- वह जो कान से मोबाइल चिपकाये, दोनों जहानों से बेखबर सड़क पर इस अदा से चला जा रहा था कि रिमझिम बरखा में जुगाली करता भैसों का झुण्ड उससे रश्क करे.
- दूसरों को चुनौती देता सा कोई मतवाला जो सुबह-सुबह घर से चाय की प्याली नहीं बल्कि अमरता का प्याला पी कर निकला हो. गो ख़म ठोक कर कह रहा हो - 'है कोई माई का लाल, जो मेरा कुछ बिगाड़ सके...मैं अभी उसकी टांग के नीचे से निकलने को तैयार हूँ.
- सड़क पर उतर पड़ा एक ऐसा शख्स जिसके वास्ते हर वाहन चालक को चौकस और चौकन्ना रहना पड़ता है. डार्विन की 'सर्वाइवल इंस्टिंक्ट' की थ्योरी को गलत साबित करता एक चलता-फिरता उदाहरण! एक नए मुहावरे- 'मरता, तो भी कुछ न करता' को गढ़ता हुआ, जो अपनी सलामती का पूरा जिम्मा सामने वाले पर डाले रहता है.
- भोले नाथ का कोई सिर-चढ़ा भक्त. चिलचिलाती धूप और कडकडाती ठण्ड में एक टांग पर खड़े हो कर किये घनघोर तप की फिरौती के रूप में जिसे भक्तवत्सल ने वरदान दिया हो ... 'बच्चे जा, तुझे न कोई ट्रक कुचल सकेगा, न डम्पर; न कोई कार तुझे टक्कर मार सकेगी न ही सिटी बस. जब तलक तू सड़क का दामन नहीं छोड़ेगा, सर्वथा सुरक्षित रहेगा.
- कुर्बानी के जज्बे से लबरेज़ कोई शासकीय कर्मचारी, जो अपने निखट्टू बेटे के मोह में पड कर अपने जीवन की बलि देने चला हो ताकि बेटे को अनुकम्पा नियुक्ति दिलवा सके.
- दोनों तरफ कतार बांधे खड़े कोर्निश बजाते दरबारियों के बीच से हो कर गद्दी नशीन होने जाते हुए जिल्ले-इलाही, आफ़ताबे-वतन, शहंशाहे हिन्दुस्तान की भटकी हुई आत्मा.
- 'थर्ड पार्टी' जिसके नाम पर इंश्योरेंस कम्पनियाँ अपना खजाना तो भर लेती हैं किन्तु दैवीय चूक से जिसे कुछ हो जाने पर गाँठ ढीली करने के बजाय कानून छांटने लगती हैं
- ......पता नहीं वह कौन था?...जो भी था, मगर रहा लाख होर्न बजाने के बावजूद बेसुध! 'मीर' साहब ने इनके लिए यूँ फरमाया है... तेरे बेखुद जो हैं सो क्या चेतें. ऐसे डूबे कही उछलते हैं.
Sunday, September 19, 2010
वो कौन था...?
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त्यागी सर! आपका पोस्ट पढने के बाद होंठ पर मुस्कुराहट और दिमाग में हलचल होता है... एक साथ दुनों भाव... हमरे आस पास ही है ऊ आदमी जिसका आप जिकिर किए हैं...बहुत सुंदर!!
ReplyDeleteसलिल जी, आपकी टिप्पणी सीधे दिल से निकलती है और सामने वाले के दिल को छू लेती है! आभार.
ReplyDeleteHumari bhasha mein "ghodu". Poore raaste gaali deta chaltaa hoon aison ko :P
ReplyDeleteitna umda likha hai ki mujhe pura yakeen hai ki teesre bindu tak log bas bhaanp bhar sakenge ki kis pe likha hai.. :)
ReplyDeleteambuj bhaiya.. "ghodu" ya fir "khurpa" bhi..!
जबरदस्त.. !!!
ReplyDeleteजमीन पे खड़े खड़े जमीनी हकीकत से रु ब रु करवा दिया आपने तो..
BEMISAl hai sirji.
ReplyDeleteThank you Amit, Hanu, Kush and Smita for showing interest in the post and finding time to comment too
ReplyDeletesir we'll find time to comment but you must find time to write.I hope some day you'll post your poem too.eagerly waiting to read them.
ReplyDeleteSmita ji, dekhten hain ki vah shubh ghadi kab aati hai...abhi to vyangya me hi man hai...
ReplyDeleteachha aur dilchsp vivran .
ReplyDeletekhas indouri andaj me .