क्या हुआ मिसेस सिंह, इतनी
बुझी-बुझी सी क्यों लग रही हो? तबीयत तो ठीक है ना?
तबीयत को क्या होना है हमारी?
फिर क्या बात है?....तुम्हें
मेरी कसम बताओ ना!!
क्या बताऊँ बहन, वही
बाई का रोना! एक महारानी भेजी थी मिसेस वर्मा ने...मगर बात नहीं बनी!
क्यों? बहुत
ज्यादा पगार मांग रही थी क्या?
ज्यादा? इसे
ज्यादा हैं? मरी कह रही थी हजार झाड़ू पोछे के, हजार
कपड़ों के, और दो हजार पानी भरने के!
झाड़ू पोछा तो ठीक, मगर पानी भरने के दो
हजार! घोर कलियुग आ गया!...पूछा नहीं इतना मुंह काहे फाड़ रही है?
पूछा था....
फिर?
बोली- बाई
सा गैस वाला टंकी चढाता है तो दस रुपये ऊपर से लेता है कि नहीं?... महीने
में पंद्रह दिन तो हैं ही पानी आने के, हर दिन पाँच
बाल्टी भी चढ़ाओ ...बताओ कित्ते हुए?
मैंने कहा- कुल जमा साढ़े सात सौ।
...और तुम
मांग रही हो पूरे दो हजार!
फिर?
फिर क्या! मरी बोली- मगर पानी
आता ही कितना है, और जब आता है तो कित्ता धीमे-धीमे, अक्खा दुनिया जानती है बाई सा! घड़ी-घड़ी देखते रहो कि बाल्टी अब
भरी कि अब भरी....! इत्ता जादा टैम लगता है, इत्ती देर में तो दो घरों के बरतन
निपटा के आ जाऊँ!