धर्मपत्नी की अध्यक्षता में हमारे उम्र के पचासवें वर्ष के लगने कि अधिसूचना जारी हो गई। तत्काल प्रभाव से अचार संहिता लागू कर दी गयी। अचानक ही हम बाजारू कचौरी- भजिए और दही बड़ों के अयोग्य घोषित कर दिए गए। 'स्वाद-फ्रेंडली' और 'स्वास्थ्य-फ्रेंडली' में भेद किया जाने लगा। निवाले-निवाले पर बीपी और हार्ट की दुहाई दी जाने लगी। देखते देखते अभोज्य बना दिए गए पदार्थों की सूची हनुमान की पूँछ की तरह लम्बी होती गयी। वहीँ दूसरी ओर भोज्य व्यंजन कृष्ण पक्ष के चाँद की मानिंद घटते चले गए। हलवा-पूरी को होली दिवाली तक सीमित कर दिया गया - वह भी बाकायदा नाप-तौल कर। सेंव नमकीन का साप्ताहिक राशन बांध दिया गया और चटनी पापड़ को थाली बदर कर दिया गया। आपकी अपनी औलाद जिन्हें लड़कपन में बड़े चाव से सैकड़ों दफा आपने चिप्स, तले समोसे और मैगी खिलाई होगी, वही अब किसी प्रेक्षक की भांति आपके आचरण के पहरे पर बैठा दिए गए। अगर कभी आप दबे पांव किन्तु सधे हाथ अचार के मर्तबान की तरफ बढते कि वे चिल्ला उठते - 'मम्मी , देखो भ्रष्ट आचरण !' तत्काल कठोर फरमान जारी हो जाता - आज से खर्च किये गए खाद्य पदार्थों का सही सही हिसाब रखा जाये और दिन की समाप्ति पर बिला नागा प्रस्तुत किया जाये । एक अरसे तक हम इसी सदाचार में लिप्त रहे, लेकिन आखिर कब तक ? एक दिन हमारे सब्र का भाखड़ा-नांगल टूट गया । हमने कहा, 'नहीं बनना हमें तंदुरुस्त , नहीं चुना जाना शतायुओं कि जमात में ! हमारी उम्मीदवारी का जो परचा घर के मेम्बरानों ने मिलकर धोखे से भर दिया था , हम उसे वापस मांगते हैं। हमें अचार संहिता से मुक्ति दिलाओ, हे भागवान! फ़ौरन !!
aakhiri line gaur karne laayak hai..!
ReplyDeleteguhaar bhgwan nahi bhaaagwan se ki gyi hai :)
ha ha !! Hanumaan ki poonch aur krshna paksh kaa chaand !! loved that !!
ReplyDeletegood punches..
ReplyDeletepretty awesome and humourous but with a tinge of unreality..!!
ReplyDeletea.) hamare tale samoso pe aapka pehra rehta tha..
b.) achar sanhita k implementation me hamara koi haath nahi..!! :D:D