एक - वीरासन
जटाजूट खोल कर समस्त केश राशि कन्धों पर बिखरा लें. साथ लाये सिन्दूर, बिछुए, कंगने और मंगलसूत्र को तडित गति से बाजूबंद, ढाल-कवच, जिरह- बख्तर और छत्र की भांति शरीर पर यथास्थान धारण कर लें...अब झटपट चुन्नट निकाल कर साडी पहनें तथा पल्लू से सिर ढकें. बचे हुए पल्लू से दाढी छुपाते हुए सकुचाई नारी की तरह पीठ फेर कर भाग पड़ने की मुद्रा में यथासंभव खड़े रहें. हाँ, दोनों कानो में रूई डालना कदापि न भूलें ताकि लाठी चार्ज होने की अवस्था में भक्तों की चीखों से विचलित नहीं होने का अभ्यास हो सके.
नोट- सत्याग्रहियों और आन्दोलनकारियों की अगुआई करने वाले जांबाजों के लिए यह आसन विशेष रूप से लाभकारी है.
दो- लोकासन
आइये अब लोकतंत्र के लिए एक और परम हितकारी आसन की साधना करना सीखें.चटाई पर बायीं करवट लेट जाइए. अब धीरे-धीरे अपने पैरों को पेट की दिशा में तब तक मोड़ने का प्रयास करें जब तक कि घुटने पेट से न सट जाएँ. साथ ही साथ सिर को भी यथाशक्ति आगे की और झुकाएं तथा सिफ़र की मुद्रा में बने रहें. यह क्रिया दस बार दोहराएँ. ध्यान रहे कि संपूर्ण क्रिया के दौरान चेहरे पर परम दीनता के भाव छलकते न भी रहें तो झलकते अवश्य रहें. अब दांयी करवट से पुनः इस आसन का दस बार अभ्यास करें. भूखी जनता का समर्थन जुटाने की चाह रखने वाले मुमुक्षुओं को चुनाव से कम से कम छः माह पूर्व इस आसन को प्रारम्भ करना अभीष्ट है.