इधर देश में कोरोना वाइरस चढ़ा
आ रहा है, तो उधर दसों दिशाओं से तरह-तरह की एड्वाइज़री बरस
रहीं हैं। लिहाज़ा देश के नागरिकों की जान हलकान है। टीवी चेनल, फेसबुक,
व्हाट्सएप, अखबार, टेलीफोन और न जाने किन-किन माध्यमों से आठों पहर एक
के बाद एक एड्वाइज़री धकेली जा रही हैं। एड्वाइज़री का यह वायरस कहाँ-कहाँ से होता
हुआ जब हम तक पहुँचता है तब तक यह एक बिलकुल ही नया रूप धर लेता है,
ठीक नए कोरोना वायरस की तरह! जनता की सेहत की चिंता में एक घुली लेटेस्ट एड्वाइज़री
में कहा गया है कि काम करने वाले लोग दफ़्तर न जाएँ तथा जहां तक हो सके ‘वर्क
फ़्रोम होम’ ही करें। इस एड्वाइज़री की मार्फ़त पता चलता है कि
हमारी सरकार देश की जनता को अगर बेवकूफ़ नहीं तो बहुत भोला भाला जरूर समझती है। इस एड्वाइज़री
के ज़रिए वह देश के लोगों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश करती दीख पड़ती है कि दफ्तरों
में लोग वाक़ई काम करते हैं। जबकि हर कोई जानता है कि दफ्तरों में अक्सर लोग हाजिरी
लगा कर घर का बिजली का बिल भरने, बच्चों की स्कूल की फीस जमा कराने या पत्नी को शॉपिंग
कराने निकल जाते हैं! किसी मजबूरी के चलते यदि उन्हें कभी कार्यालय में रहना भी
पड़े तो अपनी सीट पर हरगिज़ नहीं पाये जाते। वरन इन्हें अत्यधिक आवश्यक और
महत्वपूर्ण बैठक के बहाने किसी वरिष्ठ अफसर की मेज़ के गिर्द इकट्ठा होकर चाय की
प्याली पर हंसी ठठ्ठा करते हुए देखा जा सकता है। ऑफिस समय में भी ‘वर्क फॉर होम’
करने वाली प्रजाति से ‘वर्क फ़्रोम होम’ की उम्मीद रखना ऐसा ही है जैसा:
हमको उनसे है वफ़ा की उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है।
किसी से हाथ मिला कर मिलने के बदले दूर से नमस्ते करने की
एड्वाइज़री जैसे ही जारी हुई तभी से तमाम टेलीविज़न
चेनल, फेसबुक, वाट्स एप्प और अखबार यह बताने पर पिले पड़े हैं कि किस
तरह भारतीय संस्कृति के सहारे कोरोना से चुटकियों में जंग जीती जा सकती है। हाथ
मिलाने के विदेशी रिवाज की तरह कोरोना जैसी महामारी भी बाहरी सभ्यताओं (या कि
असभ्यताओं) से ही आई है। कहा जा रहा है कि कोरोना जैसी बीमारी से लड़ना है तो हमें
हाथ मिलाने के बजाय नमस्ते अपना कर भारतीयता की ओर लौटना चाहिए। यदि भूल से किसी
को छू बैठें तो तत्काल हाथों को साबुन के साथ अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। इस तरह
कोरोना के वायरस से पीछा छुड़ाया जा सकता है। हाथों को धोने को लेकर भी अलग-अलग
एड्वाइज़री प्रसारित की जा रही हैं- मसलन कि हाथों को यूं धोना चाहिए वूं नहीं,
अलां चीज़ से धोना चाहिए फलां चीज़ से नहीं, इतनी देर तक धोना चाहिए उतनी देर तक नहीं,
इतनी बार धोना चाहिए उतनी बार नहीं। हाथ धोना न हुआ मंगल यान की ट्राजेक्टरी हो
गया कि अपने परिपथ से बाल भर भी विचलित नहीं होना चाहिए। मेरा मानना है कि ऐसी एड्वाइज़री
जारी करने वाले आधे-अधूरे विद्वान भारतीय संस्कृति को शायद ही पूरी तरह से
समझ पाये हैं। उन्हें मालूम नहीं कि दूसरी सभ्यताएँ जिस वक़्त दुधमुंही अवस्था में
थी तभी से भारतीय संस्कृति में किसी भी ऐरे गैरे से संपर्क हो जाने पर विधि विधान
के अनुसार सम्पूर्ण स्नान करने का नियम रहा है। आज जो लोग एक दूसरे से एक मीटर
फासले पर रहने का ज्ञान बाँट रहे हैं वे नहीं जानते कि भारत की महान संस्कृति में
सनातन काल से ही इन लोगो की परछाई तक का अपने ऊपर पड़ जाना संक्रमण ही नहीं अपितु
अशुभ भी माना जाता रहा है। छः फुट की खाट के सिरहाने यदि कोई संभ्रांत बैठा हो तो संक्रमित
अर्थात अपवित्र व्यक्ति को पैताने पर भी बैठाने का प्रावधान नहीं था वरन उसे ठेठ
भू पर बिठाया जाता था। यानि बहुत पहले से ही हम आदमी को दो मीटर दूरी पर ही नहीं बल्कि
अपने से दो फुट नीचे रखने के हिमायती रहे हैं। इतने जागरूक देशवासियों को भला कोरोना
से क्या डरना!!
एड्वाइज़री की मार हम पर ही नहीं, सरकार पर भी है। सरकार जो
है वह दो पाटों के बीच में बुरी तरह पिस रही है और एकदम लाचार नजर आ रही है। एक
तरफ तो वे लोग हैं जो जारी की गई किसी न किसी एड्वाइज़री को वापस करवाने पर अड़े हुए
हैं, तो वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अभी तक जारी नहीं की
गई एड्वाइज़री को तत्काल जारी करवाने पर
तुले हुए हैं। खबर आ रही है कि अखिल भारतीय चौर्य संघ के एक डेलिगेशन ने
प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में मांग की गई कि सरकार बुजुर्गों के चौबीस
घंटे सातों दिन घर में रहने की एड्वाइज़री को तत्काल वापस ले वरना उनके परिवारों के
फाके हो जाएंगे। यदि शीघ्र ऐसा नहीं हुआ तो वे कोरोना से किसी तरह बच भी गए तो भूख
से जरूर मारे जाएंगे। दूसरी ओर यह भी खबर है कि देवों/ देवियों के एक उच्च शक्ति
शिष्टमंडल ने नर श्रेष्ठ श्रीमान प्रधानमंत्री जी से मुलाक़ात की है। शिष्टमंडल ने
शिकायत की है कि धर्म के मामलों में टांग नहीं अड़ाने की नीति (चुनावी मौसम के
अलावा) के चलते सरकार मंदिर मस्जिद के कपाट बंद कराने की एड्वाइज़री जारी करने से
कतरा रही है। दुनिया जानती है कि भक्तों की सहूलियत को देखते हुए सरकार हर साल
सर्दियों का मौसम आते ही बर्फानी बाबा के कपाट बंद करवाती रही है। कोरोना के बढ़ते
मामलों को देखते हुए मनुष्यों की तरह सभी देवी देवताओं में भी हड़कंप मचा हुआ है
किन्तु बेपरवाह सरकार उनके स्वास्थ्य की अनदेखी कर अपनी आँखें मूँद कर बैठी है। ऐसे
में उन्हें भय है कि कल कोई कोरोना पॉज़िटिव भक्त अगर किसी एक देवी/ देव के चरण छू कर
निकल गया तो तैंतीस करोड़ देवों के पूरे कुनबे में वायरस को फैलने से रोकना नामुमकिन
हो जाएगा। इससे पहले कि पानी सर के ऊपर निकल जाए सरकार को अविलंब एड्वाइज़री जारी कर
मंदिर मस्जिद गिरजे आदि सभी धर्मस्थलों के कपाट तत्काल अनिश्चित काल तक के लिए बंद
करा देने चाहिए।
जिस रफ़्तार से भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है,
उस से अधिक तेजी से एड्वाइज़री जारी की जा रही हैं। अभी 22 मार्च को सुबह 7 से रात
9 बजे तक जनता कर्फ़्यू लागू करने की एड्वाइज़री को ही लें। यह एड्वाइज़री अकेले नहीं
आई बल्कि साथ में एक और एड्वाइज़री ले कर आई। यही की कोरोना वीरों के सम्मान में
शाम 5 बजे सब अपनी-अपनी बालकनी में निकल कर 5 मिनट तक श्रद्धानुसार ढ़ोल-मंजीरे,
घंटे-घड़ियाल अथवा थाली-ताली बजाएँगे। जो मूढ़ मगज़ इस एड्वाइज़री को इटली से आयातित
बता रहे हैं, उन्हें मैं साफ कर दूँ कि यह एक ठेठ देसी और सनातन
परंपरा है। बच्चे-बच्चे को पता है कि आदि काल से ही हम मास्टर लोग विद्यार्थियों का
हौसला बढ़ाने के लिए पाठशालाओं और मदरसों की बाल सभा (एसेम्बली) में ताली पिटवाते
रहे हैं! वैसे थाली, ताली पिटवाने की यह रस्म कर्फ़्यू की समाप्त के
उपरांत रात 9 बजे भी निबाही जा सकती थी, मगर 9 बजे शायद इसलिए नहीं रखी गई ताकि उत्साहपूर्वक
थाली ताली और घंटे घड़ियाल पीटते हुए लोगों की फोटूएं जबर्दस्त आ सकें। खैर! शाम 5
बजे मंत्री-संत्री, दरबारी और प्रजा सभी को सुध बुध खो कर घंटे घड़ियाल,
थाली-ताली बजाते देख कर मुझे डर लग रहा था कि अगर सीमा पर हमारी फौज भी ऐसे ही भाव
विभोर हो कर ताली-थाली पीटने में लग गयी होगी तो पाकिस्तान ने अपने सारे कोरोना
संक्रमित नागरिकों को चोरी छुपे बार्डर पार करा कर भारतीय सीमा में जरूर धकेल दिया
होगा!!
Solid
ReplyDeleteBahut badiya vyangya sir
DeleteJay ho prabhu🙏
ReplyDeleteजय हो! जय जय जय जय हो!
DeleteJay ho
ReplyDeleteवाह ....गज़ब .... इसे कहते हैं ... जागरूकता ... चाहे वायरस हो या अन्य छिपा दुश्मन सब पर निगाहें रहनी चाहिए ... ब्लॉग पर धमाकेदार शुरुआत का स्वागत है सर 😊😊💐
ReplyDeleteअच्छा तो ये लिखने में व्यस्त था लैपटॉप। पर काफी सच्चाई को बयां कर गया ये लेखन। वाह!
ReplyDeleteWah sir ji
ReplyDeleteSamay ka sadupyog
Maza aa gaya fir se aapka likha hua padkar
Thanks Nirmala
DeleteBashir Badra Sahab ne bahut pahale hi sher o shayri ke dwara kah diya tha ki
ReplyDeleteयूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो,
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो l
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से,
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो l
कोई शाम ना... हर शाम थोड़े ही! गले मिलना दूर की बात है, पास आने में करंट सा लगता है!!
DeleteYe hi lines main bhi likhne wala tha, bhaiya! Time zones ne pachhaad diya. Haha
Deleteसमय के अनुरूप शानदार अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार अनाम जी!
ReplyDeleteBahut badia sir
ReplyDeleteSo nice you read, dear
DeleteBaal baal bache. Advisory ka topic padhte hi mujhe laga tha ki kuchh tanj baal bachchon par bhi kase jayenge. Jo WhatsApp calls k zariye hidaayato ki chhadi lagaye pade hain. Vaise aap dono k liye ye anubhav naya hi hoga. Ab tak to aap/amma shikshak hone k naate gyaan pilaane mein maharathi rahe honge. Ab Coronavirus k chalte paasa paltaa sa nazar aa raha hai ki saari duniya ab aap dono ko gyaan baant rahi hain.
ReplyDeleteSahi...Ab ham moorkh bachchon se najar aa rahe hain!
ReplyDeleteCoro Na- Kuch kare Ya Na Kare ? But you did it Sir. Thoroghly enjoyed during this home confinement. K C Sahoo & family, Santiniketan
DeleteSo nice Sahoo ji...expect another post during lockdown period!
Deleteबहुत मजा आया पढ़कर !
ReplyDeleteमुफ्त की सलाह देने में हम सच में बहुत आगे हैं। दूसरी एक बात जो इन दिनों निरीक्षण में आ रही है वह यह कि मनुष्य तो सामाजिक प्राणी है ही परंतु हम भारतीय अति सामाजिक प्राणी हैं और भारतीयों को 'चल, देख के आते हैं क्या हो रहा है' की प्रवृति के चलते घर में बंद रखना महाकठिन कार्य है।
आभार मीना जी!
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ReplyDeleteअद्भुत और प्रेरणा से लबरेज।
ReplyDeleteनिःशब्द।
सादर प्रणाम आदरणीय...
ReplyDeleteआपने हमें तो सात समंदर दूर कर दिया!
ReplyDeleteपाँच दिनों तक यह सोचकर दूर रहा कि मुई ये बीमारी मुझे भी न लग जाए, आपके द्वार पर आते ही. अपने घर पर तो बरसों से ताला पड़ा है... और बड़े लोगों ने अब घोषणा की तो लगा अब तक तो मैं क्वारंटीन-वास से इन सभी विषाणुओं को झेलने की शक्ति प्राप्त कर चुका हूँ... ऐसे में गुरुदेव का आशीर्वाद लेने यहाँ आ धमका.
ReplyDeleteऔर अब तो अमरत्व का वरदान प्राप्त कर देश-सेवा में जुटा हूँ. न मुख पर कोई मुखोश है (जो कभी था ही नहीं, पारदर्शी हूँ) और न हाथों पर सोमरस का विलेपन... बस माथे पर माता का आशीष और आप गुरुदेव की शुभकामनाएँ लिये घर के कारावास से मुक्त हूँ... सनातन धर्म में आस्था रखते हुये कि "ख़ुदा के घर भी न जाएँगे बिन बुलाये हुये!"
आपके तेवर आज भी वही हैं और ठाकुर बलदेव सिंह होते तो आज पुन: निराश होते कि आज भी आपकी लेखनी में वही दम है और वक़्त की दीमक ने आजतक उसे खोखला नहीं कर सकी!
आपके यहां न आने तक अधूरापन लगता है...ये कीटाणु भले हैं,अब जा कर यह पोस्ट पूर्ण हुई। आप कर्तव्य पथ पर डटे रहो, आप को कुछ नहीं होगा! हां! घर रहते तो ब्लाग की तालाबंदी जरूर ख़त्म हो जाती!
Deleteबहुत बढ़िया विश्लेषण सर जी, दूसरी पारी का धमाकेदार बल्लेबाजी के साथ आगाज।
ReplyDeleteThanks sir
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