आज दो और
रिटायर हो गये. हो क्या गए, कर दिये गये! कम्पलसरी रिटायरमेंट!! यह तो होना ही था क्यूँ कि इन दोनों की, जिनमें एक ऊपर का तो दूसरा नीचे का था, रोज-रोज शिकायतें मिल रही थी. अपना तय काम ठीक से न कर पाना, ऊपर से पूरे महकमे को तकलीफ पहुँचाना! आखिर मजबूरन कडा फैसला लेना पड़ा और इन दोनों को उखाड बाहर फेंक
दिया गया.
यूँ पहले भी
समय गुजरने के साथ-साथ कई दूसरे दांत
अपनी अधोवार्षिकी पूर्ण कर ख़ुद ब ख़ुद रिटायर होते चले गए. उनके चले जाने से खाली हुई जगह वैसे ही नहीं भरी जा सकी जैसे
कालेजों/ विश्वविद्यालयों
में वर्षों से नयी नियुक्तियां नहीं होने से खाली पद नहीं भरे जा सके. खैर, किस्सा मुख़्तसर यह
कि वे दिन अब इतिहास हो गए जब हम एक
सिरे से शुरू कर दूसरे सिरे तक यूँ ब्रश किया करते थे गोया कोई मिस्त्री दरो-दीवार पोत रहा हो. अब तो आलम यह है कि अगर ब्रश करते देखो तो यूँ लगेगा मानों किसी
मंदिर के मेहराबों की रंगाई पुताई चल रही हो.
थोडा पीछे
की तरफ नज़र डालें तो पता चलता है कि सामने नीचे के दो दांत जो सीनियरिटी में सबसे
आगे थे वे सबसे पहले कूच कर गए थे. उनके जाने के वियोग ने आसपास वाले दांतों को अन्दर तक हिला कर रख
दिया. लिहाज़ा वे भी रुखसती पर आमादा हो गए. नतीजा यह हुआ कि पैदा हो गयी खाली जगह को ठेके पर भर्ती की तरह
कामचलाऊ दांतों (डेन्चर) से भरवाना पड़ा.
अब तो बचे हुए
इने गिने दांत भी जिस रफ़्तार से साथ छोड़ने को तैयार बैठे हैं, उसे देख कर यह लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब मुंह के अन्दर का पूरा
इलाका कबड्डी का मैदान नज़र आने लगेगा. तब हमारे सामने दो एक रास्ते ही बचेंगे. या तो हमें पैग की माफ़िक खाना आहिस्ता-आहिस्ता सिप करने की आदत डालनी होगी या फिर भोजन को सीधे ही हलक से
नीचे उतारने को अजगरी सीखनी पड़ेगी.
हाँ, एक विकल्प और भी है!...यही कि काटने, चबाने और बोलने समेत सभी काम पूरी तरह आउटसोर्स कर दिए जाएं!!