Tuesday, December 13, 2011

टूटे फूटे बगैर सड़क पार पहुँचने के पेटेंट उपाय



पापी पेट का सदर मुकाम इधर हो किन्तु दाना-पानी का बंदोबस्त उधर तो सड़क पार करना एक मजबूरी है। जी हाँ सड़क...जिस पर हहराता ट्रैफिक पीक आवर्स में दो धार वाली वह बरसाती नदी बन जाता है जिसमें दोनों सिरों से हजारों क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया हो। तब इसके विकराल फाट पर आरूढ़ हो कर उस पार उतरने की कोशिश किसी बिगड़ैल घोड़े को साधने जैसी होती है। तारीख गवाह है कि इस बद-दिमाग घोड़े से टपक कर न जाने कितने प्रोफेसर देश का भविष्य बनाने के बदले हड्डियाँ तुड़वा कर हस्पतालों में अपने वर्तमान की मरम्मत करवाने में लग गए। उनकी बिगड़ी सुधारना मैंने अपना धर्म माना और सिंगल पीस सड़क-रूपी भवसागर के पार जाने की समस्या से उन्हें निजात देने की ठान ली।
इस मसायल को हल करने में पहला ख्याल यह आया कि चलो कैंपस के पीछे से एक बायपास निकलवा देते हैं। सेज वगैरह तो हालिया बात है, दुष्यंत जी तो अरसा पहले कह कर चले गए:
           उफ़ नहीं की, उजड़ गए
           लोग  कितने  गरीब हैं
लोगों से उनका मतलब किसानों से था। अर्थात अध्यापकों के क्वार्टरों के पीछे अगर किसानों के खेत रहे होते तो उन्हें बेदखल कर बायपास निकलवाने में कोई दिक्कत नहीं थी। बदकिस्मती से वहाँ कालोनी बसी है। कॉलोनी भी एकदम पॉश, जिसमे रहने वालों का मैं कुछ उखाड़ पाऊँ यह मेरी औकात नहीं। अब ले दे के दो रास्ते बचते हैं। एक ऊपरी यानी वायुमंडलीय मार्ग और दूसरा अंदरूनी माने भूगर्भीय मार्ग। प्रोफेसरों की पकी उम्र का ध्यान आते ही ओवरब्रिज तो आइडिया में बनते-बनते ही ढह गया। क्योंकि मौत के फरिश्ते जब पिक अप करने को खुद सड़क पर उतरने को तैयार हों तो ओवरब्रिज के रास्ते चढ़ कर उन तक जान देने जाने की मूर्खता भला कोई पढ़ा लिखा क्यूँ करेगा? रही अंडरपास बनाने की बात। सो खबर हो कि यूनिवर्सिटी में जो पढ़ते हैं वे हैं जवां दिल लड़के और लड़कियां। अब इश्क़-मोहब्बत का पर्चा सिलेबस में तो होता नहीं क्योंकि इंशा जी की यही मंशा थी। वे अक्सर कहा करते थे:
     खेलने  दो  इन्हें  इश्क़  की  बाज़ी,  खेलेंगे तो  सीखेंगे
     अब कैस की या फरहाद की खातिर खोलें क्या स्कूल मियां
मगर तय है कि उनके द्वारा भड़काए हुए प्रेमी युगल इश्क़ का खेल कक्षाओं के बाहर तो कहीं न कहीं जरूर खेलेंगे। अभी तक जो बिसात वे पार्क के झुटपुटे में, पार्किंग शेड के तले, लाइब्रेरी में अलमारियों की आड़ में चोरी-छिपे बिछाते रहें हैं, मुझे डर है कि उसे दिन-दहाड़े अंडरपास में बिछा कर न बैठने लगें। यदि ऐसा हुआ तो वो मकसद जिसके लिए अंडरपास बना था उसे फेल होने से कोई नहीं रोक पाएगा।
तीन-तीन विकल्पों का एक के बाद एक यूं मिसकेरिज हो जाने के बाद प्रभु को गुहारने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था। मगर वे तो भरे बैठे थे, प्रकट होते ही दहाड़े- ये बता, फ़र्लांग-फ़र्लांग चौड़ी सड़कें मैंने बनाई क्या? और गाड़ियों की रेलमपेल क्या मेरी वर्कशॉप से निकली है? एक तो बाप को धकिया कर खुद मालिक बन बैठा, ऊपर से उसी से मदद मांगता है! फिर दो टूक लहजे में बोले- देख, कुदरती आफतों से निपटने के लिए जरूरी ताकत और अक्ल मैं पहले ही तुझे दे चुका हूँ। तेरे खुद के खड़े किए बखेड़ों का मैंने ठेका थोड़े ही लिया है! तू तो खुदमुख्तार है, संप्रभु है, अपने टंटे खुद सुलट। इतना कह कर वे अंतर्ध्यान हो गए।
परमपिता से यूं लतिया दिये जाने के बाद मैं परम चाचाओं यानी वैज्ञानिकों की शरण में पहुंचा। चाचाओं ने झटपट इसी थीम पर राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस का अधिवेशन तलब कर लिया। इस महाकुंभ की सदारत करते हुए प्रधानमंत्री जी ने उनसे धारा से कटे, सड़क के छोर पर डरे-सहमे खड़े आदमी के हितों की रक्षा का आह्वान किया। वे फौरन दर्जनों समूहों में बंट कर शोध-पत्र पढ़ने में भिड़ गए। समापन की रस्म के साथ कई उपाय राष्ट्र को समर्पित कर दिये  गए।
कृषि वैज्ञानिकों ने देश में भैंस अनुसंधान केंद्र खोलने को इस समस्या का हल बताया। मुझ जैसों को हक्का-बक्का देख उन्होने साधारण आदमी की जुबान मे समझाया। बड़ी-बड़ी नदियों के उस पार पहुँचने के लिए दोनों तटों पर किश्तियाँ लंगर डाले रहती हैं कि नहीं? ऐसे ही सड़क के दोनों किनारों पर आठ-दस भैंसों का झुंड लंगर डाले रहे। जब किसी प्रोफेसर को सड़क पार जाना हो तो वह लंगर उठाए यानी खूँटों से रस्सियाँ खोले और झुंड को दूसरी तरफ हांक दे। फिर सावधानी से झुंड के बीचों-बीच कवर लेकर दोनों ओर के ट्रैफिक की छाती पर मूंग दलता हुए परली पार पहुँच जाए। बस, समस्या हल। कोई समस्या अगर बचती है तो वह है पर्याप्त संख्या में भैंसों की आपूर्ति की। इस पर निरंतर शोध की जरूरत है।
शीर्ष रक्षा वैज्ञानिकों के विचार में इस सिलसिले में रक्षा चश्में विकसित किए जाने चाहिए। ये आधुनिक थ्री डी चश्में पहनने पर आपकी निगाहें यदि दायीं ओर से आ रहे ट्रैफिक पर मुसलसल जमीं हों तो भी आप रोंग साइड से घुस रहे टू/थ्री/फोर व्हीलर को देख कर ठुकने से बच सकते हैं।... एयरपोर्ट पर प्रवेश द्वार के करीबी घेरे में कदम रखते ही काँच के गेट खुद ब खुद खुल जाते हैं। ठीक इसी तकनीक के इस्तेमाल से सड़क पार कर रहे पैदल यात्री के पैर सड़क पर पड़ते ही तत्काल दोनों ओर ट्रैफिक के चक्के थम जाएंगे और यात्री के उस पार पहुँचते ही स्वतः ही पूर्व स्थिति में लौट आएंगे। यांत्रिकों का दावा था कि वे बस इस तकनीक को सिद्ध करने के मुहाने पर ही खड़े हैं। अर्थशास्त्रियों की जमात ने एकमत से इस चुनौती को इकोनोमी के लिए छुपा हुआ वरदान बताया। देश भर में फैले सड़कों के विशाल जाल को देखते हुए उनके निम्न उपाय से न केवल खाली खजानें ओवर फ्लो करने लगेंगे बल्कि नौकरियाँ भी इतनी पैदा होंगी कि लोग कम पड़ने लगें। उनकी विद्वतापूर्ण राय थी कि पूरे भारत में खुदरा हैलमेट काउंटरों की श्रंखला खड़ा करना ही इस समस्या का असल तोड़ है। पैदल यात्री सड़क के इस पार बने काउंटर से रेंट का भुगतान कर हैलमेट इशू कराएँ और सुरक्षित उधर पहुँचने के बाद उस पार के काउंटर पर जमा करा दें
स्पोर्ट्स साइंटिस्टों ने सड़क पार करने वालों की वीडियो क्लिपिंग का बार-बार चला कर घंटों विश्लेषण किया। उन्होंने गौर किया कि इस दौरान सम्पन्न की जाने वाली तमाम क्रियाएँ इसे कबड्डी के खेल के बेहद करीब लाती हैं। वही- दूसरे के पाले में जाने से पहले गहरी सांस लेना, कबड्डी कबड्डी कबड्डी के बदले राम राम राम की लड़ न टूटने देना। कभी-कभी घबरा कर अधबीच से ही कदम वापस खींच कर अपने पाले में सुरक्षित लौट आना। एक हाथ आगे बढ़ाए हुए दौड़ती गाड़ियों के बीच घुसना...कभी चार कदम आगे बढ़ना तो कभी दो पीछे हटना। यहाँ तक कि खेल के मूल नियम भी वही हैं। छू लिए गए तो खेल से आउट, आगे पीछे दोनों सिम्त घिर कर दबोच लिए गए तो जिंदगी से भी परमानेंटली आउट। फर्क बस इतना कि यहाँ बिना छुए पार पहुंचे तो जीते। उनका कहना था कि कबड्डी के राष्ट्रीय कोच को बुला कर कैंपस में कैंप लगा कर प्रोफेसरों को प्रशिक्षण दिलवाया जाए तो काफी हद तक समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
इन उपायों पर अमल शुरू करने भर की देर है। बासलामती सड़क पार करने की समस्या अब बस हल हुई समझो!!            








20 comments:

  1. Kabaddi Kabaddi is the best option. Isi bahane kuch kabaddi team bhi tayyar ho jayengi :P

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  2. अभी तक का सब से उम्दा लेख! मज़ा ही आ गया :) जान कर खुशी हई कि ऐसे शिक्षक भी हैं जो विद्यार्थियो के आत्मीय पलों का भी खयाल रखते हैं!
    अमल होने के दौरान और बाद कि गुथ्थम गुथ्थी के लिए उत्तरकथा का इन्तजार रहेगा..

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  3. पेदेस्त्रियन्न (पैदल यात्रिओ) क लिए ट्राफ्फिक सिग्नल बनाये जाने और उसके फेल होने के बाद वो दिन दूर नहीं जब सरकार उन्हें रेलवे फाटक जैसे सड़क पारक फाटक मुहैया कराने की योजना पर हरी झंडी दिखा दे. ऐसे गंभीर विषय पे उम्दा उयंग करने पर धन्यवाद् और बधाई.

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  4. भई वाह वाह वाह.

    शब्द नहीं मिल रहे हैं सर. काश मैं उस सड़क के बीच अपनी तारीफों के पुल बाँध के आपकी इस भीषण समस्या का समाधान कर पाता

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  5. मुद्दतों बाद दिखे, पीयूषजी...अपने नाम का ठप्पा लगा कर तो पत्थर भी फेंकोगे तो पुल बन जाएगा, फिर आप के तो तारीफ के अलफ़ाज़ ठहरे!
    समाधान पक्का समझो...!

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  6. त्यागी सर!
    बस आपकी पोस्ट पढ़ता हूँ और सीखता हूँ.. यह एक विधा जो कभी सीख नहीं पाया और बिना सीखे हाथ आजमाने में तुडवाने का डर बना रहता है.. लिहाजा पढकर संतोष करना पड़ता है..
    इस सड़क पार्क व्यताहा के विषय में कुछ दिन पहले फेसबुक पर पढ़ा था कि यहाँ तो एक दिशा मार्ग अर्थात वन वे ट्रैफिक वाले रास्ते को भी दोनों ओर देखकर पार करना पड़ता है!!
    और यह कबड्डी का वर्ल्ड कप बेमिसाल है..
    पुनश्च:
    संजय @ मो सं कौन की कई टिप्पणियाँ आपके स्पैम कमेंट्स में विराजमान है.. उन्होंने मुझसे कहा था कि आपको बता दूं ताकि आप उनका उद्धार कर सकें!!

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  7. सड़क पार करवाने वाले लाल बत्तियो की विफलता क बाद वो दिन दूर नहीं जब सड़क पार करने के लिए रेलवे फाटक जैसे फाटक खड़े कर दिए जायेगे !

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  8. अरे हाँ, सलिल भाई, अच्छी कमाई कराई आपने! कई गिरफ्तार टिप्पणियाँ छुड़वा लीं हमने। हमे मालूम ही नहीं था ...आज ही इस गोरखधंधे का पता चला। आपका आभार, हौसला आफजाई का भी शुक्रिया! साथ ही संजय भाई का भी धन्यवाद...हम तो सोच रहे थे शायद व्यस्तता के चलते वे कमेन्ट नहीं कर पा रहे। उनकी पोस्ट आए भी बहुत दिन हो गए...

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  9. भेँसो द्वारा मल विसर्जन करने से जो गोबर एकत्रित होगा वह प्रक्रतिक स्पीड ब्रेकर का कार्य करेगा साथ ही गोबर को एकत्र कर इस से उर्जा उत्पादन कर के धन लाभ भी लिया जा सकता है ! हा इस का एक नुकसान यह है कि शिक्षको को १ जोड़ी वस्त्र भी अपने साथ रखने होगे !

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  10. मनु, तेरी दो-दो टिप्पणियाँ... बहुत बड़ी बात है!! पर दोनों स्पैम में थी...आज ही आजाद कराई। धन्यवाद!

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  11. बजा फरमा रहे हैं हुजूरे आली उर्फ संदेश जी!!

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  12. आप तो जमीन पार-पथ ही बनवा दो। युवक-युवतियों के लिए भी स्‍थान हो जाएगा और आप जैसे लोग पार भी उतर जाएंगे। वैसे भैंसों वाला आइडिया भी शानदार है। गधे भी चल सकते हैं।

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  13. आहिस्ता बोलिए त्यागी सर!! कमाई का नाम सुनकर कहीं माई सीबीआई को पीछे न लगा दें!!

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  14. हमें भी ऐसी ही एक सड़क दिन में दो बार पार करनी होती है, और इसी वजह से दिन में दो बार खुद के ’सर्गेई बुबका’ न होने के कारण खुद को लताड़ते हैं।
    एक आईडिया हमने भी सोचा था कि किसी किले से छोटी मोटी तोपें उड़ाकर सड़क के दोनों तरफ़ स्थापित कर दी जायें और वाजिब शुल्क देकर इच्छुक सड़कपारकों को बजरिये इन लांचिग पैड्स प्रक्षेपित किया जाये।
    आपका भैंसिया-प्लान दिल छू गया, कंपरेटिव स्टडी करके देखते हैं।

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  15. Wah Wah, Sir!! What a sol. Will follow it while crossing the road @ the back gate of SOE...Mission I.M.POSSIBLE!!

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  16. सही कह रहे है, संजय भाई... आपकी योजना का एक और लाभ यह है कि बोफोर्स जैसे किसी कांड को भी अंजाम दिया जा सकता है!!

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  17. सर आप को ई मेल करने पर बाउन्स क्यो हो रहा है? क्या ई मेल पता बदल चुका है?

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  18. Good one! there is an option of signalized/unsignalized pedestrian crossing also.

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  19. पता वही है आचार्य जी ...किसी बिचौलिये की शरारत है!बिना दिमाग लगाए फिर कोशिश करें, शायद बात बन जाए।

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  20. एक हाथ आगे बढ़ाए हुए दौड़ती गाड़ियों के बीच घुसना...कभी चार कदम आगे बढ़ना तो कभी दो पीछे हटना। यहाँ तक कि खेल के मूल नियम भी वही हैं। छू लिए गए तो खेल से आउट, आगे पीछे दोनों सिम्त घिर कर दबोच लिए गए तो जिंदगी से भी परमानेंटली आउट।sahi bat sir.

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