जाने हमें कौनसे पालतू कुत्ते ने चाटा था जो हम अपने मित्र एवं मेजबान, जिनकी पत्नी हाल ही में मायके प्रस्थान कर गयी थी, के सामने रसोई कार्य में हाथ बंटाने का प्रस्ताव रख बैठे। तुरंत प्रस्ताव मंजूर कर उन्होंने काटे जाने वाले मद एक तश्तरी में रख कर हमारी ओर बढ़ा दिए। फिर जो औजार उन्होंने हमारे हाथ में थमाया उसकी धूसर सतह पर पड़े काले भूरे चकत्तों को देख कर मालूम पड़ता था गोया वह मोहनजोदड़ो या हड़प्पा के ज़माने का हो व उत्त्खनन से प्राप्त किया गया हो। मेरे मित्र उसेचाकू कह रहे थे, मगर चाकू समझ कर उस पुरातात्विक नमूने के साथ बेइंसाफी करने को मेरा मन नहीं मान रहा था। फ़र्ज़ करो वह चाकू ही था, तो कोई सिद्ध पुरुष भी यह सही-सही कह सकने कि स्थिति में नहीं था कि वह किधर से उल्टा है, किधर से सीधा अथवा उसके किस हिस्से को मूठ कहा जाए, किस को धार। जिस तरह 'श्रीराम' नाम लिख कर समुद्र में फेंकने से शिलाएं तैरने लगी थी, प्रस्तुत यंत्र को 'चाकू' नाम से पुकारने पर वह चल निकलेगा, कुछ ऐसे ही चमत्कार की उम्मीद हम भी कर रहे थे। किन्तु बारी-बारी चारों तरफ से इस्तेमाल की लाख सर-पटक कोशिशों के बाद भी आलू व प्याज अक्षत ही रहे, यानि दो टुकड़ों में भी तब्दील न हो सके। ताज्जुब हुआ कि आखिर घर के लोग इससे किस तरह काम लेते रहे होंगे? उसी क्षण हमें अहसास हुआ कि आखिर तजुर्बा क्या होता है! यह भी कि अभ्यास हो तो काटने के लिए किसी चाकू, छुरे अथवा दरांते की भी जरूरत नहीं होती, बल्कि चीजें वैसे ही 'रसरी आवत जात' की तर्ज पर खुदबखुद कट जाती हैं।
हर किसी में चाहे सौ नुक्स हों, एक न एक सिफत जरूर होती है। इस तथाकथित चाकू में भी एक बड़ा भारी गुण था। यह उस दुर्लभ प्रजाति का वारिस था, जो खरबूजे पर गिरे या खरबूजा उस पर, खरबूजे का कुछ नहीं बिगड़ता था। शरीफ खानदान के बेहद नेक चाल-चलन वाले इस उपकरण से पालक, ककड़ी, टमाटर आदि तरकारियों के साथ-साथ काटने वाले के हाथ भी सर्वथा सुरक्षित रह सकते थे। किसी-किसी गुमराह चाकू को झगडालू, शराबी पति के हाथों में आकर अपनी पत्नी की अंतड़ियाँ बाहर निकालते भी देखा गया है। लेकिन हमारे मित्र के चाकू में गलत हाथों में पड़ने की सम्भावना न के बराबर थी। बेशक यह 'चाकू' घास-फूस की तरह हानिरहित और अहिंसक था।
खैर, जैसे-तैसे हमने अपने मित्र को खींच कर घर से बाहर नाश्ता लेने के लिए तैयार कर लिया। रास्ते में मौका पा कर उनसे विनती की, 'बरखुरदार, इस तरह के औजार आज देश भर में इने-गिने ही रह गए हैं, सो इन्हें विलुप्ति से बचाना हम सबका दायित्व बनता है। अतः आप इसे इसकी सही जगह, राष्ट्रीय संग्रहालय पंहुचा दें तो यह बेजुबान आपको जी भर कर आशीष देगा, साथ ही साथ सम्पूर्ण राष्ट्र भी आपका चिर ऋणी हो जायेगा।'
bahut khub.. khaas kar chaaku k dhaar daar na hone ka vivran kafi haasyaspad tha..
ReplyDeleteaisi ghatna hui kis k ghar?
kamal kar diya aapne..aisa lag rha hai meri daastan suna di aapne..main bhi hostel mein sabzi katne ka kaam kar chuka hu aur aisa hi kuch hua tha :P par aapne kamal kar dia..sach mein ek dam napi tuli aur hasyavardhak hai ye post..JAI HO!!
ReplyDeleteThanks nipun!
ReplyDeleteUttam, Ati Uttam !!
ReplyDelete"Farz karo wah chaku hi thaa" ha ha !! too gud !!
Kamaal ka vivran diya uncle aapne! Mazaa aa gaya padhkar.
ReplyDeleteapke maze me hi hamara maza hai!shukriya!
ReplyDeleteAaj hi padha, Aati uttam Mujhe bhi ek chaku ki yaad aa gai jo mujhe Bhabhi ne diya tha ek sal pehle.
ReplyDeleteder aayad durust aayad...ap hamare jal me to fanse!
ReplyDeleteBahut khub likha aapne...darasal kahin aapko butter knife to nhi pakda diya tha..:P :)
ReplyDeletelekin lekh main chaaku aur apke tajurbe ki kamiyon..dono ka satik varnan aur tulna kaphi hasyapad bhi tha..:):)
bhot hi badhiya.. waise hamare ghar me chale aa rahe praacheen chaakuo ki pratha ko todne ka shreya mai chacha vinod k aadhunik chaakuo ko dunga..!
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