(एक मंत्री रामदुलारे, भूतपूर्व मंत्री-पुत्र. प्रातःकालीन वेला. मंत्रीजी
सरकारी बंगले में चाय की चुस्की संग मंथर गति से झूला झूलते हुए. दृष्टि कहीं दूर
स्थित. विचारमग्न. तभी एक लाल बत्ती गाड़ी बंगले के बाहर रुकती है. सेवक दौड़ कर
फाटक खोलता है. मंत्रीजी बुदबुदाते है, “अरे, गुरूजी!” और अपने सियासी गुरु की
अगवानी को लपकते हैं.)
गुरूदेव का शुभ आगमन
मंत्रीजी- अहो भाग्य, जो आज कुटिया में आपके चरण रज पड़े! एक मुद्दत के बाद
दर्शन दिए, गुरुदेव?
गुरुदेव- शहर से गुजर रहा था, सोचा आपकी कुशल-क्षेम लेता चलूँ. कहो, सब मंगल तो है?
मंत्रीजी- जनता का दिया सब कुछ है, गुरुदेव.
गुरुदेव- किन्तु हमें आपके मुख पर चिंता की लकीरें दिख रही हैं! दोनों होनहार
तो धंधे से जम गए कि नहीं?
मंत्रीजी- ऊपर वाले का बड़ा रहमो-करम है. छोटे की दारू की भट्टियाँ चल रही हैं,
बड़े के कालेज. फिरौती और दलाली से कमाई, सो अलग.
गुरुदेव- बहुत अच्छे! यानि दबंगई में भी बाप पर गए हैं! आखिर खून तो आपका ही है!
मंत्रीजी- सब आपका आशीर्वाद है, गुरुदेव! शहर के थानों में दोनों पर कई संगीन मामले दर्ज
हैं.
गुरुदेव- फिर किस चिंता में घुले जा रहे हैं, मंत्रीवर?
मंत्रीजी- क्या कहूँ, गुरुदेव! जबसे गठिया बाय रहने लगी मंत्री बने रहना
मुश्किल हो रहा है.
गुरुदेव- वो कैसे? गठिया बाय न हुई कोई विरोधी दल का नेता हो गया!
मंत्रीजी- यही समझो, गुरुवर. आपको तो पता ही है कि चुनाव गली के मुहाने पर खड़े
हैं. उधर दूसरे बायपास के बाद से ही सभाएं लेना भारी पड़ने लगा है. चुनावी सभाओं के
मंच ऐवरेस्ट से दिखते हैं. जन प्रचार दुश्वार हो गया है.
गुरुदेव- अब तो भई, उम्र का लिहाज़ करो. किसी राजभवन या दूतावास में स्थापित हो
रहो और आराम से बुढ़ापा काटो. वैसे भी पार्टी अब युवाओं पर ज्यादा भरोसा कर रही है.
मंत्रीजी- सोलह आने सही कहा, गुरूजी. बस मेरी एक ही दिली ख्वाहिश है कि किसी
तरह मंत्री पद भी घर का घर में ही रहे.
गुरुदेव- तो इस में दिक्कत क्या है? तुम्हारे दो-दो बेटे हैं. दोनों सर्वगुण संपन्न.
अपना पुश्तैनी चुनाव क्षेत्र किसी एक के नाम कर दो.
मंत्रीजी- यही तो दुविधा है, गुरूजी! आखिर वारिस बनाऊं तो किसे बनाऊं? दोनों
एक दूसरे पर बीसे पड़ते हैं.
गुरुदेव(सोचते हुए)- देखो भई, आजकल क़ाबलियत का जमाना है. जो ज्यादा काबिल हो,
उसे ही गद्दी सौंपना.
मंत्रीजी- मगर गुरुदेव, एक हीरा है तो दूसरा मोती! कौन ज्यादा काबिल है, किस
विध पता लगे?
गुरुदेव (गंभीर मुद्रा में)- मंत्रीवर, वो दिन लद गए जब डरा धमका कर, दारू
बाँट कर, जात पांत के नाम पर तकसीम कर वोट मिल जाया करते थे. अब लोग सयाने हो चले
है. नए दौर में चुनाव जीतना इतना आसान नहीं रहा.
मंत्रीजी- फिर तो आपका ही आसरा है, गुरुवर! आप ही कोई रास्ता निकालें. बताएं कि
रामदुलारे का उत्तराधिकारी कौन हो?
गुरुदेव- ठीक है. दोनों बेटों को बुलवाइए. (दोनों आते हैं)
गुरुदेव- देखो बरखुरदार, तुम्हारे डैडी की इच्छा है, हम तुम दोनों की परीक्षा
लें. जो खुद को ज्यादा काबिल साबित करेगा वही मंत्रीजी का राजनीतिक वारिस होगा.
मैं ठीक दस दिन बाद चिंतन शिविर से लौटूंगा. फैसला तभी होगा. तब तक तुम दोनों दिए
गए काम की रिपोर्ट तैयार रखोगे.
(चलते-चलते गुरूजी दोनों को काम सौंपते हैं)
उत्तराधिकार का फैसला
(दस दिनों के पश्चात)
गुरुवर (बड़े से)- बताओ बेटा, मंत्रीजी के प्रचार में तुमने क्या किया?
बड़ा- बताना कुछ नहीं गुरुदेव, मुझे दिखाना है. आइये, चलिए जरा मेरे
साथ....(गाड़ी में सवार हो कर शहर के दौरे पर निकलते हैं)
बड़ा- देखिये गुरूजी, वहां देखिये, उस ट्रक के पीछे…
गुरुदेव- अरे हाँ, जहाँ ‘देखो, मगर प्यार से’ लिखा रहता था वहां लिखा है, ‘सबके
प्यारे, रामदुलारे’. मान गए भई, क्या जबरदस्त आयडिया है!
बड़ा- और ऑटो के पीछे भी.
गुरुदेव- नेहरु न गाँधी, दुलारे की आंधी... बढ़िया, बहुत बढ़िया! लेकिन जो पहले
पहल वोट डालेंगे उन पढ़े लिखे युवाओं के लिए कुछ किया कि नहीं?
बड़ा- (गाड़ी विश्वविद्यालय की तरफ मोडते हुए) देखिये गुरुदेव, कालेजों की
चाहरदीवारी को गौर से देखिये.
गुरुदेव- क्या बात है! आदमकद अक्षरों में पूरी दीवार पुती पड़ी है. पर लिखा क्या
है बेटा? ज्वायन ए.बी.डी.डी. यानि?
बड़ा- मतलब ‘सदस्यता लें, अखंड भारतीय दुलारे दल’
गुरुदेव- शाबास! किन्तु इस सब में तो काफी लागत आई होगी?
बड़ा- ज्यादा नहीं गुरुदेव. बस सिर्फ दस लाख. रोजाना बीस पेंटरों की मजूरी, दो
बखत का खाना, ठर्रे की बोतल, पेंट ब्रश वगैरह.
गुरुदेव- चलो अब घर चलो, छोटे की रिपोर्ट भी लेनी है.
(घर पहुँचते हैं)
गुरुदेव (छोटे से)- अब तुम्हारी बारी है. तुमने क्या काम किया दस दिनों में,
सब को बताओ?
छोटा- गुरुदेव! मैंने डेड की वेबसाईट तैयार करवाई, रामदुलारे एट मंत्रीजी डॉट
कॉम.
गुरुदेव- वेबसाईट? ये वेबसाईट किस मर्ज़ की दवा है, बेटा?
छोटा- जैसे अगले ज़माने में चारण और भाट हुआ करते थे, वैसे ही आज के ज़माने में
वेबसाईट हैं. वे आपका चरण वंदन करती हैं, गुणगान करती हैं. मालूम है, सिर्फ तीन दिन
में दस हजार हिट्स हुए हैं डेडी की साईट पर!
गुरुदेव- बहुत खूब! अलावा इसके और भी कुछ किया है, पुत्र?
छोटा- जी, मैंने डेड का फेस बुक अकाउंट भी खुलवाया है.
गुरुदेव (विहंसते हुए)- तुम्हारे डेड के पहले ही कुछ कम अकाउंट थे जो एक और
खुलवा दिया.
छोटा- गुरूजी, ये बैंक का अकाउंट नहीं है. यह अकाउंट अपने आप में एक वोट बैंक है.
गुरुदेव- वो कैसे भला?
छोटा- फेस बुक अकाउंट पर पोस्ट डलती हैं, स्टेटस डलते हैं जिन्हें लोग लाइक
करते हैं.
गुरुदेव- मगर कोई लाइक करे इस से
तुम्हारे डेड का क्या लाभ?
छोटा- इस से हवा बनती है, गुरुदेव!
गुरुदेव- ठीक है, लेकिन पचास सौ आदमियों के लाइक करने से लहर थोड़े ही बन जाती
है?
छोटा- जब लाखों लाइक करते हैं गुरुदेव, तो लहर नहीं सुनामी आ जाती है.
गुरुदेव- पर लाखों लोग लाइक करेंगे ही क्यूँ?
छोटा- करेंगे गुरुदेव, जरूर करेंगे. क्योंकि करवाया जायेगा उनसे लाइक. सिद्धांत
है पैसे झोंको और भट्टी से शराब की तरह लाइक खेंच लो!
गुरुदेव- अच्छा, ये बताओ अनपढ़ मजदूर, किसान जो कंप्यूटर चलाना नहीं जानते उनके
वोट का क्या करोगे?
छोटा- कोई फिक्र नहीं गुरुवर. आज हर हाथ मोबाइल है. उन्हें कोई भी कॉल आएगी तो
सबसे पहले रिकार्ड किया हुआ मैसेज सुनाई देगा.
(तभी गुरुदेव का सेल बज उठता है, फोन सुन चुकने के बाद...)
गुरुदेव- सुनिए! फैसला साफ़ है, टिकट पर छोटे का हक है! अगला चुनाव आमने सामने
नहीं बल्कि तकनीक के बल पर लड़ा जायेगा और तकनीक में छोटा आगे है.
मंत्रीजी- फैसला सर आँखों पर गुरुदेव, पर बताएँगे कि फोन आखिर था किस का?
गुरुदेव- किसी का नहीं था! कोई कोयल सी कूक रही थी:
सम्माननीय नागरिक, रामदुलारे की जयहिंद! वर्षों
से आपका समर्थन और सहयोग ही हमारा संबल और मार्गदर्शक रहा है. इसे आज भी बनाये
रखें और राष्ट्र की प्रगति में अपना योगदान दें. जयहिंद! वन्देमातरम!!
और बड़ी बहू का धमाका
बड़ी बहू- माफ़ी चाहूंगी, गुरुवर! देवर जी तो अंगूठा छाप हैं. वो फेस बुक तो तब चलायेंगे
जब उन्होंने बुक की लाइनों पर कभी उँगलियाँ चलाई हों. ये तो देवरानी ने कंप्यूटर
की पढ़ाई की है, सो उसी का कमाल है!
गुरुदेव- तब तो हम छोटी बहू को ही राम दुलारे जी की गद्दी का वारिस घोषित करते
हैं!