['त्यागी उवाच' के तेवर से
अलग पेश है आज एक
कविता]
कई दिनों बाद,
शाम भूख महसूस होने पर
भेल बनाई,
खाते-खाते टीवी पर
बकवास देखी.
कई दिनों बाद,
आज बालकनी से
सूखे कपडे उतार कर
तह किये.
पौधों को
कई दिनों बाद
जी भर पानी दिया.
कई दिनों बाद,
सुबह-सुबह चाय पर
'भास्कर' और 'हिन्दू'
शब्द-शब्द चाट डाला.
नाश्ता कर चुकने पर
थोड़ी देर
सुस्ताना भी हो गया.
थाली में
दाल रोटी समेत,
कई दिनों बाद
जो चीज घर में
जहाँ हुआ करती थी
उसी जगह लौट आई.
रात में
सोने से पहले आज
कई दिनों बाद,
तकिये के पास पड़े
'नया ज्ञानोदय' की
दो चार कहानियाँ तो
पक्का पढ़ मारूंगा.
'रूटीन'
सच में
कितना अच्छा है!!