आनन-फानन में लेखा के बंडल पुनर्मूल्यांकन के लिए एक अधिकारी के साथ दूसरे नगर रवाना कर दिये गए। जैसा जीवात्मायें चाहती थीं वैसा ही हुआ। सभी को, यहाँ तक कि शून्य पुण्य वालों को भी सर्वोत्तम योनि यानी मनुष्य योनि बाँट दी गयी।
हैरानी की बात यह है कि फिर भी प्रायः आधी आत्मायें असंतुष्ट ही रहीं। वे आबंटित योनि में जाने को कतई तैयार नहीं थीं। अपनी पूरी यूनियन के साथ योनि केंद्र पर पहुँच कर उन्होने फिर जम कर नारेबाजी की। अबकी बार ब्रह्माजी ने भी साफ हाथ खड़े कर दिये। बोले- तुम सभी को पहले ही श्रेष्ठतम योनि में रखा जा चुका है। इससे ऊपर देवयोनि प्रदान करना मेरी शक्तियों के अधीन नहीं है। आर्यावर्त के ऊँचे से ऊँचे घराने तुम्हारे लिए चिन्हित किए जा चुके हैं। एक से बढ़ कर एक वैज्ञानिक, प्रोफ़ेसर, उद्योगपति, इंजीनियर, और डाक्टर आदि पालकों की गोद तैयार हैं। बस तुम्हारे स्वीकारने भर की देर है।
क्षमा करें महाराज! हम जीने से पहले ही मरना नहीं चाहते! अगर आप हमारा लिंग बदल कर पुरुष कर पाने में समर्थ न हों तो हमे रिव्यू से पहले का रिज़ल्ट ही मंजूर है। कृपया हमें गधा, उल्लू, अथवा बैल योनि में ही पड़ा रहने दें!!
त्यागी सर!!
ReplyDeleteएक बार फिर मुग्ध हूँ और आपके चरण स्पर्श की अनुमति चाहता हूँ!! अगर कभी श्वान योनी प्रदान की गयी (वैसे तो चित्रगुप्त अपने सगे हैं, लेकिन देखें भाई-भतीजावाद के आधार पर क्या फेवर दे पाते हैं)तो आपके द्वारे पट्टायमान होकर जीवन व्यतीत करना चाहूँगा!!
रसखान की भांति पाहन हों तो आपके बगीचे का ही होना चाहूँगा!!
प्रणाम!!
Sir, kya kalpna ki hai...iss hi kalpana ki darkaar ki thi lohri maango kaaryakram mein, aapne to behla ke chhod diya!! par ab santushti mil gai...:)
ReplyDeleteइन पंक्तियों से बड़ी मारक पंक्तियाँ क्या होंगी:
ReplyDeleteहम जीने से पहले ही मरना नहीं चाहते! अगर आप हमारा लिंग बदल कर पुरुष कर पाने में समर्थ न हों तो हमे रिव्यू से पहले का रिज़ल्ट ही मंजूर है।
अंकल जी आपने एक साथ दो-दो जगह वार किए हैं। एक तो हमारी "मूल्यांकन" पद्धति पर और दूसरी "मनुष्यों की मानसिकता" पर..
आपकी कल्पना, आपकी इमेजिनेशन को सलाम!
बहुत गंभीर सोच है, लिखते रहिये आपकी कलम में दिलों को छूने की ललक साफ़ दिखाई देती है.
ReplyDeleteशिव!...शिव!...शिव! क्यों दोज़ख में भेजते हो सलिल भाई!! आपकी दाद के आगे मेरी कलम काँपने लगती है... कि आगे भी वैसा ही लिख पाएगी या नहीं!
ReplyDeleteसिद्धि जी संतुष्ट भई, हमारा सौभाग्य...
आप पारखी हैं दीपक जी, आपके शब्दों से बड़ी ताकत मिलती है!
पुरुषोत्तम जी आपका स्वागत और आभार!
मनुष्य योनि प्राप्त करने हेतु कई जीवात्मा पुन मूल्याकन एवं सूचना के अधिकार जेसे तप जप का सहारा लेने की नाकाम कोशिश करने की कुचेस्टा कर रहे है ! परंतु यहा पर इनके प्रारब्ध इनके आड़े आ रहे है ! इसलिए हे दुखी आत्माओ! पुन: शिक्षको की शरण मे जाओ, पुन: एक वर्ष पठन, चिंतन एवं मनन करो तभी तुम लोगो का उद्धार होगा एवं तुम लोगो को यथोचित डिग्री रूपी प्रसाद मिलेगा !
ReplyDeleteसत्य वचन प्रभु...!!
ReplyDeleteGehri aur uttam post. !
ReplyDeleteहैरानी की बात यह है कि फिर भी प्रायः आधी आत्मायें असंतुष्ट ही रहीं। वे आबंटित योनि में जाने को कतई तैयार नहीं थीं। waah bahut achcha aisa hi hota hai jisko jo milta hai usse vo santust nhi hota gazab ki pkd hai lekhni pr aapki sir .thanks.
ReplyDeleteओह जबरदस्त व्यंग्य।
ReplyDeleteसार्थक, प्रस्तुति, सादर.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें.
आपकी कलम तो बड़ी मारक हो चली है इन दिनों..!
ReplyDeleteगज़ब!!
bahi man gaye ....teekha vyang ....sadar badhai.
ReplyDelete