Thursday, April 23, 2020

संदिग्ध को क्वारंटीन कराने की कसरत



अभी तक सब मज़े में थे। आसपास की बस्तियों में रोज केस निकल रहे थे किन्तु हम ग्रीन ज़ोन में थे। जैसे ही हमारे इलाके में पहले संदिग्ध की मौजूदगी के लक्षण दिखाई दिये, रहवासियों में हड़कंप मच गया। हड़कंप का कारण भी था। क्वारंटीन किए जाने के डर से संदिग्ध भरसक अपनी पहचान छुपाने की कोशिश करते थे और पकड़ में तभी आ पाते थे जब उभर गए लक्षण मजबूरन उनका पर्दाफ़ाश कर डालते थे। किन्तु तब तक वे न जाने कितने परिजनों को संक्रमित कर चुके होते।

खैर, क्षेत्र में संदिग्ध होने के बारे में संबधित अफसरों को अविलंब सूचना दी गयी। सूचना मिलते ही अधिकारियों द्वारा सबसे पहले प्रभावित क्षेत्र की अच्छे तरीके से नाकेबंदी करा दी गई ताकि कोई भी बिना इजाजत न अंदर आ सके और न ही बाहर जा सके। साथ ही एक स्वास्थ्य दस्ते का ताबड़तोड़ गठन कर उसे संदिग्ध को शिघ्रातिशीघ्र क्वारंटीन कराने का जिम्मा सौंपा गया। तीन सदस्यीय स्वास्थ्य टीम को सभी जरूरी उपकरण तथा सुरक्षा किट मुहैया करा दी गई तथा मुहिम पर तत्काल कूच करने के आदेश दे दिये गए।

स्वास्थ्य टीम जानती थी कि संदिग्ध कोई मर्यादा पुरुषोत्तम तो है नहीं, जो उनके एक बार कहने भर पर अपना घर-बार, नाते-रिश्ते छोड़ कर ख़ुशी-ख़ुशी चौदह दिन के क्वारंटीन पर चल देगा। उन्हें पूरी आशंका थी कि दस्ते के आने की खबर लगते ही वह जरूर किसी सुरक्षित जगह पर जा छुपेगा। और अगर ख़ुदा ना ख़्वास्ता अपने ठिकाने पर आसानी से मिल भी गया तो क्वारंटीन पर जाने में हर हाल में जबर्दस्त हीला हवाली करेगा। हुआ भी वही, जिसकी आशंका थी! यही देखते हुए इलाके में पहुँचने के साथ ही टीम ने संदिग्ध की तलाश शुरू कर दी। स्वास्थ्य दस्ते  ने सर्वप्रथम सील किए गए इलाके का गहन मुआयना किया। वे स्थान खोजे गए जहां संदिग्ध छिपा हुआ हो सकता था। साथ ही उन संभावित मार्गों की को भी चिन्हित कर लिया गया जिन्हें पकड़ कर संदिग्ध दस्ते की नजर से बच कर भागने की कोशिश कर सकता था। इसके पश्चात योजना के अनुसार मोर्चाबंदी की गई।

दस्ते के तीनों सदस्यों को अलग-अलग दिशाओं में तैनात किया गया। टीम का एक मेम्बर संदिग्ध को ढूंढ कर जैसे ही कब्जे में लेने की कोशिश करता वह घेरा तोड़ कर दूसरी दिशा में दौड़ लगा देता और फिर तेजी से किसी नामालूम जगह पर जाकर गायब हो जाता। तलाश की यह कवायद एक बार फिर किसी नए सिरे से शुरू की जाती। किसी ढब ढूंढ कर उधर से हकाले जाने पर वह तीसरी जानिब भाग उठता और किसी मायावी राक्षस की तरह अचानक नजरों से ओझल हो जाता। घंटों यही उठापटक चलती रही-  वह इस पल प्रकट होता तो उस पल कहीं अंतर्ध्यान हो जाता। कभी लगता कि जैसे हाथ आ ही गया लेकिन अगले ही पल हाथ मलते हुए रह जाना पड़ता।  

आखिर वह घड़ी आ ही गयी जब टीम की एक अरसा की जद्दो-जहद और घेराबंदी काम आई। भारी मुश्किलों के बाद रसोईघर  में छुपे हुए उस मोटे चूहे को मुख्य द्वार के रास्ते बाहर कर नजदीकी जंगल में क्वारंटीन करा दिया गया।