Saturday, June 2, 2012

इंदौर@जून, 2012

3 जून,रविवार
निरभ्र आसमान
चौथे तल्ले का
सबसे ऊपर का फ्लेट,
दिन के करीब ग्यारह।
नाश्ते के बाद
बंद पंखे के नीचे
पलंग पर
चादर तान
घंटे भर की नींद निकाल,
बस अभी-अभी उठा हूँ.....
ये मौसम-ए इंदौर है,
ठेठ नवतपा में। 

Friday, April 13, 2012

जल, छलिया छलिया छलिया छलिया, जल....! (पानी से निकली समापन पोस्ट)



अत्यावश्यक सूचना
कालेज में नया सत्र प्रारम्भ होने वाला है। समस्त शिक्षक गण कृपया अपने घरों में नल/टैंकर के आने वाले दिवस, समय और आवृत्ति की जानकारी दो दिनों के अंदर कार्यालय में उपलब्ध कराएं ताकि समय सारिणी बनाते समय ध्यान रखा जा सके। समय सारिणी घोषित होने के उपरांत किसी प्रकार के निवेदन पर विचार नहीं किया जा सकेगा।

गुत्थी
प्रोफेसर बामनिया के सप्ताह में चार पहले पीरियड लगाए जाने हैं। दुर्योग से पहले पीरियड के समय ही उनके घर नल आता है। जहां उनका कालेज सप्ताह में छह दिन लगता है, वहीं नल आने की दर एक दिन छोड़ कर एक दिन है। हिसाब लगा कर बताइये कि सप्ताह में उनके पीरियड किस-किस वार को लगाए जाएँ ताकि नल आने वाले ज्यादा से ज्यादा दिन वे घर पर हाजिर रह कर पानी भरने की जुगत कर सकें।

न फिरने वाले दिन
बकवास करते हैं सब! झूठ बोलते हैं वे लोग जो यह फैलाते फिरते हैं कि किसी के भी दिन एक से नहीं रहते... सबके दिन फिरते हैं। अरे, सर्दी के बाद गर्मी पड़ने से, गर्मी खत्म होने पर बरसात आने से, घन गरजने, जल बरसने से क्या होता है? मौसमों की बदली से हालात तो नहीं बदल जाते! नलों मे सैलाब तो नहीं आ जाता। वे तो सदा की तर्ज़ पर टप-टप-टप ही टपकते हैं। अब रेलगाड़ी को ही लें। समय गुजरने के साथ-साथ उसके फेरे बढ़ते जाते हैं। वही गाड़ी जो सप्ताह में एक दिन चलना शुरू हुई थी, अगले साल दो फेरे करने लगती है और दो-एक साल के बाद हर रोज़ चलने लगती है। मगर पानी? वह तो दो दशक पहले भी हफ्ते में दो दिन छोड़ कर आता था, आज भी वही तीन दिन आता है। उल्टे कम दाब और थोड़ी देर तक , सो अलग!
गौरतलब है कि हमारे तबक़े से आज तक कोई आलिम-फ़ाज़िल, अदीब-शायर या कि फनकार नहीं निकला है, और आगे भी क्या ही निकलेगा? कारण है कि इलमों-हुनर उन्हीं के हिस्से में आते हैं जिन पर दिली सुकून और बेमुद्दत फुर्सत नाज़िल होती है। जिन का पूरा वजूद ही पानी की गिरफ्त में हो वे भला उसे किसी पर कैसे कुर्बान कर सकते है! इस लिए कहता हूँ कि चौबीसों घंटे पानी की फ़िक्र में मुब्तला रहने वालों की जिंदगी भी कोई जिंदगी है? उनकी जिंदगी तो बस इन शब्दों में (निदा साहब से क्षमा प्रार्थना के साथ) बयां की जा सकती है:
सारे दिन तकलीफ के, क्या मंगल क्या वीर
न  भी  सोये  देर  तक,  प्यासा रहे गरीब    

Friday, March 23, 2012

ऊंचे दिमागों वालियाँ



क्या हुआ मिसेस सिंह, इतनी बुझी-बुझी सी क्यों लग रही हो? तबीयत तो ठीक है ना?
तबीयत को क्या होना है हमारी?
फिर क्या बात है?....तुम्हें मेरी कसम बताओ ना!!
क्या बताऊँ बहन, वही बाई का रोना! एक महारानी भेजी थी मिसेस वर्मा ने...मगर बात नहीं बनी!
क्यों? बहुत ज्यादा पगार मांग रही थी क्या?
ज्यादा? इसे ज्यादा हैं? मरी कह रही थी हजार झाड़ू पोछे के, हजार कपड़ों के, और दो हजार पानी भरने के!
झाड़ू पोछा तो ठीक, मगर पानी भरने के दो हजार! घोर कलियुग आ गया!...पूछा नहीं इतना मुंह काहे फाड़ रही है?
पूछा था....
फिर?
बोली- बाई सा गैस वाला टंकी चढाता है तो दस रुपये ऊपर से लेता है कि नहीं?... महीने में पंद्रह दिन तो हैं ही पानी आने के, हर दिन पाँच बाल्टी भी चढ़ाओ ...बताओ कित्ते हुए?
मैंने कहा- कुल जमा साढ़े सात सौ। ...और तुम मांग रही हो पूरे दो हजार!
फिर?
फिर क्या! मरी बोली- मगर पानी आता ही कितना है, और जब आता है तो कित्ता धीमे-धीमे, अक्खा दुनिया जानती है बाई सा! घड़ी-घड़ी देखते रहो कि बाल्टी अब भरी कि अब भरी....! इत्ता जादा टैम लगता है, इत्ती देर में तो दो घरों के बरतन निपटा के आ जाऊँ!  

Wednesday, March 7, 2012

ठिठोली होली की



  • तुम्हारे बाल तुम्हारी संपत्ति नहीं हैं, ये तुम्हारी संतति की संपत्ति हैं। तुम इन्हें अपनी लापरवाही से हरगिज़ नहीं उड़ा सकते, इन्हें नोचने का हक़ सिर्फ तुम्हारे बच्चों-बीवी को है।

  • दूधवाले भैया, बहुत देर कर दी! आज देर से सो कर उठे क्या?
नहीं! मैं तो टाइम से ही उठ गया था...
फिर?
   वो...भैंस जरा देर से उठी।

  • जलसे के बाद ऑडिटोरियम के प्रांगण में प्लास्टिक के गिलास यूं बिखरे पड़े थे   गोया कुदरत से ज़ोर-जबर्दस्ती करने के बाद बलात्कारियों ने घूरे पर कंडोम फेंक मारे हों।

  • तखल्लुस, यानि रमी के खेल का जोकर जिसे मक़्ते में जहां चाहे फिट कर दो मिसरों का वज़न खुद ब खुद बराबर हो जाता है।

  • मोबाइल का हंडसेट शिशुओं की टीथिंग के छुआरे  की तरह है, जिससे बच्चे युवक-युवती  और उम्रदराज़ अपनी खुजयाती उँगलियों की खुजली मिटाते देखे जा सकते हैं।  

  • ग्राहक जल्दी में था। साइनबोर्ड पर पासपोर्ट फोटो सिर्फ एक मिनट में लिखा देख कर दुकान में घुसा। बात सुनने के बाद काउंटर पर बैठे सज्जन ने बेहद नरम आवाज़ में कहा- सर, बस पाँच मिनट बैठें... आदमी जरा चौराहे तक गया है!!

  • आदमी को सदा सर उठा कर ही नहीं चलना चाहिए। गाहे-बगाहे निगाह नीची भी रखनी चाहिए... ताकि पता लग सके कि कहीं पेंट की जिप खुली तो नहीं रह गई!  

  • मार्च का महीना यानी सेमीनारों के नाम पर सालाना सरकारी ग्रांट को ठिकाने लगाने का आखिरी मौका...! 

Monday, February 13, 2012

सुर संध्या - एक आँखों देखी प्रस्तुति



हम सुर संध्या में शिरकत करने जा रहे थे। संध्या स्थल करीब था, संध्या की घड़ी भी करीब थी किन्तु सड़क पर मुर्दनी सी छाई हुई थी। दूर-दूर तक अपनी गाड़ी के अलावा कोई दूसरा वाहन दृष्टिगोचर नहीं हो रहा था। ड्राइवर को गाड़ी साइड में लगाने का बोल हमने कार्ड पर डली तारीख की जांच परख करना उचित समझा। देखा तो पाया कि  तारीख तो आज ही की थी। फिर साथियों से तसदीक की कि आज वही तारीख थी भी कि नहीं जो कार्ड पर डली थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम एक आध दिन आगे पीछे चल रहे हों। तय पाया कि सब कुछ ठीक था मगर पता नहीं क्यूँ लग रहा था कि कुछ भी ठीक नहीं है। ...ऑडिटोरियम के प्रवेश द्वार पर भी वीरानी पसरी थी। अलबत्ता पार्किंग स्थल पर दो चार लोग बारिश में भीगी चिड़ियाँ से जरूर गुमसुम खड़े थे। अंदर पहुंचे तो सभागार का भी यही हाल था। यहाँ-वहाँ इक्के दुक्के श्रोताओं की दूब को छोड़ दें तो हॉल एक गुडा निरा खेत सा नजर आ रहा था।
हमें बैठे बैठे अमूमन आधा पौना घंटा बीत चला था। श्रोताओं की कई नई कतारें उग आई थीं। अब मंच पर आ चुके कलाकारों ने अपने-अपने माइक को ठोक बजा कर देखना शुरू किया। वे कभी एक माइक में वॉल्यूम बढ़वाते, कभी दूसरे में घटवाते। कार्यक्रम के सूत्रधार बीच-बीच में स्टैंड पर आ खड़े होते और न जाने काहे का जायजा लेने लगते। कभी लगता मानो गिन रहे हों कि पुरुषों की तादाद एक सौ तेईस और स्त्रियॉं की नब्बे पहुंची कि नहीं! टार्गेट में कमी देख कर फिर पर्दे के पीछे गुम हो जाते। इसी बीच तबलची ने एक मिनी हथोड़े से किनारे-किनारे ठुक ठुक करके देखा कि तबले के मुंह से कैसी आवाजें आती हैं, फिर बीच में थपकी देकर देखा कि कहीं उसका पेट कुछ नरम गरम तो नहीं? पास वाले साज़िंदे ने दुल्हिन की तरह सजे-धजे मटके को घुमा घुमा कर खूब अच्छी तरह उसकी ऊंच नीच निकाली और पेंदी को ठीक से जमाया। साथ ही एक पत्थर से टनटना कर देखा कि कहीं ससुरा प्रस्तुति के दौरान दगा तो नहीं दे जाएगा? गिटारिस्ट ने एक ढिबरी से गिटार के पेच कसे और तारों की तनातनी टेस्ट की। उनके संगतबाज एक कलाकार ने घण्टियों की लड़ की हर घंटी को एक छोटे सरिये से पीटते हुए लड़ की मजबूती टेस्ट की। वे मदारी के झोले में से तरह तरह के औजार जैसे  पाना, पेंचकस, सीटी, झुनझुने, घंटी, ढपली, थाली-चम्मच, बच्चों के चूँ चूँ बोलते खिलोने  आदि बरामद करते, फिर उनसे विचित्र विचित्र किस्म की आवाजें निकालते और वापस झोले के सुपुर्द करते जाते। इसी बीच हमने गौर किया कि सूत्रधार एक बार फिर कोने में पोजीशन लेकर आ खड़े हैं और श्रोताओं की हरकतों पर निगा रखे हुए हैं। सीट लेने के बाद मुमकिन है अभी तक हर श्रोता ने कम से कम अट्ठारह लोगों से हाथ नहीं मिलाया था, चौबीस जंभाइयाँ नहीं ली थीं, बीस बार मोबाइल पर मिस काल चेक नहीं की थी, और ग्यारह बार मुड़ मुड़ कर नहीं देखा था कि हाल अभी कितना भरा, सो उन्होने संध्या को बढ़ा कर निशा की ओर ले जाना मुनासिब नहीं समझा।
संध्या में तब नया मोड आया जब कलाकारों को प्लास्टिक के ऐसे गिलासों में कोई अज्ञात पेय पेश किया गया जो डाबर जन्म घुट्टी की शीशी के ढक्कन से क्या ही बड़े रहे होंगे। पेय पदार्थ की खुराक, उसके परोसने के अंदाज़ तथा सेवन की विधि से उसके चाय, जलजीरा अथवा सोमरस होने के सभी अनुमान गलत सिद्ध हो रहे थे। यही वजह है कि मैंने इसे अज्ञात कहा। थोड़ी देर बाद मंचासीन कलाकारों को न जाने क्या सूझी कि वे एकाएक उठ कर सामूहिक रूप से अन्तः गमन कर गए, जैसे मरीज के परिजनों से पिट कर सरकारी अस्पताल के रेजीडेंट डॉक्टर त्वरित हड़ताल पर चले जाते है। जानकारों से खबर लगी कि आयोजकों के कम से कम तीन सौ डेसिबेल तक की तालियों की गड़गड़ाहट के झूठे वायदे से खफ़ा होकर वे सब कोप भवन में जा बैठे हैं। इससे पहले कि कलाकार मंच पर लौट कर अलाप छेड़ते, हमारे समेत कई अगुणी श्रोताओं ने हॉल छोड़ कर घर का रुख करने में ही भलाई समझी।      



    

Thursday, January 26, 2012

कबूतरगिरी



मकान में तीन बालकनियाँ- एक पूरब में और दो पश्चिम में, यानी तीन-तीन सूबों की खुली सीमाएँ, यानी तीन तरफ से घुसपैठ को दावत! दिक्कत की बात यह है कि पूर्वी सीमा पर निगरानी बढ़ाओ तो पश्चिमी सीमा पर हलचल शुरू हो जाती है। दुश्मन को द्रास सेक्टर से खदेड़ो तो कारगिल में सेंधमारी को तैयार रहो। चौबीसों घंटे चौकसी जरूरी है। जरा सी चूक हुई नहीं कि आतंकियों की माफ़िक यहाँ वहाँ अस्सलाह छुपा दिये जाते हैं, फिर आपकी सरदर्दी कि बरामद करते फिरो। एक बार वॉशिंग एरिया की चौकी छोड़ हम दूसरी तरफ गए तो बालकनी की रेलिंग पर एक कबूतर को चोंच में दबे तिनके से लैस पाया। तुरंत कांबिंग आपरेशन शुरू किया। देखा कि थोड़ों दूर पर एक ताज़ा अंडा रखा है, और पास ही सूखे डंठल, तिनके आदि बिखरे पड़े हैं। लो! यहाँ तो कब्जे की पूरी तैयारी हो चुकी थी।
पिछले दिनों दो एक रोज़ को शहर से बाहर जाना पड़ा। लौटे, तो क्या देखते हैं कि मनीप्लांट की ओट में मजबूत घोंसला बन चुका है जैसे बर्फ की आड़ में पाक रेंजरों ने कारगिल में पक्की बंकरें बना डालीं हों। घोंसले पर दो अदद अंडे, अंडों के ऊपर टस से मस नहीं होती एक कबूतरी। क्या करतेफिर तो बालकनी पर अपना हक़ ही छोड़ देना पड़ा। उतने इलाके को पीओके यानी पिजन आक्युपाइड क्षेत्र मानते हुए रसोईघर की दीवार को ही वास्तविक नियंत्रण रेखा स्वीकार कर लिया। ...कुछ दिनों में अंडों से गुलाबी पीले फर वाले बच्चे निकल आए। अब तो वक़्त बेवक्त जच्चा बच्चा के हालचाल लेने कबूतरों के झुंड के झुंड इधर चले आते। बालकनी के बाहर की तरफ जाल पर दिन भर कबूतरों का जमघट यूं लगा रहता ज्यूँ आपरेशन के लिए भर्ती मरीज के रिश्तेदारों का मजमा अस्पताल के लान या लॉबी मे लगा रहता है। वही दो का जाना, चार का चले आना...बिना सिलसिला टूटे।
पछुआ मुहाने की डक्ट में लगे सीवेज पाइप में से एक टूटा हुआ है। उसके  ऊपर तो समझिए बस कबूतरों के लिए सम्पूर्ण प्रसूति गृह ही खुला हुआ है। इधर एक प्रसूता की छुट्टी हुई नहीं कि दूसरी के एक जोड़ी अंडे बेड पर रखे मिलते हैं। कभी-कभी तो शक होता है कि कहीं किसी घाघ कबूतर ने अपनी बिल्डिंग का ये हिस्सा धोखे से नर्सिंग होम के रूप में किराए से तो नहीं चढ़ा रखा। खैर! जो भी हो, घर में बारहमासी सूतक का आलम रहता है। जचगी के बाद शुद्धि हवन की कोई गुंजाइश नहीं। दरवाजे खिड़की खोलो तो कुछ वैसे ही भभके उड़े आते हैं जैसे जाड़ों के मौसम में भैंसों के तवेले का फाटक खोलने पर आते हैं।
घर में  कोई ऐसी जगह नहीं जहां ये बाजाफ़्ता प्रसूति सम्पन्न नहीं कर लेते। दूध का छींका, जूतों की रैक, गमलों के बीच की जगह, दीवार के आले, हाथ धोने की चिलमची, कमरों के टांड़, पानी की टंकी के पीछे के कोने...। क्या है कि मुझ में खुले मुंह सोने का ऐब है। लेकिन छुट्टी वाले दिन मैं बालकनी में अखबार पढ़ते-पढ़ते नहीं ऊंघ सकता। .... क्या पता नींद खुलने पर मुंह में अंडा धरा मिले! कल ही की तो बात है। पत्नी की  छुट्टी थी। सुबह मजे में मैगजीन पढ़ते हुए नाश्ता किया। कुल्ला करने के बाद वापस आया तो देखा कि मैगजीन पर दो अंडे रखे हैं। हम दूर से ही चिल्लाये- अरे, देखो तो कबूतरों ने यहाँ भी अंडे दे दिये। पत्नी झल्लाते हुए बोली- कबूतर ने नहीं, मैंने रखे हैं। आज मकर संक्रांति है ना! तिल के लड्डू हैं, खा लो।  

Saturday, January 14, 2012

मंजूर



 दिवंगतों के दिसंबर बैच के जीवों के कर्म-लेखा की कापियाँ जांचने के बाद परीक्षा नियंत्रक चित्रगुप्त ने नतीजे घोषित कर दिये। परिणाम के आधार पर सौ में से नब्बे जीवों को गधा, उल्लू और बैल सरीखी योनियाँ आबंटित कर दी गईं। आबंटन की भनक लगते ही आक्रोशित आत्माओं ने योनि आबंटन केंद्र पर भारी हँगामा किया। ब्रह्मदेव को घेर कर अविलंब रिजल्ट बदलने की मांग की। धमकी के अंदाज़ में यह भी कहा कि रिव्यू का फैसला सिर्फ हमारे हक़ में ही सुनाया जाए। आंदोलन की खबर पाते ही शेषशायी विष्णु ने तुरंत  नारद जी को दौड़ाया। कहा- चित्रगुप्त से कहना, दुनिया हमे चलानी है कि आपको? आप मनुष्य नामक प्राणी को नहीं जानते ये हमारा आसन हिला कर रख देंगे! तत्काल संशोधित परिणाम निकालें।
आनन-फानन में लेखा के बंडल पुनर्मूल्यांकन के लिए एक अधिकारी के साथ दूसरे नगर रवाना कर दिये गए। जैसा जीवात्मायें चाहती थीं वैसा ही हुआ। सभी को, यहाँ तक कि शून्य पुण्य वालों को भी सर्वोत्तम योनि यानी मनुष्य योनि बाँट दी गयी।
हैरानी की बात यह है कि फिर भी प्रायः आधी आत्मायें असंतुष्ट ही रहीं। वे आबंटित योनि में जाने को कतई तैयार नहीं थीं। अपनी पूरी यूनियन के साथ योनि केंद्र पर पहुँच कर उन्होने फिर जम कर नारेबाजी की। अबकी बार ब्रह्माजी ने भी साफ हाथ खड़े कर दिये। बोले- तुम सभी को पहले ही श्रेष्ठतम योनि में रखा जा चुका है। इससे ऊपर देवयोनि प्रदान करना मेरी शक्तियों के अधीन नहीं है। आर्यावर्त के ऊँचे से ऊँचे घराने तुम्हारे लिए चिन्हित किए जा चुके हैं। एक से बढ़ कर एक वैज्ञानिक, प्रोफ़ेसर, उद्योगपति, इंजीनियर, और डाक्टर आदि पालकों की गोद तैयार हैं। बस तुम्हारे स्वीकारने भर की देर है।
क्षमा करें महाराज! हम जीने से पहले ही मरना नहीं चाहते! अगर आप हमारा लिंग बदल कर पुरुष कर पाने में समर्थ न हों तो हमे रिव्यू से पहले का रिज़ल्ट ही मंजूर है। कृपया हमें गधा, उल्लू, अथवा बैल योनि में ही पड़ा रहने दें!!