घर के बाहर आप कितने ही तुर्रम खाँ बने क्यों न घूमते हो, घर के अंदर आपकी औकात धपई भर की नहीं है। भले ही दुनिया भर को ये पता हो कि
रिश्ते में आप रामानुजन के परपौत्र लगते हैं, अंकों की
जादूगरनी शकुंतला देवी भी आपके सामने फेल है...और यह भी कि आप
संख्याओं से यूं खेलते हैं जैसे सपेरों की सन्तानें करैत और कोबरा से खेलती हैं या
फिर मछुआरों के बच्चे समंदर की ऊंची-ऊंची लहरों से खेलते हैं। मगर इस सब से क्या
होता है? माह की हर पहली-दूसरी तारीख को घर में दूध के लगाए गए आपके हिसाब को तो
आपकी श्रीमती जी तब तक सही नहीं मानती जब तक वह खुद हिसाब करके न देख ले!! अगर आपको हजार रुपये दे कर किराने की दुकान पर
सामान लाने को भेजा जाता है, तो आने पर आपको उनके कई सवाल
झेलने पड़ते हैं, जैसे- क्यूँ जी, सामान
कितने का आया? मान लो आपने कहा- सात सौ बहत्तर रुपये का, तो तत्काल एक और सवाल आप पर दाग दिया जाता हैं- वो तो ठीक है, मगर कितने रुपये वापस किए दुकानदार ने?...यानि उन्हे
आपकी काबिलियत पर इतना एतबार हो ही नहीं हो पाता कि आपने बकाया यानि पूरे दो सौ
अट्ठाईस रुपये दुकानदार से वापिस ले लिए होंगे!
अभी कल ही की बात है। पड़ोस की एक
श्रीमतीजी हमारी वाली को उनके पतिदेव की गोपनीय रिपोर्ट बता कर गयी। बताने से पहले
ये वचन लिया के वे इसे गोपनीय ही रखेंगी। आश्वस्त होने पर खुल कर बोली- क्या कहूँ बहन जी!
पता नहीं अपने मियां जी काहे के साइंटिस्ट हैं एक तरकारी तक तो ढंग की खरीद नहीं
सकते, फिरोजी रंग का सूट मंगाओ तो आसमानी उठा कर चले आते हैं! मैं तो कहती हूँ जो
आदमी मूंग और मसूर में फ़र्क नहीं कर सकता वो क्या खाक रिसर्च करता होगा! उधर हमारे
एक और एम.बी.ए मित्र हैं बहुत बड़ी कंपनी के सी.ई.ओ। वे जिस भी कंपनी में जाते हैं
उसे ही मुनाफ़े में ला खड़ा करते हैं। उन्हीं की मार्फत कंपनी बड़े-बड़े सौदे करती
हैं। मगर अपनी पत्नी की नज़र में वे खुद एक घाटे का सौदा हैं क्योंकि अगर सब्जी
वाला दस के दो के हिसाब नींबू दे रहा हो तो बीस के पाँच नींबू तक की डील करना तो उनके
बस की बात नहीं है! और तो और वे टूथपेस्ट का ऑफर वाला 150 ग्राम का पैक छोडकर 100
ग्राम वाला उठा कर ले आते हैं। दुनिया के लिए होंगे आप मेनेजमेंट गुरु....बिजनेस
बढ़ाने के नए-नए आइडिया बांट कर लोगों पर धाक जमाने वाले! मगर अपने घर में तो आप
अक्ल के वह पैदल हो जो धनिया मिर्ची भी जेब के पैसे लगा कर खरीदता है! जबकि आपकी
धर्मपत्नी अलग-अलग तीन चार ठेलों से सब्जी खरीदकर आपसे ज्यादा धनिया मिर्ची फोकट
में इकट्ठा कर लेती है।
चलो मान लिया कि आप एक बड़े भारी
खगोलवेत्ता हैं! सब ग्रह-उपग्रह आपकी गणनाओं के गुलाम हैं। आप उनके लिए जैसी भी
लकीर खीच देते हैं वे उसी के फकीर हो जाते हैं। फिर आँख पर बंधे कोल्हू के बैल की
तरह रात दिन एक ही लय ताल मे वहीं चक्कर काटते रहते हैं। सूरज को भी ठीक उसी घड़ी में
ग्रहण लगने लगता है जो आपके द्वारा निश्चित कर दी गयी होती है। चन्द्र ग्रहण भी
आपके तय किए गए समय पर खुद ब खुद खत्म हो जाता है...बिना एक मिनट इधर या उधर चूके
हुए। मगर आपकी यह सारी विद्या वेधशाला की चौहद्दी के अंदर ही काम आती है .....सुबह
घर में प्रवेश करने के साथ आपकी सारी खगोल-विद्या देहरी पर ही छूट जाती है। नाश्ते
में पत्नी के पूछने पर पराँठे की इच्छा जताने के बावजूद प्लेट में जब दलिया मिलता
है (इस नेक सलाह के साथ, कि दलिया हल्का और पेट के लिए मुफ़ीद
होता है!) तब महान खगोल शास्त्री को अच्छी तरह समझ में आ जाता है कि ब्रह्माण्ड के हर छोटे बड़े ग्रह-उपग्रह की
चाल पर नजर रखना एक बात है किन्तु पत्नी की किसी भी चाल को पकड़ पाना बिलकुल ही
दूसरी बात है। दरअसल पत्नी के सामने पड़ते ही आपकी सारी विद्या छूमंतर हो जाती है
और देखते ही देखते आपकी आत्मा एक महापंडित का चोला छोड़ महामूर्ख के चोले में
प्रवेश कर जाती है!
यानि हमारे पुरखे सही ही कह गए
है....कोई जोगी घर के बाहर कितना ही सिद्ध क्यूँ न हो जाए, घर के भीतर तो उसे जोगड़ा ही रहना
है!!
आपने मुझे सन् 1999 में पहुँचा दिया! मुझे विदेश की पोस्टिंग के इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था और हमारी प्रबंध निदेशिका महोदया ने पूछा कि आप ट्रेज़री ऑपरेशन्स में हैं, वहाँ तो बड़े इंटेलीजेंट लोग होते हैं! मैंने कहा कि यह भ्रान्ति है! दुनिया की सबसे इंटेलीजेंट ट्रेज़री डीलर्स गृहिणियां होती हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि किसी भी price पर कैसे प्रतिक्रया देनी है! जैसे केलेवाले ने कहा दस रूपये दर्जन तो क्वालिटी के हिसाब से वो कहती हैं कि 8 का दर्जन दे दो या दस के पंदरह दो!
ReplyDeleteऔर उस दिन मेरा चुनाव होना इस बात का प्रतीक है कि घर की जोगिनी का स्थान सर्वोपरि है! ऑफिस का इतना बड़ा अधिकारी, उनके सामने तब भीगी बिल्ली बन जता है जब वो कहतीं हैं कि मैं आपको दूकान में कुहनी मार रही थी फिर भी आपने क्यों हाँ कहा!
अच्छी आपबीती/ जगबीती है! लेकिन यह यथार्थ की श्रेणी में है - न हास्य, न व्यंग्य!
Ham beeti aap beeti bhi hai, yahi yatharth bhi hai...ye jaan kar khushi hui!
DeleteSir, wish i could read it. Sadly am not able to read hindi. Copied it and pasted in google translator but that messed the sense totally
ReplyDeleteAsk some one to read it for you...you will surely understand it!!
ReplyDeleteबहुत कमाल लिखा है गुरु जी । आशा करती हूं मेरे पति देव भी ऐसा ही कुछ महसूस करते हो। 😊👌👌
ReplyDeleteJaroor karte honge...akhi sare patidev ek jaise hain!!
DeleteSach hai gurudev......bookish knowledge apni jagah & practicability apni jagah
ReplyDeleteOh! Tum bhi udhar ho!!
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ज़िन्दगी का हिसाब “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteरोचक ।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteजाके पैर न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई ...कमाल का वर्णन सर ...👌😊
ReplyDeleteये बिवाई सभी को फटती है मैडमजी
DeleteKya baat hai sirji आज अपने पत्नी होने पर गर्व महसूस हो रहा है
ReplyDeletePatniyan garv mahsus nahi karengi to kya pati karenge!!
ReplyDeleteVery well written sir..
ReplyDeleteThanks dear
DeletePatidev ki daftar mein chaturayi aur doordarshita ke bahut kisse sune Hain, kintu jab Ghar mein saamne hi rakhi Hui paani ki glass na dikhne ke kaaran becharagi dikhti hai, tab aisa lagta hai ki bhateri uplabdhiyan kis kaam ki! 😂
ReplyDeleteऐसे ही एक बार हमारे पिताश्री हमें बोलैं थे, " कहै मैं सोलवीं में पढूं, अबे! बैलों पे जुआं धरणा तो तुझे आतुरता नी।"
ReplyDeleteआत्ता नी
DeleteAakhirkaar ham thahre house gueen... To fir ...... !!
ReplyDeleteHaha wonderfully wriiten sir...the real essence of writing here is beautifully u have mixed administrative n official language in domestic domain...plus a.minute interpretation of life of common man...nice blogging. .keep writing sir
ReplyDeleteThanks for nice comments! Who else can understand my predicament better than a person like you!!
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