Monday, January 11, 2010

लोकतंत्र की जच्चगी

खबर है कि लोकतंत्र नाम की मादा फिर पेट से है। अभी तो पिछले प्रसव का सूतक भी ख़त्म नहीं हुआ था, शिशु कि जन्म-नाल भी ढंग से नहीं सूख पायी थी कि यह फिर से पांव भारी करा बैठी। एक तरह से देखा जाए तो पडौसी देशों के लोकतंत्र के बाँझपन से तो यह उर्वरता भली ही है। लेकिन मुसीबत यह है कि ज्यूँ ही गर्भ-धारण की खबर प्रशासन को लगती है उसका पूरा अमला बड़ी तबियत से जच्चगी में जुट जाता है। तब आलम यह होता है कि सड़कें खुदी पड़ी हैं तो खुदी रहें, जनता डेंगू से मरती है तो मरा करे, दफ्तरों मैं ताले पड़ते हैं तो पड़ा करें, पढाई अधूरी रहती है तो रहा करे - बस जच्चगी का हर्जा नहीं होना चाहिए। देश में लोकतंत्र का गर्भवती हो जाना कुछ ऐसा ही है जैसे किसी अस्पताल में कोई हाई-प्रोफाइल मरीज आ जाये। तरह तरह के गंभीर मरीजों को राम भरोसे छोड़ सभी डॉक्टर और नर्स इमरजेंसी के इस ऊँचे दरजे के मरीज के सदके चले जाएँ, उसी का पानी भरने लगें।
खैर, कई सप्ताह रहते ही लोकतंत्री अंडे देने-सेने हेतु घोंसलों ( यानि मतपेटियों) और जच्चा गृहों की साफ सफाई शुरू हो जाती है। प्रसूति में लगने वाला सामान बटोरा जाने लगता है। ड्यू डेट के करीब आते ही निकल पड़ता है बाबुओं, शिक्षकों और अन्य कर्मियों को दाई गिरी के घनघोर प्रशिक्षण देने का सिलसिला। प्रशिक्षण में इनका ध्यान प्रसव की बारीकियों को पकड़ने पर कम, सरकार को कोसने पर ज्यादा रहता है ....कि कमबख्त ने हमें हरी भजन की नौकरी पर रख कर कपास ओतने कि ड्यूटी पर लगा दिया । इस रोजमर्रा के बेहद हुनर बंद काम के लिए न जाने सरकार स्थायी डिलीवरीबाजों की नियुक्ति क्यों नहीं कर लेती।
बहरहाल इधर प्रसुतिकर्मी तैयार हो रहे होते हैं, उधर आचार संहिता का लट्ठ घुमा कर स्कूल/कॉलेज बसें तथा निजी वाहनों को मय ड्राइवरों के उठवा लिए जाते है। इस तरह राष्ट्र के पुनीत कार्य में निजी क्षेत्र का भी जबरन योगदान ले लिया जाता है। घटना वाले दिन नाजुक प्रसूति केन्द्रों पर सूक्ष्म पर्यवेक्षक तैनात कर दिए जाते हैं। इसका काम यह देखना होता है किसी भी सूरत में गर्भ की हानि न हो पाए और डिलीवरी बाकायदा तथा निर्विघ्न संपन्न हो। घड़ियों में पांच बजते ही राष्ट्रीय चैनलों से मंगलगीतों का प्रसारण शुरू हो जाता है। कुछ अरसे तक जच्चा तथा बच्चा को जमाने कि बुरी निगाहों से बचाकर रखा जाता है। तथापि इस दौरान इस बात का पूरा ख़याल रखा जाता है कि देश प्रदेश में यह महान कार्य छोड़कर कोई अन्य दीगर काम न हो।


10 comments:

  1. you are just getting better with time! kudos.. waiting for another one.. :)

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  2. sir its fantastic...we both liked it very much

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  3. Hats off to your imaginations !! Getting better & better !!

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  4. सर जी, मैं तो हिन्दी में हीं टिप्पणी करूँगा। हिन्दी ब्लाग पर अंग्रेजी में टिप्पणी देखकर मुझे ऐसा लगता है मानो हिन्दी दिवस के दिन अंग्रेजी में कोई भाषण दे रहा हो (जो कि आजकल खुलेआम होता है, इसलिए यहाँ अंग्रेजी में टिप्पणियाँ देखकर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ)।

    हनु के माध्यम से मुझे आपके ब्लाग का पता मिला और आपको पढना वाकई में फायदे का सौदा साबित हुआ। सीरियस मुद्दे को व्यंग्य के जिस लहजे से आपने दुनिया के अखाड़े में पटखनी दी है, उसे देखकर मन प्रसन्न हो गया। लोकतंत्र की ऐसी हालत देखकर किसे बुरा नहीं लगता....... आपने सही लिखा है कि शिक्षकों को इस दौरान दाई का काम दे दिया जाता है.. भला शिक्षकों की बहाली इसी लिए होती है.. अब यह सरकार को कौन समझाए... कहते हैं ना "भैंस के आगे बीन बजाए, भैंस बैठ पगुराए"।

    आपने चुनाव की सही नब्ज पकड़ी है। आगे भी आपको पढना चाहूँगा।

    -विश्व दीपक

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  5. hausla afzaai ka shukriya..Maine aapko yahoo list me add kar liya hai... agli post jarur bhejunga. (hindi me comment karna abhi seekhna hai)

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  6. कभी कभी तोह यह लगता है की प्रजातंत्र में प्रजा का योगदान चुनाव के दिन शुरू होता है और नतीजे आने पे ख़त्म हो जाता है. हमारे देश के सरकारी तंत्र पे तोह हास्य का महाकाव्य लिखा जा सकता है. आपकी हिंदी अभिव्यक्ति के बारे में अमित भैय्या, हनु और मनु से बहुत सुना था, पढने के बाद आपसे मिलने की इच्छा और भी बढ़ गयी है. अंत में मैं सिर्फ इतना कहना चाहूँगा की प्रशंसा के लिए शब्द नहीं है.

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  7. बहुत अच्छा तफ्सरा किया है आपने... अबोली प्रशंसा के लिए धन्यवाद।

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  8. त्यागी जी जच्चगी शब्द पर आपने इतना कुछ लिख दिया यहां उत्तर-प्रदेश में लोग इस शब्द को समझते ही नहीं हैं। क्या यूपी में इतना आधुनिकरण हो गया है। आज आशा दीदी शब्द इतना छा गया है कि जीजी शब्द भूल गए हैं क्यों?

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  9. त्यागी जी जच्चगी शब्द पर आपने इतना कुछ लिख दिया यहां उत्तर-प्रदेश में लोग इस शब्द को समझते ही नहीं हैं। क्या यूपी में इतना आधुनिकरण हो गया है। आज आशा दीदी शब्द इतना छा गया है कि जीजी शब्द भूल गए हैं क्यों?

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  10. त्यागी जी जच्चगी शब्द पर आपने इतना कुछ लिख दिया यहां उत्तर-प्रदेश में लोग इस शब्द को समझते ही नहीं हैं। क्या यूपी में इतना आधुनिकरण हो गया है। आज आशा दीदी शब्द इतना छा गया है कि जीजी शब्द भूल गए हैं क्यों?

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