सुनते हैं कि जाने माने शायर असरार यानि मजाज़ जब लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ते थे तभी खासे मशहूर हो चले थे। वो थे भी बेहद आकर्षक! लिहाज़ा कॉलेज की लड़कियां उनकी फोटो अपनी डायरी के पन्नों की तह में छुपा कर रखा करती थी। अक्सर किसी खडूस प्रोफ़ेसर की क्लास में चोरी छिपे तस्वीर का दीदार करते हुए हंसी-खुशी क्लास झेल लिया करती थी। कुछ इसी तरह का वाकया एक रोज़ खाकसार की क्लास में हाजिर हुआ। देखा जाए तो हम स्कूल की तर्ज़ पर खाली क्लास को घेरने में यकीन नहीं रखते। मगर क्या कीजिये, हमारा विषय रिसर्च-स्टेटिस्टिक्स ही कुछ ऐसा है। उस पर पढ़ना भी यह हरेक को पड़ता है, चाहे उसने गणित दसवीं जमात तक पढ़ कर ही क्यों न छोड़ दिया हो। चुनांचे मौका हाथ आते ही हम एक्सट्रा क्लास लपक लेने से बाज नहीं आते। तो किस्सा मुख्तसर है कि हम पहला पीरियड खत्म करने के बाद दूसरा भी पढ़ा रहे थे। विद्यार्थी किसी सवाल पर काम करने में भिड़े थे और हम मदद के इच्छुकों की तलाश में कतारों के बीच गश्त कर रहे थे। तभी ठेठ पिछली कतार में एक लड़की पर निगाहें टिक गईं। करीब पहुंचे तो देखा मोहतरमा की गोद में एक किताब खुली पड़ी है। किताब मनोविज्ञान की थी और हमारे एक साथी प्रोफेसर ने लिखी थी।
अचानक यूं नज़रों में आ जाने पर लड़की घबरा उठी और सफाई देने लगी। हमने कहा- नाहक ही शर्मिंदा हो रही हो...आखिर कोई गुलशन नंदा का नॉवेल थोड़े ही पढ़ रही थी! ख्यात विद्वान लाला हरदयाल एक साथ कई ग्रंथ न केवल पढ़ लेते थे बल्कि अक्षरशः कंठस्थ भी कर लेते थे। आज की बात करें तो शतरंज प्रतिभा विश्वनाथन आनंद एक ही समय अलग-अलग बोर्डों खेल रहे दर्जनों प्रतिद्वंदियों को चित करने का कारनामा कई बार दिखा चुके हैं । हमे तो गर्व है कि तुम इनकी जमात में आ खड़ी हुई हो। हमारा तो आप सभी से बस इतना कहना है कि गोद में छुपा-छुपा कर क्यों, डेस्क पर रख कर खुल्लमखुल्ला पढ़ो। हाँ, कभी ऐसा लगे कि स्टेटिस्टिक्स की खुराक कड़वी है या फिर जबरिया आप लोगों के गले उतारी जा रही है, तो थोड़ा इशारा कर देना।
क्लास छोड़ कर पहले तो हमने मनोविज्ञान के प्रोफसर से पार्टी ली। फिर वह तरकीब खोजने में लग गए जिससे अपने विषय में भी वो कशिश पैदा की जा सके कि विद्यार्थी उसकी किताब भी डेस्क की आड़ में छुपा कर पढ़ने लगें। अगले हफ्ते हमने भी स्टेटिस्टिक्स का टेस्ट रखने का फैसला कर लिया।
अच्छी रही यह मनोविज्ञान की सांख्यिकी या कहें सांख्यिकी का मनोविज्ञान.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर. याद आ गए वो दिन जब खाकसार भी मास्साब हुआ करते थे.
ReplyDeleteYeh batao, yeh manovigyan ka professor dost kaun hai ? Pal sahab ? hahaha !!
ReplyDeleteHam to peeche baith k soya karte the.. aapke case me ladki jagi to hai! and party kis ki li thi!? Amrood partyy!? :D
ReplyDeleteलड़के बैकबेंचर होते हैं तो शरारत करते हैं, लड़कियाँ बैकबेंचर हों तो भी किताबें पढ़ती हैं?
ReplyDeleteशमा बाँध दिया आपने तो ....साधुवाद आपको
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया..आनंद दायक।
ReplyDeleteu must have had great fun when u took party from professor..poor man u caught him...thank god m not ur student ..... it more fun to b ur reader than student.....have great day...keep writing n makes us laugh
ReplyDeleteधन्यवाद जाट देवता, देवेन्द्र भाई, वर्मा साहब, सुम्रमनियन जी, मनु और अमित, दुबेजी, संजय भाई तथा मनीषा मैडम... सभी का तहे दिल से आभार. नेट देवता के कुपित हो जाने की वजह से समय पर आभार प्रकट नहीं कर पाया.
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