(पिछले दिनों एक रोज़ ब्लॉग पर पहुंचे तो वह अपनी जगह से गायब मिला। वहाँ छोड़े गए एक पुर्जे से पता लगा कि ‘त्यागी उवाच’ को बलात अगवा कर लिया गया है। ढूँढने के लिए बहुत हाथ पैर मारे, मगर सब नाकाम। हार कर अपहर्ता से वार्ता करने का जिम्मा अपने बेटे को सौंपा। वार्ता के दो-तीन दौर के बाद ही ब्लॉग छुड़ाया जा सका। बार–बार पूछने पर भी उसने यह नहीं बताया कि फिरौती में गूगल ने उससे क्या वसूला है।
खैर, अगले हादसे के डर से पोस्टों को कॉपी-पेस्ट कर बैकअप फ़ाइल बनाई। किताब छापने की मंशा से वे लेख भी टाइप कर रख लिए जो ब्लॉग पर नहीं पड़े थे मगर अन्य पत्र-पत्रिकाओं में छपे थे। ब्लॉगर बंधुओं से मेहनत वसूल (टिप्पणी के जरिये) के लिए उनमे से एक ब्लॉग पर लगा रहा हूँ जो हास्य-व्यंग्य की पत्रिका “लफ्ज” मे छपा था ....)
अथ श्रीमदजलगीता
एक: नल क्षेत्रे-जल क्षेत्रे
जलक्षेत्रे नलक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः
बालका नर नारीश्चैव किमकुर्वत संजय।
(अर्थात, हे संजय, जल क्षेत्र यानि नल के मुहाने पर जल-युद्ध के लिए तत्पर बालकों, नर और नारियों ने क्या किया?)
दो: न्यूनतम साझा कार्यक्रम
*सीमा सुरक्षा बल की तर्ज़ पर जल सुरक्षा बल /नल सुरक्षा बल का गठन
*स्विस बैंकों में जमा जल राशियों का पता लगा कर देश में वापस लाना
*जमीन के अन्दर से जमीन के अन्दर दुश्मन की पेय जल पाइप लाइन पर अचूक वार करने वाले मध्यम दूरी के जल प्रक्षेपास्त्र का परीक्षण करना
*शासकीय कर्मचारियों को अपने घरों के लिए पानी भरने हेतु स्ट्रेटेजिक टाइम आउट की मंजूरी
*गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के लिए सस्ती दरों पर (एक रूपया प्रति ड्रम ) पानी मुहैय्या कराना
तीन: अदा-ए-नल
वो तेरा इस लहज़ा आना ...
कि एक लम्हे की झलक, फ़िर दूर कहीं खो जाना,
मुद्दतों तडपना।
जाने जानां...
वो तेरा इस लहज़ा आना।
चार: जल मेनिफेस्टो
सदियों से समाज दो वर्गों में बंटा है। एक तरफ मुट्ठी भर जलवान कुलीन तो दूसरी तरफ असंख्य जलहीन दीन। एक आकंठ सिंचित तो दूसरा ठेठ वंचित। दोनों में जल संघर्ष अटल है। वंचितों, एक जुट हो! जल पर कल जन-जन का हक़ होगा।
पाँच: पानी के प्रकार
पानी के तीन भेद हैं। पहली प्रकार का पानी वह है जो स्वयं नलों में आ जाता है। दूसरी प्रकार का पानी मोटर आदि से जबरन खींच कर नलों में लाया जाता है। और तीसरी प्रकार का पानी वह है.....जो टैंकर-युद्ध में अपने घोर पराक्रम से प्रतिद्वंद्वियों को परास्त कर प्राप्त किया जाता है.
छह: जहर
अरे! अरे! क्या कर रहे हो? नीट पीओगे तो लीवर का सत्यानाश हो जाएगा। पानी में कुछ मिला क्यों नहीं लेते? सोडा, व्हिस्की, पेप्सी.... कुछ भी।
सात: ये जो एक शहर था
इस नगरी में अब कोई नहीं रहता - न कोई मानुस, न चौपाया और न ही परिंदा। सड़कें तो हैं मगर वीरान हैं; फैक्ट्रियों में मशीनों के हमेशा घूमते चक्के पूरी तरह जाम हैं। हाट-बाज़ार अब यहाँ किसी रोज नहीं सजते और न ही नुमायशें या मेले ही भरते। मंदिरों में भजन और मस्जिदों में अजान की गूंजें कब की गुम हो चुकी हैं। स्कूलों और कालिजों के प्रांगण एक अरसे से सूने है। सब तरफ़ एक मुर्दनी सी छाई हुई है।
सुनते हैं, जब यहाँ पानी था तो एक शहर हुआ करता था।
आठ: जल ऑडिट
सर्व जल अभियान से सम्बंधित एक याचिका की सुनवाई करते हुए माननीय न्यायालय ने सरकार को निर्देशित किया कि वह शीघ्र एक जल नियामक तंत्र विकसित करे। साथ ही सरकार को आदेश भी दिया कि वह हर घर के जल खर्च का वार्षिक ऑडिट कराये। माननीय न्यायालय ने यह भी कहा कि शौच जैसे अत्याधिक महत्व के कार्यों पर खर्च की गई जल राशि को ऑडिट से मुक्त रखा जाए।
नौ: जलोपनिषद
पानी एक है, निराकार है, किंतु हम सांसारिक जीवों को यह टैंकर, टंकी, बाल्टी आदि के रूप में दिखता है। यह सब प्रकार के बंधनों से परे है मगर मोह माया के अज्ञान में पड़ कर प्राणी इसे तेरा-मेरा समझने लगते हैं व सिर-फुटौवल करते हैं।
दस: जलोपदेश
पानी के मिल जाने पर इतना अहंकार मत कर, न ही नल के चले जाने पर नाहक शोक कर। पानी एक आनी जानी चीज़ है। हमेशा खुले नल के नीचे रखी खाली बाल्टी को ही परम सत्य जान।
ग्यारह: दहेज
अरे, बहू क्या लाई दहेज में?
क्या ख़ाक लाई! इसने तो नाक ही कटवा दी।
पड़ोसियों के यहाँ क्या शानदार दो-दो सिंटेक्स की टंकियाँ और पानी खींचने वाली मोटर आई।... हमारे तो भाग ही फूट गए। कलमुँही, सिर्फ़ दो ड्रम पानी और ग्यारह खाली पीपे लेकर चल दी।
बारह: मल्टीलेयर वॉशिंग
( समय- खाना खाने के फौरन बाद, स्थान- वॉश बेसिन )
सुनती हो !सभी बच्चों को ले कर आ जाओ और हाथों को एक के ऊपर एक रख कर खड़े हो जाओ। हाँ ऐसे, अब मै धीरे-धीरे पानी डालूँगा, सभी के हाथ एक साथ धुल जायेंगे।
नोट- एक ही पानी से कुल्ला करने पर शोध अभी जारी है।
तेरह: नल घनत्व पैमाना
एक या कम घर प्रति नल- यानी कुलीन वर्ग
प्रति नल दर्जन भर तक घर- यानि साधारण वर्ग
प्रति नल दर्जन से अधिक घर- यानि निम्न वर्ग
( इस वर्गीकरण के दायरे से बाहर- यानि वंचित वर्ग)
चौदह: वरदान
जिस प्रकार द्वापर युग में अपने विश्व रूप के अलौकिक दर्शन हेतु आपने पार्थ को दिव्य चक्षु प्रदान किए थे प्रभु, उसी तरह आज इस अभागे को भी टैंकर की मोटी धार धारण करने के लिए एक भव्य टंकी प्रदान कर!
पंद्रह: शकुंतला
द्वार पर आए साधू को तत्क्षण सत्कार और भिक्षा न देकर तूने घोर अपराध किया है कन्ये! जा, मैं तुझे शाप देता हूँ...कि जिसके मोह में पड़ कर तूने मेरा अपमान किया है वह तुझे सदा-सदा के लिए भूल जाएगा।
नहीं, नहीं, साधुवर नहीं, इतना बड़ा दंड मत दीजिये मुझे इस छोटी सी भूल का। ...आप मुझे शिला बना दीजिये...मक्खी बना कर दीवार से चिपका दीजिये...मुझे सब मंज़ूर है, परंतु हे कृपानिधान, अपना दिया हुआ यह कठोर शाप वापस ले लीजिये। मैं बावरी पिया के ध्यान में नहीं, पानी के ध्यान में थी जो तीन रोज़ से नहीं आया था।
ठीक है...पर साधु की ज़ुबान से निकले वचन कभी खाली नहीं जाते। जा! दूरदर्शन पर प्रसारित टैंकर के संपर्क नंबर देख कर तू यदि फ़ोन करेगी तो तेरे घर पानी आ जाएगा।
सोलह: डायनासोर
पापा, पापा, ये खंडहर से कैसे हैं? कौन से ज़माने के हैं ये? बताओ न पापा।
बेटा, लोग इन्हें वाटर पार्क कहा करते थे। सदी के शुरू में पानी का संकट क्या आया कि ये चलन से बाहर हो गए। पुरातत्व विभाग ने इन्हें जल स्मारक घोषित कर पर्यटकों हेतु खोल दिया है।
सत्रह: टंकी वंदना
जल दे
पानी दायिनी जल दे
घर घर के टब, जग, मग तक
सब भर दे।
खुश्क कंठ
पपडाए लब
तरसे घट घट को झट
तर कर दे।
तीक्ष्ण ताप हर
शीघ्र शाप हर
धरती के कण कण को
निर्झर कर दे
पानी दायिनी जल दे।
जल दे।
अट्ठारह: टैंकर प्रस्थान पर
जलपति बप्पा मोरया
अगली पसर तू जल्दी आ।
बहुत ही सार्थक जल पुराण. जलोपदेश में " नल के नीचे रखी बाल्टी को ही परम सत्य मान।" "खाली बाल्टी" ठीक होगी.
ReplyDeleteधन्यवाद सुब्रमनियन साहब ...सुधार कर दिया है। इसी में ‘मान’ की जगह ‘जान’ भी ठीक लगा।
ReplyDeleteत्यागी सर!
ReplyDeleteसुधार वुधार की तरफ तो ध्यान ही नहीं गया.. बस आपके श्री चरणों का ध्यान आ रहा था कि कब दिखें और कब स्पर्श कर मैं अपना अगला जन्म सुधार सकूँ... अब तक की कहीं भी पढ़ी श्रेष्ठतम रचना.. आज कोई मजाकिया टिप्पणी नहीं.. सारे घर को सस्वर पाठकर सुनाया है! और विश्वास करें पहली बार इ स्पुरान का सपरिवार व् बंधू-बांधव आनंद उठाया!!
चरण स्पर्श!!
प्रस्तुत श्रीमदजलगीता के श्री कृष्ण रूपी रचियता त्यागी जी ने यह रचना हमारे जैसे आधुनिक अर्जुनों जोकि जल भरने के लिए हो रही लड़ाई "वह लड़ाई जो हमारे अपने ही भाईयों, पड़ोसियों व रिश्तेदारों में होने जा रही थी क्योकि वो भी जल भरने रूपी हस्तिनापुर पर अपना अधिकार समझते थे" से अवसादगृहीत व निराश हो अपनी बाल्टी व टम्ब्लर नीचे रख कर बैठ गया था, तब उवाची थी ... ISKAUN इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर जल कोनसिउसनेस॥ अति उत्तम ...
ReplyDeletevery relevent n interesting.
ReplyDeleteपानी को लेकर आपकी संवेदना का अनुभव है, बहुत गंभीर विषय को इतनी खूबसूरती से उकेरा है आपने कि कह नहीं सकते।
ReplyDeleteलफ़्ज़ मेरी भी पसंदीदा पत्रिका रही है।
ॐ जय जलदीश हरे..
ReplyDeleteस्वामि जय जलदीश हरे
भक्त जनों की बाल्टी दास जनों की बाल्टी
देखे कब तू भरे
ॐ जय जलदीश हरे
सहज, सटीक, सार्थक, सामयिक एवं सराहनीय...
आपका धन्यवाद..
त्यागी साहब, हम पुराने कदरदान और हमारे साथ ही ये जुलम - बहुत नाईंसाफ़ी!! हमारा कमेंट भी शायद फ़िरौती वाले खाते में गया हुज़ूर, स्पैम कमेंट्स चैक कीजियेगा जरा, विलुप्त जल की भाँति कहीं संरक्षित मिल जाये शायद:)
ReplyDeleteमज़ेदार! :)
ReplyDeleteसलिल भाई, क्या कहूँ आपने तो मेरी बोलती ही बंद कर दी!... डरता हूँ कि इतनी तारीफ़ कहीं मेरा हाजमा न बिगाड़ दे!! मेरा सौभाग्य कि आप सब को लेख पसंद आया। आपका तहे दिल से शुक्रिया!
ReplyDeleteवाह, अदा जी आपकी टिप्पणी भी निराली है!...क्या सुर में सुर मिलाया है!! आपका आभार!!
ReplyDeleteSalil ji ka comment padh k to mera bhi dil baag baag ho gya :)
ReplyDeleteपानी-पानी करती पोस्ट।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ! मरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteYou’ve gone to a lot of effort in researching and writing this article. I share your viewpoints on this topic and appreciate your interesting thoughts.
ReplyDeleteFrom Great talent
Simply Awesome Script for a Colorless Watery Truth!! Hriday Jal Jal Ho Gaya.......
ReplyDelete...aur hamara doosron ke jal bhare nal ko dekh kar jal gaya!!
ReplyDelete