हम दूसरी मंज़िल छोड़ कर चौथी पर क्या रहने को गए कि कालोनी को मुद्दा मिल गया। ऐसे चर्चे चले मानो मीडिया के हाथ कोई अन्ना हज़ारे लग गया हो। तरह-तरह के मुंह तरह-तरह की बातें करने लगे। एक महाशय ने हाँकी- पकी उम्र में इतने ऊपर! ना, बाबा न!! मर गए तो कोई तोपों की सलामी देने आने वाला नहीं...हमें एलाट हुआ होता, हम तो साफ मना कर देते। अरे, शहादत का इतना ही शौक होता तो फौज में भर्ती न हो गए होते। एक देवी जी ने, जो भरी बदन की मालकिन भी थी, चुस्की ली- और मैडम जी को तो देखो! रोज-रोज की सैर से पेट नहीं भरता था जो अब चौथे माले पर भी चढ़ बैठी! दो-दो जवान बच्चों की माँ हैं, मगर शरम रत्ती भर नहीं। पता नहीं इस अधेडपन में कमर पतली करके कहाँ कूल्हे मटकाने जाएंगी, महारानी जी!
एक अजीज़ मित्र का अरसे से चौथी मंज़िल पर मुकाम रहा है। मकान बदलने की खबर देते हुए उनसे हमने कहा- अब हम भी आपके लेवल पर आ गए हैं। बोले- यानि गिन-गिन कर बदले लेंगे! शिफ्टिंग के बाद सभी दोस्तों को आ कर नया मकान देख जाने की पेशकश की। तब से तीन चार वीक ऐंड गुज़र गए, कोई इधर नहीं फटका। कहा किसी ने कुछ नहीं, हम समझ गए कि भाई लोग पोतों-दोहतों का मुंह देखे बिना दुनिया नहीं छोडना चाहते। हमने लाख दलील दी कि भले मानुसों, कौन कहता है कि आप दुरन्तो (राजधानी एक्सप्रेस की छोटी बहन) की तरह इंदौर से छूट कर धुर मुंबई की धरती पर ही जा उतरो? अरे भाई, मंज़िल दर मंज़िल जर्नी ब्रेक करते हुए गंतव्य तक आओगे तो यकीन मानिए आपको कुछ नहीं होगा। हर माले पर घड़ी भर दम लेने को बेंच, छत का पंखा और गला तर करने को घड़ा-गिलास रखवाने का लालच भी दिया। साथ ही यह भी वादा किया कि एक-एक खोमचे वाले और मुन्ने-मुन्नियाँ बहलाने के लिए गुब्बारे वाले का इंतजाम भी करवाए देते हैं....मगर नतीजा कोई खास नहीं! सुन तो बहुत रखा था कि जो जितना ऊपर बैठा है वह उतना ही अकेला होता है, अब समझ में भी आ गया।
फिराक में आसरा ढूंढ कर हादसा भुलाने की कोशिश की:
क्या रखा है आस रहने ही में, क्या रखा है पास रहने ही में
एक आदत सी हो गयी है फिराक, वरना क्या रखा है उदास रहने ही में
कोशिशें रंग लाने लगी थी, तबियत कुछ संभलने लगी थी कि एक जोरदार झटका लगा। अगला महीना आ गया... दूध वाले ने बिल आगे बढ़ाया। हमने कहा- दूध तो उतना ही लिया है फिर पंद्रह रुपये फालतू काहे के ? बोला- मंज़िल सरचार्ज, भूतल के बाद पाँच रुपये फी मंज़िल के हिसाब से। अभी पेपर वाला, केबल वाला, सब्जी वाली बाई, काम वाली बाई आना बाकी हैं, देखते हैं आगे क्या होता है?
Comments on madamji are awesome !!
ReplyDeleteअति उत्तम . लेकिन अब इस पोस्ट से यूनिवेर्सिटी वालो को दूर कैसे रखा जाएगा. भरे बदन वाली आंटी ये पढेगी तो अच्छा नहीं लगेगा उन्हें !!
ReplyDeleteAur yeh Doodh waale ne sach mein paise badhaaye is wajah se ?
ReplyDeleteमैंने ये कसम कहाँ उठाई कि में सच कहूँगा...सच के सिवाय कुछ नहीं कहूँगा! हाँ, यह भी नहीं कि जो लिखा है, वह सब झूठ है.
ReplyDeleteनिश्चित ही आप की सब से उम्दा पोस्ट में से एक!
ReplyDeleteमैं तो कह्ता हुँ की यूनिवर्सिटी की हेल्थ मुहीम के चलते हर मोटे मुलाजिम को उपरी माला मिलना चाहिए!!
दोस्तों को घर बुलाने के लिए क्या चालें बताई गयी हैं... वाह..
ReplyDeleteत्यागी सर!
ReplyDeleteतरक्की से सभी जलाते हैं.. क्या करेंगे ज़माने का दस्तूर है... और जब तरक्की हुई है तो सरचार्ज तो बनता ही है!!
हनु- हम अब किधर से मोटे हैं भाई?
ReplyDeleteभावनेश- ठीक कहते हो, मगर 'उलटी हो गयी सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया.....'
बिहारी बाबू- आपका फैसला सर आँखों पर...मगर ऐसी तरक्की से तो बे-तरक्की ही भली!!
Can't stop laughing. Well written Sir. I have started looking forward to Hanu's posts about these blog updates.
ReplyDeletemujhe aap se sahanubhuti hai....hhhh....all the best 4 milkman paperwala ..kebalwala..n so many more
ReplyDeletegreat ...enjoy reading u....:)
paudi paudi chadte jao jai mata ki karte jao...uche manjilo(floors) walo ki sada hi jai ... bol jaikara tyagi baba ka
ReplyDeleteLook at the positive sides... Less Polluted Environ (both Air & People).. Less people visiting means more time to write blogs.. More Social Networking (Virtual)... Welcome to New World...
ReplyDeleteFrom A Rat
who was first to leave 4th Floor Ship
Uncle kamaal kar diya! Aasha karte hain isko padhke bhare badan waali aunty zaroor tapkein aapke ghar! My parents are a fan of your writing. Mummy says : ham Hulaskar badhe the chauthi manzil ki taraf, ham seedhiyan chadhte gaye aur karwan ghatta gaya...
ReplyDelete- vartika
Sir, baki sab toh thik hai, par aisi kaunsi jagah flat le liya ki chauthi manzil par hai aur building mein lift bhi nahin hai?? Flat hi liya hai na, sir?? @Avtaar sir, koi nahi sir, chai parti v taan ho jaugi!! :)
ReplyDeleteवृतिका जी, आप यह ब्लॉग पढ़ती हैं यह तो खबर थी, आज टिप्पणी की पहली कमाई भी कराने के लिए आपका आभार! इसी डोर के सहारे घर में नया मेहमान आने की खुशखबरी पर हम अपनी बधाई आप और सौरभ तक पहुंचा रहे हैं...कृपया स्वीकारें! मम्मी पापा यह ब्लॉग पसंद करते हैं, हमारी खुशनसीबी है!... हमारा शुक्रिया उन तक भेजें तो बड़ी मेहरबानी होगी।
ReplyDeleteअवतार: सर जी, कहाँ हम और कहाँ बाबा लोग!! बाबा और नेता तो सदा भक्तों और चमचों से घिरे रहते हैं!
ReplyDeleteसिद्धि: मल्टी में लिफ्ट तो है, मगर मेनुयल, माने सेल्फ सर्विस ...जिसमे खुद के शरीर का बोझ खुद को ही उठाना पड़ता है।
साइबर नोमैड: दिल को समझाने की तरकीब अच्छी है!!
It seems like Galibs'Situation
ReplyDeleteKuch to Duniya Ke Inayat Ne Dil Tod Diya
Kuch Talakh-e-Halaat Ne Dil Tod Diya
Hum to Samjhe the Ki Barsat Me Barsegi Sharab
Aayee Barsat to Barsat Ne Bhi Dil Tod Diya.
One more by Sudarshan Faakir fits on the situation :
ek do roz kaa sadma ho to ro leiN, 'Faysal'
ham ko har roz ke sadmat ne rone na diyaa
तो प्रोफ़ैसर साहब, इस मुआमले में भी हमसे तीन सितारा ज्यादा हो लिये।
ReplyDeleteदूध वाले ने पन्द्रह रूपये बढ़ाये तो उसका जिक्र कर दिये आप, कंचनजंघा की चढ़ाई से डरकर आलतू फ़ालतू लोगों के न आने से जो बचत हुई उस पर आप भी नेताओं की तरफ़ स्किपिंग, ट्विस्टिंग कर गये।
वर्तिका जी की मम्मी जी का रिमिक्स शेर बहुत-बहुत मजेदार, इस पोस्ट पर बहुत जमा।
सरजी,
ReplyDeleteकुछ तो ग्ड़बड़ है। बात चौबीस तारीख की है, एक कमेंट अंशुमाला जी की पोस्ट पर किया था और एक कमेंट आपकी पोस्ट पर - उनके ब्लॉग पर उसी दिन चैक किया था, कमेंट पब्लिश नहीं हुआ था और आज इधर देखा तो इधर भी नहीं - या इलाही ये माजरा क्या है? सिर्फ़ यही नहीं, उसी दिन आपका कमेंट मुझे मिला तो चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आई कि अरे त्यागी साहब ने भी तभी याद किया जब उनको कमेंट किया(मुझे लगा था कि मेरे कमेंट के बाद आपने कमेंट किया है), अब जोरों से हंसी आ रही है।
अपना कमेंट अक्षरशः याद है, "तो गोया प्रोफ़ैसर साहब, इस मामले में भी हमसे तीन दर्जा ऊपर हो गये:) दूध वाले के पन्द्रह रुपये ज्यादा वाली बात तो बता दी, आलतू फ़ालतू के लोगों के न आने से समय, धन की जो बचत हो रही है, उसकी बधाई। वर्तिका जी की मॉम का रीमिक्स शेर गज़ब का है।"
आज का एडीशन - हैप्पी दीपावली, आपलो, आपके अप्रिजनों, स्वजनों पाठक, पाठिकाओं को भी।
संजय भाई, देर आयद, दुरुस्त आयद...चलो इसी बहाने आपका कमेन्ट समापन कमेन्ट हो गया, टिप्पणियों पर टिप्पणी भी हो गयी और लगे हाथों हमे लंबी गुफ्तगू का लाभ भी मिल गया।
ReplyDeleteचौथी मंजिल पर चढ़ कर कितना देखा, क्या-क्या देखा, यह तो लिखा ही नहीं!...तीसरी, दूसरी और पहली वाली को!
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