Saturday, August 6, 2011

दांत, माप और धोखा

धोखा 
मुक़र्रर तारीख पर दांतों का माप देने हम क्लिनिक पहुंचे. इशारा किये गए फर्नीचर पर चढ़ कर अधबैठे या अधलेटे से, हाथ में फीता लिए डॉक्टर के प्रकट होने का इंतज़ार करने लगे. तभी एक जूनियर डॉक्टर ने एंट्री मारी, वो भी खाली हाथ. आते ही हमें भौचक करते हुए सवाल दागा- आपने खाने खाया? हमने कहा- हाँ, दो बजे खा लिया था...मगर आप पूछ क्यों रहे हैं? आखिर खाने का माप से क्या लेना देना? वे शायद काम में ज्यादा बातों में कम विश्वास रखते थे, सो एक मोनालिसा मुस्कान बिखेर कर गायब हो गए. हम आगत की आशंका से काँप उठे.

तैनाती
उसी वक़्त सफ़ेद लबादे में दो तीन डॉक्टर  मुंह पर मास्क और हाथों में दस्ताने चढ़ाये हमारे इर्द-गिर्द तैनात हो गए. उन्हें देख कर यह भेद कर पाना मुश्किल था कि उनमे से कौन जूनियर डॉक्टर है और कौन उनका सरगना यानि सीनियर. हम सोचने लगे ... हम टीचर लोग तो पढ़ाते वक़्त अपना मुंह उघाड़े रखते हैं, फिर आपरेशन के दौरान डॉक्टर अपना मुंह क्यों ढक लेते हैं. बहुत विचार करने के बाद यही समझ आया कि अपनी पहचान छुपाने के लिए ही वे ऐसा करते हैं ताकि चाकू की चूक से मरीज़ की जान वान चली जाने पर उनकी खुद की जान बच सके. 

आक्रमण 
खैर, इससे पहले कि हम कुछ पूछने को अपना मुंह खोलते, निचले होंठ को पीछे धकेलते हुए उन्होंने राजपूतों के ड्राइंग रूम में आड़े-तिरछे सजे भालों के अंदाज़ में कई सुइयां हमारे मुंह में घोंप दी, बस इस अंतर के साथ कि यहाँ भालों की नोंक नीचे की तरफ और हमारे अन्दर थीं. यह ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता कि सुइयां मसूढ़ों में ठोकी गयी थी, गाल में, या गाल और मसूढ़ों के संधिस्थल में. अलबत्ता, इतना जरूर कहा जा सकता है कि घड़ी भर में ही हमें अपना चेहरा मशक जैसा फूला-फूला लगने लगा. निचले होंठ को जहाँ तहां दबा कर देखा तो लगा जैसे स्कूटर की ट्यूब में पंचर टेस्ट कर रहें हों. अब आती क़ज़ा से बचने का कोई रास्ता न देख हमने खुद को डॉक्टरों के हवाले कर दिया.  उन्होंने हमारे इधर-उधर के दांतों को किसी खराद पर धर कर धुंआधार छीलना शुरू किया. शल्य-क्रिया कक्ष में उड़ते कणों की धुंध  और स्टोन-क्रशर सी गंध फैल गयी. दांत के एपीसेंटर से उठते टीस के जलज़ले पूरे बदन को अपनी चपेट में लेने लगे. फ़िराक साहब का एक शे'र है:
उसका   सरापा   हमसे   पूछो   
सर से पाँव तक चेहरा ही चेहरा 
वहां जो चेहरा था वो यहाँ दांत था. हमारा  समूचा वजूद भी दांत बन कर रह गया था. रह-रह कर सीट से इंच भर ऊपर उछलता हमारा पृष्ठ भाग, पूरे शरीर का दांतों की दिशा में बेतहाशा सिकुड़ना और चेहरे पर खौफ और दर्द की लहरियां भी उस संगकार को अपनी धुन से न डिगा सकी. कसम खुदा की, विद्यार्थियों और परिजनों की श्रवण संबंधी तकलीफों का ख़याल न होता तो हम बीच में ही उठ कर भाग खड़े होते.  

10 comments:

  1. हा हा हा.. Anesthesia का इस से अच्छा विवरण मैंने और कहीं नहीं पढ़ा होगा

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  2. यह तो बडा ज़ुल्म हो गया।

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  3. रामा रामा जुलुम हुई गवा रे,
    हाल हमरा गजब हुई गवा रे!!
    त्यागी सर!! आठ महीनों में सिर्फ छः पोस्टें.. बहुत बे-इंसाफी है हम जैसों पर.. जो आपसे सीखना चाहते हैं कि हास्य-व्यंग्य लेखन किसे कहते हैं... प्रणाम आपको!!

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  4. Chalo daant nikalne/lagne k bahaane aapne blog likhna wapis shuru to kia!

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  5. ये भी खूब रही - बढ़िया

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  6. Gosh, I felt as if I am being given the Anesthesia & my teeth are being operated Upon. Lively explanation of feelings. :)

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  7. अंकल जी,
    हम सब की माँग है.. रेगुलर हो जाईये..

    वैसे पोस्ट तो ज़बरदस्त है :)

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  8. @सलिल भाई, विश्व दीपक जी, आप इधर आते रहेंगे तो लेखनी चलती रहेगी. कभी ये शे'र सुना था:
    'हाँ, वो आ जाते हैं, आयेंगे, वो आते होंगे
    इसी उम्मीद ने बीमार को मरने न दिया'

    @ राकेश भाई, स्मार्ट इंडियन...आपके शुभागमन का आभार... इनायत बनाये रखिये.
    @ हनु, मनु, अमित ...आप सब तो रेगुलरिटी के लिए तमगे डिसर्व करते ही हो!!

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  9. tyagi sir vidambana toh yeh hai ki mooh ko raajpooton ka jang-e-maidan banane ke baad bhi in doctoron ke aage apna batua cheer haran karvana padta hai :( vaise ab aapka daant kaisa hai?

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  10. extremely..sorry for late reply......but i'm really happy u r the as same as . i read u b4.....n i happy u met bhai...i mean doc...n ..still enjoying life good

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