औरों की देखा-देखी हमने भी गेट पर खड़े जवान की तरफ टिकट के साथ परिचय पत्र बढ़ा दिया। उसे फोटो ठीक ही लगी होगी जो उसने हमें अन्दर जाने दिया। अन्दर कई काउंटरों पर ठेला गाड़ियाँ लिए लोगों की भीड़ लगी थी। सोचा लेटलतीफ हैं, टिकेट कटा रहे होंगे। सीधे जाने पर माँ के भक्तों सी घुमावदार लाइन मिली। बारी आने पर हमें कोई सा पास लाने को कहा गया। एजेंट की ठगी पर झुंझलाते हुए हमने अपनी पोशाक की तल व पहली मंजिल पर स्थित सभी जेबों की रकमों को इकठ्ठा करना शुरू कर दिया। मगर काउंटर संभाल रही सुंदरी ने बोर्डिंग पास के बदले में हमारा सारा सामान एक तरफ रखवा लिया। हमने खैर मनाई कि सस्ते में छूट गए मगर तुरंत ही फ़िक्र भी हुई कि प्रवास में किसके लत्ते पहनेंगे? पास ले कर हम जिस शख्स के पास गए, खुन्नस के मारे उस मरदूद ने सबके सामने सांगोपांग तलाशी ले कर हमारी इज्ज़त पर वो हाथ डाला जो बचपन में अम्बियाँ चुराने पर बाग़ वालों ने भी नहीं डाला होगा। फिर हमें जिस अदा से जहाज तक ले जाया गया वह ऐसा ही था जैसे गोबर पाथने वाली औरतों को गाँव के बाहर पथुआरे तक मर्सीडीज में ले जाया जाये। अनुमान था कि किराये के अनुपात में विमान की सीटें तख्ते-ताउस जैसी न भी सही, राजाओं और मनसबदारों के जैसी विशाल व आलीशान तो जरूर होंगी। किन्तु सीट की पीठ पर पड़े मटमैले जालीदार कपडे, सीटों के बीच सरहदरुपी हत्थे और सीट बेल्ट को छोड़ दें तो उसमे नंगला से खुड्डा के बीच चलने वाली खटारा से जियादा जगह शर्तिया नहीं रही होगी।
सवारियां अभी बैठी ही थी कि इंजन से जोरदार घुर्र-घुर्र शुरू कर दी। तभी दो तीन नवयुवक-युवतियों ने हाथों में कुछ लिए विमान में बराबर-बराबर दूरी पर पोजीशन ले ली। उनके चेहरे मासूम थे, चुनांचे लग नहीं रहा था कि वे अपहर्ता होंगे। साथ ही विमान अभी उड़ा भी नहीं था, ऐसे में हाइजेक कि थ्योरी तज कर मन को बेहद तसल्ली हुई। उनके बर्ताव की लोच को देखते हुए शक हुआ कि हो न हो वे सेल्समन टाइप के जीव हों। सोचा जैसे बसों में दन्त मंजन, चुटकुलों की गुटका किताबें या मोसंबी का ज्यूस निकालने वाली मशीन बेचते हैं, वैसा ही कुछ बेचते होंगे। मगर वे जनाब पेटी बांधना सिखाने लगे जो लगभग सभी सवारियां पहले ही बाँध चुकी थी। उन्होंने निकास द्वारों के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी दी जिसे विमान में प्रवेश कर सीटों तक पहुँचने के दौरान यात्री अपने आप ले चुके थे।
आखिरकार विमान चला तो कुछ कदम चल कर फिर खडा हो गया। खिड़की से झाँकने पर पता चला कि जाम लगा है। ज्यों ही अगला विमान थोडा खिसकता है, पिछला उसके पीछे चिपक लेता है मानो डर रहा हो कि कहीं तीसरा विमान बीच में न घुस जाये! कुछ इंतिजार के बाद जाम खुला। अब विमान ने रफ़्तार तो पकड़ी मगर वह रफ़्तार टमटम की सी थी । वैसी ही दुलकी चाल, गहरी नदी के जल प्रवाह सी मंथर, अलसाई हुई। इसी विध एक अरसा गुजर गया, लगा अगर मोटरकार में जा रहे होते तो कभी के मथुरा जरूर पहुँच गए होते। जब हम सोच ही रहे थे कि अब उड़े, अब उड़े तभी जहाज यूँ ठहर गया गोया ठिकाने पर आ लगा हो। मगर थोड़ी देर बाद उसके सर जुनून सा सवार हुआ और वह पागल हाथी सा चिंघाड़ कर दौड़ पड़ा। डर के मारे हमने कुर्सी के हत्थे थाम लिए। तभी महसूस हुआ जैसे हमें किसी गहरी खाई में फेंक दिया गया हो। बैठे थे तो कुर्सी सीधी थी किन्तु अब हम करीब-करीब लेटे लेटे से लग रहे थे, जैसे डेंटिस्ट के यहाँ हों और वह जमूरा ले कर बस दांत उखाड़ने ही वाला हो। विमान के बीच का रास्ता तिरछा हो कर यूँ लगने लगा मानो कोई सीढ़ी स्वर्ग को चली गयी हो, जिसके उस पार व्योम बालाएं अप्सराओं सी दिख रही थी।
कुछ देर बाद विमान हवा में सूखे पत्ते की तरह लड़खड़ाने लगा। फर्क सिर्फ इतना था कि पत्ता नीचे गिर रहा होता है जबकि हम ऊपर उठ रहे थे। हम छोटू की मम्मी की तरफ से सोच कर परेशान हो उठे। पिछले दिनों हुए तमाम विमान हादसे याद आने लगे। पछतावा भी हुआ कि उड़ने से पहले सरकारी मुआवजे को सही ढंग से ठिकाने लगाने हेतु हमने वसीयत क्यों नहीं कर छोड़ी! यह हिन्दुओं के जाप और मुसलमान भाइयों के कलमा पढने का ही असर था कि जल्दी ही सब कुछ ठीक-ठाक हो गया। अब विमान हवा में ठहर सा गया था किन्तु सवारियों ने आमद रफ्त शुरू कर दी। इंजन का शोर बदस्तूर जारी था वरना हम समझते कि इसे ही लैंडिंग कहते हैं और दरवाजे से कोई आठ दस किलोमीटर लम्बी सीढ़ी के लगने का इंतिजार कर रहे होते।
ek dam naveenta bhari rachna.. hasyaspad aur kafi rochak.. vimaan yatra ko ek naya roop dia hai aapne.. salesman wali pankti mast thi :)
ReplyDeleteWaatt laga di Airtravel ki !! Ab har flight pe yeh hi yaad aane waala hai !!
ReplyDeletehilarious.jo log pehli baar plane me yatra karene ka soch rahe ho aur agar wo log ye blog pad le to unke sapne chaknachur ho jayenge.
ReplyDeleteहर बार समय निकाल कर बारीकी से पोस्ट पढने और अपनी राय प्रकट करने का शुक्रिया, निपुण, अम्बुज और स्मिता जी।
ReplyDeleteविमान के बीच का रास्ता तिरछा हो कर यूँ लगने लगा मानो कोई सीढ़ी स्वर्ग को चली गयी हो, जिसके उस पार व्योम बालाएं अप्सराओं सी दिख रही थी।....
ReplyDeleteIsk to Jawab hi nahi....
पछतावा भी हुआ कि उड़ने से पहले सरकारी मुआवजे को सही ढंग से ठिकाने लगाने हेतु हमने वसीयत क्यों नहीं कर छोड़ी!...
ReplyDeletehahahahahaha....Aapke to bas Charan sparsh kar lo yahi lagta hai.
क्यों शर्मिंदा करते हो पवन जी, हम तो व्यंग्य के एल के जी के स्टुडेंट हैं।
ReplyDeleteSharminda to aap kar rahe hai aisa bol ke... wo kahte hai na falon se lada hua wraksh hamesha jhuka hua hota hai... aap uska best example ho...follow to main aapko karta hi hun par aaj likhne se bhi nahi rok paya apne aap ko...:)
ReplyDeleteनवीन शैली में लिखा गया संस्मरण बढिया लगा।
ReplyDeleteएल.के.जी. का इस्टुडेंट एतना बेजोड़ लिखेगा त सब ग्रेज्युएट्वन फेले हो जाएगा... मजा आ गया आपका उड़न खटोला का सवारी करके...
ReplyDeleteआप जैसे मंजे हुए के मजे में ही किसी भी लेखक का मजा है, वर्मा जी!
ReplyDeleteaap ki abhi tak ki sabse achhi rachnao me se mein ise bhi ginunga.. :)
ReplyDeleteair hostess ki buso mein saaman bechne walo k sath tulna bahut hi napi tuli thi..
beech hawa mein apke alava shayad hi kisi ne qubula hoga ki maze se zyada neeche ki hawa khisak jaati hai.. :P
mujhe apne pehle safar ki yaad aa hi gyi!
बहुत ही सुन्दर. आनंद आ गया.
ReplyDeleteरोचक ।
ReplyDeleteBoht hi Umdaa!
ReplyDeleteParantu vimaan ke aasman mein chadne ka woh darawna ehsas pehle yaatra mein hi nahi, har yaatra mein anubhav hota hai...
बेहतरीन शब्दों का चयन, किसी भी विमान यात्री को यह रचना सुनाई जाये तो वह लोट-पोट हुए बिना नहीं रहेगा :)
ReplyDeleteMarvelous!! mujhe meri pehli hawayi yaatra yaad aa gayi.
ReplyDeleteनमस्ते सर
ReplyDeleteआप के लेखन के लिये शुभकामनाये
मेने कुछ हिन्दी मै टाईप करने की कोशिश की है
मुझे हिन्दी टाईप करना नही आता है
लेकिन आप हिन्दी मै लिखते तो मुझे आप को हिन्दी मै ही लिखना चाहिये
Thanks Manisha, would you mind telling about you so that I am in right perspective?
ReplyDeletenamaste sir
ReplyDeletethanks for your reply.actually u didn't get me i can read and write hindi but i find difficulty to type in hindi .i want to share something with u .it is very necessary to speak in english and we should speak but shouldn't lose our language.i'm not against any language.
but when i see student can't read and write in proper hindi i feel bad even parents are not aware.they feel proud that they don't know proper hindi. i feel that they should do well in both language. may be i am wrong but that the way i feel so
ok my good wish to u and family
u just carry on good work
thanks
Would you please give your surname of your student's life?
ReplyDeletesir i I'm not your student i am your reader.my sister was your student and she suggested me to read your blog ....... her name is smita dubey
ReplyDeleteYou are most welcome, manisha ji whether or not my student! I just wanted to recognise you. I also thank your sister to gift me a Reader.
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