रहन के जिस निज़ाम को हम छोड़ आए हैं वहाँ या तो नीचे जमीन आपकी होती थी या ऊपर आसमान आपका। शुद्ध द्वंद्व था। लोग तलचर थे अथवा छतचर। अब ठिकाना छोड़ ही दिया तो वो राज़ बताएं जिसे आज तलक हमने सीने में छुपाये रखा। मालूम है अरसा पहले हमारे नीचे वाले फ्लेट में कौन रहा करते थे? जी हाँ! खुद निदा फ़ाजली साहब, मुंबई शिफ्ट होने से ठीक पहले तक। और इसी दौरान उन्होने अपनी मशहूर गज़ल का ये मतला लिखा था:
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता
खैर! वे तो आलीशान बंगले में बसने मुंबई चले गए मगर हम उसी दुमंजले पर रह गए। हाल ही में हम शिफ्ट हुए तो वो भी मल्टी में, जो आधी-अधूरी ही नहीं बल्कि अधर की दुनिया है। ऐसी बस्ती जहां भूखंडों का पट्टा धौंसपट्टी से गाडियाँ अपने नाम लिखवा लेती हैं, जबकि छतों पर पानी की बड़ी-बड़ी टंकियाँ कब्ज़ा जमा कर बैठ जाती हैं। बेचारा आदमी दोनों लोकों से बेदखल हो कर दरमियानी जगह अर्थात अधर मण्डल में बसने को मजबूर हो जाता है।
मल्टियों का अपना अलग मिजाज़ है, यहाँ के तजुर्बे भी अलग हैं। मसलन अपनी मल्टी को ही लें, जहां का एक खास चलन है। मल्टी में जब मुर्गा बांग दे तभी सवेरा होता है। खुदाया अगर किसी रोज़ मुर्गा बांग नहीं दे तो देहरियों पर पेपर ही न फडफड़ायें, दूध के लिए दरवाजों पर टंगे थैले-थैलियों के पेट न भरें, कामवाली बाइयाँ दरों पर दस्तक न दें, प्रातः भ्रमणक सैर पर बाहर न निकल पाएँ। बांग देने के लिए अलग से किसी मुर्गे को दिहाड़ी पर नहीं रखा जाता। चुनांचे हर घर से बारी-बारी किसी को मुर्गे का पार्ट अदा करना होता है। इस माह हम मुर्गा बने थे। मगर एक मर्तबा वक़्त पर बांग नहीं दे पाये क्योंकि चैनल की चाबी गई रात गाड़ी में ही छोड़ आए थे। सैर की मंशा से तड़के-तड़क उठकर बामुश्किल घंटा-पौन घंटा ज़ब्त किया। छह बजे जब लगा पड़ौसी उठ गए होंगे तो डरते-डरते घंटी बजाई। चाबी मांग कर कुकड़ू-कू बोल पाये।
अपनी मल्टी के हर घर में एक ‘सर्कस पॉइंट’ है। इस जगह बैठ कर आप मौत के कुएं का मज़ा ले सकते हैं। जब-जब बेसमेंट में कोई टू-व्हीलर स्टार्ट कर रहा होता है तो सर्कस में मौत कुएं के अंदर करतब दिखा रहे कलाकार द्वारा मोटर साइकिल की सवारी का साफ-साफ मंजर कानों में खिंच जाता है।....कुछ दिन हुए टॉप फ्लोर पर एक खाली पड़ा फ्लैट आबाद हुआ। ए सी, इंवर्टर आदि की फिटिंग करानी पड़ी। निचली मंज़िल वालों का हाल ऐसा था जैसे हीरा-मोती की जोड़ी में जब हीरा को गिरा कर नाल ठोकी जा रही हो तो माँद पर डबडबाई आँखों खड़ा मोती अपने खुर सहला रहा हो। यहाँ हम खिड़की खोलें तो उनके कमरे में जा खुलती है, जबकि वे दरवाजा बंद करते हैं तो हमारे मुंह पर आ भिड़ता है। चर्चा है कि आजकल दस नंबर की बर्तन वाली बाई चौदह नंबर की बाई साहब से खफा है जो अपनी बालकनी में खड़ी-खड़ी उसके काम में नुक्स निकालती रहती है।
यहाँ किस्म-किस्म के हादसे होते रहते हैं। एक दिन का वाकया है। पत्नी अचानक खाना खाते-खाते दूसरे कमरे में फोन सुनने दौड़ी, जिसकी घंटी निचले फ्लैट में बजी थी। साँझ ढले अक्सर ऐसा हुआ कि फ़र्स्ट फ्लोर पर धूप बाती हुई तो सेकंड फ्लोर वाली मैडम ने ज़ोर से शंख फूँक दिया, और थर्ड फ्लोर वालों पर फोकट भक्ति का सरूर चढ़ गया। ... एक दिन तो हद ही हो गयी। ऊपर तेरह नंबर वालों के मेहमान रुखसत हुए तो आठ नंबर वाले जो खुद घर आए मेहमानों से दो पल चुरा कर दूसरे कमरे में स्कोर देखने आए थे, अकबका कर उन्हें ‘सी ऑफ’ करने सीढ़ियाँ उतर गए।
सॉरी.... अभी बंद करता हूँ। बहुत तेज बास आ रही है... लगता है किसी के घर दूध जला है!
Sir, multi ke itne kisse na hote to aapke blog mein use sthan kaise milta!! Shukriya, naye saal k pehle din aapne hansne ka yeh badhiya avsar diya...:)
ReplyDeleteत्यागी सर!
ReplyDeleteनए साल पर जले दूध की जो खुशबू आपने बिखेरी है हम उसका आनंद इस बरसात भरी सर्दियों में ले रहे हैं... हमारा धर्म तो कब का भ्रष्ट हो चुका है, ४१९ नंबर वालों के मुर्गे और मछली की गंध से.. अब नर्क में जाने के पहले क्या सफाई दे पाउँगा चित्रगुप्त को!!
अंत में यही प्रार्थना कि परमात्मा सुवासित रखे आपका जीवन और आशीष बना रहे आपका हमारे सिर पर!!
गजब का खाका खींचा है मल्टी वालों का... स्टीरियोटाइप लिविंग का मजा ही अलग है त्यागी जी... परिवार फ्लोर और नंबर से पहचाने जाते हैं... बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर ... नववर्ष की मंगल कामनाएँ
ReplyDeleteआज तो सुबह-सुबह हँसी का खजाना खोल दिया। मेरी बिटिया पूना में है तो मैं भी वही चित्र मन में खेंच रही थी। बहुत ही सशक्त रचना है आपको बधाई। "ऐसी बस्ती जहां भूखंडों का पट्टा धौंसपट्टी से गाडियाँ अपने नाम लिखवा लेती हैं, जबकि छतों पर पानी की बड़ी-बड़ी टंकियाँ कब्ज़ा जमा कर बैठ जाती हैं।" इन लाइनों ने तो परमानन्द करा दिया।
ReplyDeleteआख़िरकार सर आप को बिवाई फटने का अहसास हो ही गया!
ReplyDeleteसलिल भाई, आपका संबल यूं ही मिलता रहे, पूरे वर्ष...!
ReplyDeleteअजीत गुप्ता जी, आपका आनंद हमारा नसीब!
पद्म सिंह जी, सिद्धि जी, आचार्य जी... आपका आभार!
सभी को नव वर्ष की शुभकामनायें!!
Unfortunately we were labeled as the trouble makers at our last apartment even though We played songs at a low (by our standards) volume! Anyway, all the multi residents have to read this! :)
ReplyDeleteAnd I forgot to write that this is one of the most hilarious posts ever! :D
ReplyDeleteमल्टी की ज़िंदगी आपके व्यंग्य की धार से बच नहीं सकती.. एक ऐसा सच आपने दिखाया है कि कभी-कभी तो माचिस की डिबिया में रहने का भी स्मरण हो आता है.. अपनी दीवार में कील ठोंकें तो पड़ोस से इजाज़त लेनी पडती है!!
ReplyDeleteऔर निदा साहब का वाकया इतने दिनों छिपाए रखने का कोई खास कारण??
Manu, kyon naa is post se inspire ho ke ek Rock show rakha jaaye ghar pe !!
ReplyDeleteMasterji : Aap toh buri tarah Multi-peedit lag rahe ho :P
मजा तो बहुत आया परन्तु आपके मुलती की तस्वीर भी होती तो एम्प्पेथी आसान हो जाती. नव वर्ष की शुभ कामनाएं. हाल मुकाम: चेन्नई.
ReplyDeletehahahaa.. indore k shaant university k ird gird wale vaatavaran mein ye haal hain to aisi hi multi mumbai mein kya kya drame karvayegi :)
ReplyDeletebehtareen vyangya.. ant padh kar aur bhi maza aa gya!
@Hanu : Mumbai mein toh do multi door se murga baang deta hoga !! :P
ReplyDeletemakaan ko machaan mein parivartit kar diya saal ke pehle hi din tyaagi sir...bhai wah! sabhi khoslon ke ghoslon mein rehne waalon ko nav varsh pe isse achha uphaar kya mil sakta hai :P
ReplyDeleteबिलकुल बजा फरमाया आपने, पीयूष जी! वाकई मचान सरीखी हैं मनुष्य की ये रचनाएँ!!
ReplyDeletebahut hi sahi chitran kiya hai multi me rhne ke anubhav ko sir thanks n happy new year.
ReplyDeleteनाम करना हो तो ऐसा काम कर
ReplyDeleteएक ऊँचे बांस पर तू चढ़ उतर
डरें वो जिनकी जड़ें हों बरगदी
अधर में लटके हुए को क्या फिकर?
वाह पाण्डेयजी, वाह! अब अपन ने फिकर नॉट की गोली खा ली...
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