दो दिन की भर्ती के बाद अस्पताल से विदाई ले कर हमने घर में कदम रखा ही था कि धमकाने वाले फोन आने शुरू हो गए। शाम तक कई रिश्तेदार बारी-बारी से हमे फटकार लगा चुके थे कि हमने इंश्योरेंस वालो को खबर करने की हिमाकत तो कर दी मगर उन्हें बताने की जरूरत तक नहीं समझी। हमने उन्हें आश्वस्त किया कि अगली दफे समय रहते ही शुभेच्छुओं की वर्ण-वार सूची तैयार रख छोडूंगा और अस्पताल में थोड़े लम्बे अरसे तक भर्ती रहूँगा ताकि किसी को भी शिकायत का मौका न मिल सके। ...आज मेरी हालत में काफी सुधार था, चाहता तो ड्यूटी पर जा सकता था किन्तु मैंने दो एक रोज़ छुट्टी और बढ़ा कर मरीज़ बने रहने का फैसला किया जिससे मुलाकाती जो हैं वे निराश न हों और अपनी सुविधानुसार दर्शन लाभ ले सकें। अस्पताल के बस्ती से दूर होने के कारण कई मित्र गण वहाँ पहुँच पाने में असमर्थ रहे थे, मेरी अब यही कोशिश है कि धर्म निभाने में मैं उनकी पूरी मदद कर सकूँ। सोचता हूँ कि शादी ब्याह के समय डबल दावत रखने की परंपरा के पीछे भी दूसरा मौका देने की यही मंशा रही होगी कि जो सज्जन किंही कारणों से पाणि ग्रहण में शरीक न हो सके हों वे रिसेप्शन में हो लें। ...बहरहाल सरे शाम हम बेडरूम छोड़ कर बैठक में लाये जाते। फिर तो चिंतातुरों के सवालों के जवाब देते देते हांफ उठते। मुलाकातियों के रात्रि-विश्राम का समय होने पर ही हमे बिस्तर नसीब हो पाता।
Tuesday, April 27, 2010
Sunday, April 11, 2010
रिपोर्ट क्या कहती है?
एक औसत मरीज़ या उसके परिजनों को डॉक्टरों के बिना (या बावजूद) कैसे पता लगे कि उसकी एम् आर आई या सोनोग्राफी की रिपोर्ट क्या कहती है? जवाब है- उसी तरह जैसे ठेठ देसी दर्शकों को पता चल जाता है की अंग्रेजी फिल्म कैसी रही, चाहे उन्हें 'थेंक यू', 'हेलो', या 'बाय' सरीखे दो चार शब्द ही पल्ले क्यों न पड़े हों। हाँ, फर्क सिर्फ इतना है कि वहाँ फ़िल्मी तस्वीरें बोलती है, मगर रिपोर्ट के साथ इनायत फरमाई गयी फोटो आपकी बोलती को बंद कर देती हैं।
अव्वल तो यह देखिए कि छापा हर जगह इकसार सा है या नहीं! फिर राह में आगे अगर कहीं कुछ शब्द अकडू-फकडू दिखें (केपिटल) या फिर थोडा बांकपन लिए मिलें और इतराए इतराए से फिर रहे हों (इटेलिक्स), तो समझो कुछ न कुछ खास बात जरूर है। इसी तरह कुछ लफ़्ज़ों के पिछवाड़े तले सीधी सतरें खीच कर उन्हें औरों से अधिक तवज्जो अता की गयी हो (अंडरलाइन) या उनकी चाल में गर्भवतियों का सा भारीपन आ गया हो (बोल्ड) तो जान लीजिये कि रिपोर्ट में कुछ तो गड़बड़ है। बदकिस्मती से लाल, नीली या हरी स्याही अगर छुटपुट उपयोग में ली गयी हो तो फिर पक्का समझिये कि यह रिपोर्ट भी परीक्षा में फेल बच्चे की रिपोर्ट की ही तरह खराब है।
अब मजमून पर आयें जिसमे आपको अंग्रेजी अक्षर A, B, C आदि या अक्षरों के झुण्ड,अंकों - 32, 34, 36, 6,7, 8 वगैरह की सोहबत में दिखेंगे । बीच-बीच में ग्रीक अथवा रोमन भाषा के कई कई हरूफ भी मिलेंगे जिन्हें प्राचीन विदेशी विद्वान् प्रयोग में लाया करते थे। कुल मिला कर रिपोर्ट का एक भी सुराग आपके हाथ नहीं आएगा। मगर ठहरिये! हिम्मत मत हारिए। समझ में न भी आये तो भी पढ़ते जाने पर भी लाभ होगा। वाक्यों के आखिरी छोरों पर पाए जाने वाले शब्द अगर 'इज नोट सीन', 'इज क्लियर', 'एपियर नार्मल', इज अन रिमार्केबेल' किस्म के हों तो बस डरना छोडिये, आपकी रिपोर्ट एकदम बढ़िया है।
अव्वल तो यह देखिए कि छापा हर जगह इकसार सा है या नहीं! फिर राह में आगे अगर कहीं कुछ शब्द अकडू-फकडू दिखें (केपिटल) या फिर थोडा बांकपन लिए मिलें और इतराए इतराए से फिर रहे हों (इटेलिक्स), तो समझो कुछ न कुछ खास बात जरूर है। इसी तरह कुछ लफ़्ज़ों के पिछवाड़े तले सीधी सतरें खीच कर उन्हें औरों से अधिक तवज्जो अता की गयी हो (अंडरलाइन) या उनकी चाल में गर्भवतियों का सा भारीपन आ गया हो (बोल्ड) तो जान लीजिये कि रिपोर्ट में कुछ तो गड़बड़ है। बदकिस्मती से लाल, नीली या हरी स्याही अगर छुटपुट उपयोग में ली गयी हो तो फिर पक्का समझिये कि यह रिपोर्ट भी परीक्षा में फेल बच्चे की रिपोर्ट की ही तरह खराब है।
अब मजमून पर आयें जिसमे आपको अंग्रेजी अक्षर A, B, C आदि या अक्षरों के झुण्ड,अंकों - 32, 34, 36, 6,7, 8 वगैरह की सोहबत में दिखेंगे । बीच-बीच में ग्रीक अथवा रोमन भाषा के कई कई हरूफ भी मिलेंगे जिन्हें प्राचीन विदेशी विद्वान् प्रयोग में लाया करते थे। कुल मिला कर रिपोर्ट का एक भी सुराग आपके हाथ नहीं आएगा। मगर ठहरिये! हिम्मत मत हारिए। समझ में न भी आये तो भी पढ़ते जाने पर भी लाभ होगा। वाक्यों के आखिरी छोरों पर पाए जाने वाले शब्द अगर 'इज नोट सीन', 'इज क्लियर', 'एपियर नार्मल', इज अन रिमार्केबेल' किस्म के हों तो बस डरना छोडिये, आपकी रिपोर्ट एकदम बढ़िया है।
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