कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है
हमारे सामने के दो दांत पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे. जब तीसरे ने भी उधर की राह पकड़ी तो बोलते वक़्त पैदा हो गयी दरार से हवा निकलने के कारण सुनने वाले पहेलियाँ सी बूझते नज़र आने लगे. उन पर मेहरबानी की गरज से तीन दांत लगवाने हम दांतों के डॉक्टर के पास गए. अव्वल तो दन्त स्वास्थ्य की अनदेखी पर उन्होंने हमें लम्बा-चौड़ा भाषण पिलाया. फिर लगभग मुंह के अन्दर सर घुसाते हुए घनघोर मुआयने के बाद व्यवस्था दी कि आजू-बाजू के दांत भी सड़े हुए हैं, किनारे की दाढ़ भी खराब है, पहले उन्हें निकालना होगा...लिहाज़ा भरे-भरे गए थे, खाली-खाली लौटे.
आये थे हँसते खेलते मयखाने में फ़िराक
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए.
बहुत बेआबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले
दांतों की ताँक-झाँक, एक्स- रे और आखिर में चिकित्सकों के छुरे- जमूरे के नीचे से निकले तो पता लगा कि बुलंद दन्त-मीनारों की जगह ग्राउंड जीरो बन चुका है. फर्क सिर्फ इतना रहा कि वहां दो मीनारें ध्वस्त की गयी थी यहाँ तीन. वहां एक झटके में इस कृत्य को अंजाम दे दिया गया था तो यहाँ आहिस्ता-आहिस्ता यह विध्वंस संपन्न हुआ था. वहां लोग मरते वक़्त अपने-अपने ईश्वर को भी याद नहीं कर पाए थे, यहाँ हम राम-राम करते हुए भी हलाल होने से न बच पाए थे. खैर, आखिर जब हम क्लिनिक से बाहर लाये गए तो मुंह का हाल अमूमन उस युवती की तरह हो गया था जिसे मनचलों ने गेंग रेप के बाद चलती गाड़ी से बाहर फेंक दिया हो....वही ज़ख्म, वही अधमरापन, वही दुनिया से मुंह छुपाने की इल्तिजा.
निर्माण कार्य जारी, असुविधा के खेद है
अब तो आलम यह है कि मुंह में जगह-जगह खुदाई से जिंदगी हलकान है. खाने पीने के तमाम रास्ते या तो बंद हैं या परिवर्तित कर दिए गए हैं. बोलना तो सरासर मुहाल है. थोडा बोलना भी दिमागी कसरत का सबब बन चुका है क्योंकि त-वर्ग के शब्दों के पर्यायवाची तलाशने पड़ रहे हैं या उनका अंग्रेजी तर्जुमा करना पड़ रहा है. दन्त-निर्माण का कार्य बी आर टी एस सड़कों या फ्लाई ओवरों की तरह बूढ़े कछुए की चाल से चल रहा है. हर बार जांच के लिए बुलाने के बाद डॉक्टर अगली तारीख दे देता है. नतीजा वही- तारीख़ पे तारीख़, तारीख़ पे तारीख़. अब तो एक्स्पेक्ट करते-करते हम आजिज़ आ चुके, दांतों की डिलीवरी कब तक होगी कोई बेजान दारूवाला भी नहीं बता सकता...तब तक ऐसे ही गुजर करनी होगी जैसे कोई हाकी या फ़ुटबाल की टीम दस नहीं, नौ नहीं बल्कि सात खिलाडियों के साथ खेलती है.
Hahaha.. (daant dikha k has rha hu :D )
ReplyDeleteYou...!Daring to Deride my dental disability by display of your divine dentures!!
ReplyDeletehahaha,
ReplyDeleteDuring your recent visit to Ghaziabad, someone was asking me, "Sushil ne pee rakhi hai kya?" !! I asked why ? He said "dekh kaise bol raha hai" !! Then I told, "no he as lost his front teeth, thats why he's sounding like this" :P
Agar do daant girne par piye hue lagta tha to ab 6 daanto ke baahar aane par to poora alcoholic hi samjha jaaunga!!
ReplyDeleteNahin, full Bodaa is Buddhaa !! Not piyakkad :P
ReplyDeleteZabardust !! Taaliaan !! :-)
ReplyDeleteTa-warg ke shabdo ke paryaaywachi khojne pad rahe hain :D
काफी उम्दा विवरण .... :-)
ReplyDeletebohot badiya... maja aa gaya..
ReplyDeletehahahahahahahha....ab toh aap swami ramdev ke dant kranti naamak dantmanjan ke vigyapan mein aa sakte hain...wakai mein dant kranti aa jaegi :)
ReplyDeleteआये थे हँसते खेलते मयखाने में फ़िराक
ReplyDeleteजब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए.
WAAH!!! Loved it!!
मजा आ गया. हमने तो एक एक कर सभी निकलवा लिए हैं. दाढ के तीन बचा रखे हैं यह बताने के लिए की सभी डुप्लीकेट नहीं हैं.
ReplyDeleteविवेक, कार्ट मैन, लीजो, पियूष, आदित्य और सुब्रमनियन जी सभी का उत्साहवर्धन के लिए आभार!
ReplyDeleteमन तो कर रहा है की दांत दिखा के जोर से हंसू
ReplyDeleteपर डर लग रहा है की कहीं दांतों के डॉक्टर ने देख
लिया तो कही लेने के देने ना पड़ जाये !!!!!!!!!!,
कहा जाता की की इंसान जब दर्द में हो तो उत्तम रचना करता है ,
शायद आपके case ये बात एकदम सही है.सर्वोत्तम रचना !hahaha
I hope you are fine now....
आप आये, बहार आई!! ...अभी कहाँ मैडम जी, अभी तो रूकावट के लिए खेद की पट्टी बाकायदा लगी है. अगले ब्लॉग में अगले कष्टों की किश्त पेश होगी ...तब तक थोडा इंतज़ार कीजिये. ये बताओ श्रीनिवास राव चोइथराम स्कूल के प्रिंसिपल बन गए क्या?
ReplyDeleteऔर आप कैसी हैं?
sirji बहार तो आप जैसे लोगो से है ,
ReplyDeleteहम तो धन्य है की आप जैसे लोगो से वास्ता है,
आप के ब्लॉग पढकर मज़ा तो आता है पर आपके स्वाथ्य की भी फिक्र होती है ,बस आप अपना ख्याल रखें !
श्रीनिवास राव choithram के प्रिंसिपल बन गए है पर में शिशुकुंज में काम कर रही हु.........
.तब तक ऐसे ही गुजर करनी होगी जैसे कोई हाकी या फ़ुटबाल की टीम दस नहीं, नौ नहीं बल्कि सात खिलाडियों के साथ खेलती है. ..
ReplyDelete...ab to 7 mein hi santosh karna padega..
badiya aap-beeeti..
hhhhhhh...i can understand ur pain....i was not here n ..look at urself....i'm feeling sorry for u....u were gang raped .....don't worry everything will b alright..hhhhhh
ReplyDeleteUncle mazaa aa gaya! 'T' warg ke paryaywachi LOL!! Hans hans ke pet mein bal pad gaye!
ReplyDeleteहर बार जांच के लिए बुलाने के बाद डॉक्टर अगली तारीख दे देता है. नतीजा वही- तारीख़ पे तारीख़, तारीख़ पे तारीख़. अब तो एक्स्पेक्ट करते-करते हम आजिज़ आ चुके, दांतों की डिलीवरी कब तक होगी कोई बेजान दारूवाला भी नहीं बता सकता.
ReplyDeleteaapki hr bat se sahmat hoon.bhut khatarnak experience hai.achcha laga padhkar.
स्वागत है, मैडम जी आपका, बहुत बहुत स्वागत है ब्लॉग पर! आशा है, दर्शन होते रहेंगे!!
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