लो, घर बैठे ही हम भी साहब बन गए. बिन दफ्तर, घंटी के साहब बन गए. पी.ए. प्यून के बगैर ही साहब बन गए. एक जमाना था जब हम मामूली चीज हुआ करते थे. बड़े लोगों को शान से फीकी चाय की मांग करते देख, 'चाय में कितनी शक्कर?' के जवाब में 'दो चम्मच' कहते हुए हम शर्म के मारे गड़ जाया करते थे.
मगर आज की बात कुछ और है. आज दुनिया बदल गयी है. आज हम भी उनके बराबर आ गए हैं. अपनी गौरवशाली उपलब्धि की उदघोषणा जब हमने इस एलीट क्लब में की, तो सदस्यों के चेहरे पर जो भाव दिखे वे ऐसे थे मानो कोई ठेठ गांवड़ा पोटली बगल में दबाये एसी कोच में चढ़ा आ रहा हो या फिर कोई चपरासी अफसर की कुर्सी पर बैठने की हिमाकत कर बैठा हो. खैर! फ्रेशर समझते हुए उन्होंने हम पर सवाल दागने शुरू कर दिए. हमारे ब्लड शुगर के आंकड़े सुन कर उन्होंने हमें ऐसे देखा गोया कोई गली-नुक्कड़ का किरकेटर सचिन तेंदुलकर बनने के ख्वाब देखने की ध्रष्टता कर रहा हो... फिर धिक्कारते हुए कहा- बस इतनी ही! इससे ज्यादा तो हमारी 'फास्टिंग' ही थी भोजन के बाद की तो साढ़े तीन सौ पार थी...डॉक्टर का तो यहाँ तक कहना था कि आप चल फिर कैसे रहे हो! इतने में तो आपको गिर पड़ना चाहिए था. अब वे कुर्सी से उठते हुए बोले- जाओ मियां, अभी कुछ साल और रबड़ी सूंतो, रसमलाई उडाओ... तब जा कर हमारी बराबरी का दम भरना.
हमने जहान भर की दीनता दिखाते हुए निवेदन किया- अरे, कहाँ मैं और कहाँ आप! आप तो पहुंचे हुए हैं...मैं तो अभी बच्चा हूँ आपके सामने. अपने अनुभवों का लाभ इस अकिंचन को दें तो महती कृपा होगी. वे तनिक पिघले और किसी रंगरूट को हिदायत देते हुए ट्रेनर से बोले- देखो, तुम्हे डरने की बिलकुल जरूरत नहीं है. बस मीठा छोड़ दो, और नपती की खुराक लो....बाजार से एक रूलर और स्पोर्ट्स शूज़ ले आओ और रोज छः छः किलोमीटर की सैर पेलो. 'रूलर क्या डाईबिटीज़ वालों के लिए जरूरी है?' 'नहीं, यह कुत्तों के लिए जरूरी है... वक्त-बेवक्त घूमने निकलोगे तो कुत्तों के हलकों से जरूर गुजरोगे और वे इसे पसंद नहीं करेंगे....और हाँ एक बात और...सैर के समय हरचंद टी-शर्ट और हाफ-पेंट ही पहनना' 'वो भला क्यूँ?, हमने पूछा. ' साहेबाना लुक मुक्कमल करने के लिए.' ' सर, बुरा न माने तो मेरी एक छोटी सी जिज्ञासा थी...क्या मैं एक झबरा डोगी पाल लूँ?' 'इंसुलीन के इंजेक्शन ठुकवाने हों तो बेशक पाल लो.' 'मैं कुछ समझा नहीं...' 'नित्य कर्मों के सम्पादन हेतु कदम कदम पर वह बाजे वाले की घोड़ी की माफिक ठहरेगा तो तुम एक दो किलोमीटर से ज्यादा क्या ही घूम पाओगे....फिर इंसुलीन के इंजेक्शन ठुकेंगे कि नहीं?' आखिर कडवे नीम के चूर्ण की फंकी के साथ ही अपना बपतिस्मा संस्कार संपन्न हुआ.