Monday, November 3, 2014

चार्ल्स शोभराज का बाप


दुल्हे को दुल्हन मिली, दुल्हन को दूल्हा. दुल्हे के बाप को वंश चलने वाली मिली, दुल्हन के माँ बाप की बला टली. वे गाएँ, नाचें, नोट लुटाएं. रिश्तेदारों में किसी को भाभी मिली, किसी को चाची; किसी को जीजा मिला तो किसी को फूफा. वे ख़ुशी मनाएं. हम जैसे निरे बाराती को क्या मिला जो हम बंदरों की तरह उछलें, कूदें? हमें ऐसा क्या मिलना है जो हम हाथ का हिल्ला छोड़ ट्रैफिक की मगरमच्छी, हहराती धारा में अपनी कश्ती डाल दें? फखत एक दावत न! .... वह भी पेट्रोल खर्च और मोटे लिफाफे के एवज में!

इब्ने इंशा कह गए हैं:
इक नाम तो रहता है जग में, पर जान नहीं
जब देख लिया इस सौदे में नुकसान नहीं
शम्आ पे देने जान पतंगा आया है
सब माया है.


यानि पतंगा तक अपना नफा नुकसान देखता है. हम तो आदमी ठहरे, हम क्यूँ न देखें! महंगाई बढ़ने के साथ साथ जहाँ लिफाफे फूलते जा रहे हैं वहीँ व्यंजन फटीचर होते जा रहे हैं. जिधर  देखो बारातियों के हक़ पर जम कर डंडी मारी जा रही है. जब जी में आया प्लेट से रबड़ी/रसमलाई उडा दी, दही-बड़ा का पत्ता साफ कर दिया. ईमान तो मानों बचा ही नहीं! इस कदर गई-गुजरी डिशेज़ परोसने की भला क्या तुक कि बारातियों को वापस घर जा कर खाना खाना पड़े. ठगाई की आखिर कोई हद है कि नहीं!
 

खैर, माबदौलत ने इसका तोड़ यूँ निकाला है. हम तयशुदा अमाउंट को दो हिस्सों में तोड़ कर दो लिफाफे ले जाते हैं. मंच पर चढ़ कर पार्ट पेमेंट का पहला लिफाफा पकड़ा देते है. खाने की क्रिया के संतोषजनक ढंग से संपन्न हो जाये तो दूसरे लिफाफे की मार्फ़त बकाया चुकता कर देते हैं, वरना उसे जेब से निकाल कर बाहर ही हवा नहीं लगने देते. 

12 comments:

  1. हा हा हा...ऐसा भी कहीं होता होगा?

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  2. हा हा ...:-) अब जो लिफ़ाफ़ों के भाव बढ़ गए तो दोष न देना ....कि आपकी वजह से नहीं बढ़े ...:-)

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    1. भव बढ़ें तो सरकार को दोष देने का दस्तूर है. सो हम खुद पाक साफ़.....

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  3. इस कदर गई-गुजरी डिशेज़ परोसने की भला क्या तुक कि बारातियों को वापस घर जा कर खाना खाना पड़े. ठगाई की आखिर कोई हद है कि नहीं! SATIK ND SAMYIK ..SAMIKSHA ....SIR .....

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  4. Lo, taiyariyaa abhi shuru hui nahi, kahaniyaa abhi se banne lage! May tak to posts ka ambaar lag jayega!

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    1. अपने लिए सबक छिपा है इसमें...मई में कोई कंजूसी नहीं!!!

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  5. बारातियो की पीड़ा पर बखूबी कलम चलाई है .विषय हमेशा की तरह रोचक है .साधुवाद .

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    1. ये कलम आपकी आभारी है!....और धुआंधार चलने का वचन देती है!!

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  6. Adha paisa abhi aadha kaam hone k baad!

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    1. सही...काम का बयाना! काम पूरा, तो पेमेंट पूरा...

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  7. गुरुवर!
    प्रणाम आपकी इस अभूतपूर्व आर्थिक सूझबूझ को. एक बैंकर के रूप में बजट करते समय उस पेट फूले लिफ़ाफे का प्रावधान करना ही पड़ता है. क्योंकि उसके एवज में मिलने वाला भोजन आधा तो हमारे स्वादानुसार नहीं होता और बाकी की मनाही डॉक्टर ने कर रखी है!
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    आपकी तरकीब पर एक सुझाव इस नाचीज़ की ओर से... लिफ़ाफ़े के तीन टुकड़े कर लें. दो का डिस्पोज़ल तो आपने बयान कर ही दिया. अगर खाना खाने के बाद पेट ख़राब ना हो तो दूसरे दिन तीसरा लिफ़ाफा थमा आयें!
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    हम तो ई. एम. आई. वाले प्राणि हैं!! पसन्द आ जाये तो अपने नाम से पेटेण्ट करवा लेंगे, हमारी गुरुदक्षिणा हो जाएगी!!

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    1. बेशक पेटेंट कराने लायक है आपकी तजवीज़!!

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