
सभी प्रदर्शनकारी पानी भरने के लिए अपने अपने घरों को खिसक चुके थे।

हिया बेकरार हो उठे

ज्यूँ ही बरसात का
पहला खड़ा दोंगडा पड़ा
कि बावले हो चले नाले
कंगले ताल-तलैय्या
सब हो उठे मालामाल!
चलने लगीं ठहरी हुई
अनगिन खड्डीयां
बुने जाने लगे खुले में
उधर,हरे गुदाज़ गलीचे।
सजने लगी हर ठौर
मकरंद की मंडियां
जहाँ तहां डोलने लगीं
मत्त पतंगों की टोलियाँ
एक ही झटके में
कैसा चमकने लगा कुदरत का
मंदा पड़ा कारोबार!
देखो! उसे क्या हौसला मिला
कि चट्टान का ताबूत तोड़
आँख मलती फ़िर उठ खड़ी हुई
दफ़्न जिंदगी।
सरे शाम फ़िर एक बार
जुड़ने लगे मेघ मल्हार मंडली के
सभी बिखरे हुए मेंढक।
दिन ढले रोज़
रचने लगा सूरज
रंगों का एक अदभुत तिलिस्म
फ़िर हवा बदन में
जगाने लगी एक अजीब जादू
हिया यूँ ही बेकरार हो उठे।

Saturday, July 4, 2009

छापा

गई रात शहर की सीमा से करीब पॉँच किलोमीटर दूर पुलिस के एक गश्ती दल ने जब एक लोडिंग ट्रक को जांच हेतु रुकने का इशारा किया तो चालक अँधाधुंध गति बढाकर ट्रक ले भागा। कड़कड़ नाके पर तैनात दल को तुंरत वायरलैस से सूचना भेजी गई, जिसने बैरीकेड्स गिरा कर वाहन को रुकने पर मजबूर कर दिया। रुकते ही ट्रक को जवानों द्वारा घेर कर तलाशी ली गई। पता लगा कि शराब कि पेटियों में चोरी छुपे पानी ले जाया जा रहा था। पानी की पेटियां जब्त कर चालकों को अवैध जल व्यापार कानून, २००९ के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।

चिकित्सा जगत का नया रोग

डॉक्टर साहब, मेहरबानी करके जरा इन्हें देख लीजिये। पता नहीं इन्हें कौनसी बीमारी लग गई है। न जाने कैसी कैसी ऊलजुलूल हरकते करते रहते हैं। ओझा से झाड़-फूँक भी करवाई कि कहीं उपरी हवा न लग गई हो, पर कोई फायदा नही हुआ। अब तो इनकी जान बस आपके हाथों में है।
अजीब हरकते करते हैं, मतलब? कुछ खुलकर बताओ।
जैसे, उत्तेजित होकर इधर से उधर चक्कर काटना... अचानक बाहर का रुख करना, फ़िर लपकते हुए अन्दर आना।
हूँ, और?
घड़ी दो घड़ी बाद नीचे जीने कि तरफ़ झांकना... सोते से हडबडा कर उठ बैठना... रह-रह कर घड़ी के काँटो की तरफ़ देखना... किसी से सीधे मुंह बात न करना और सारे घर को सिर पर उठा लेना गोया कोई आयला तूफ़ान आया हो।
अच्छा, अच्छे से सोच कर बताओ, क्या ये लक्षण इनमें हर रोज देखने में आते है? मेरा मतलब है बिना नागा?
नही, हैरानी कि बात तो यही है कि एक रोज़ ये बिल्कुल नोर्मल रहते है, पर अगले ही रोज़ न जाने कौनसा जुनून इन पर सवार हो जाता है।
बस बस, समझ गया मैं। इस बीमारी कि कोई दवा अब तक नही बनी पर फिक्र मत करो, इसमे जान जाने का खतरा कतई नही है। कुछ दिनों बाद इन्हें अपने आप आराम आ जाएगा।
ठीक है, पर ये अजीबोगरीब बीमारी आख़िर है क्या?
कुछ खास नहीं। अक्सर तेज गर्मी क मौसम में इस रोग के वायरस पनपते हैं। चिकित्सा जगत में इस रोग को "नल रोग" कहा जाता है।