१- जीत का सामना
माथा तो मेरा तभी ठनक गया था, जब तुमने विदेशी जमीन पर पहली ट्राई सीरीज़ जीत ली थी। फिर मैंने अपने दिल को समझा लिया था कि यह तुक्का भी तो हो सकता है! किंतु एक के बाद एक, पाँच सीरीज़ में जीत, वो भी घरु मैदानों के इतर। यह सब तो संयोग नही हो सकता। अब तो मेरा शक यकीन में बदल गया है कि परदेस में रंगरेलियां मनाने को जरूर तुमने गोरी चमड़ी वाली मेरी सौतें पाल रखी हैं । चूल्हे में जाए मरी ऐसी जीत, और ऐसा किरकेट! कहे देती हूँ, कल ही सन्यास ले लो वरना मेरा मरा मुँह देखो।
२- हार के पार
चैम्पियंस ट्राफी के एक अहम् मैच में पहले नंबर पर काबिज़ भारत की पाकिस्तान के हाथों करारी हार पर बवाल खड़ा हो गया है। आरोप है कि मैच में एकाधिक अनफिट खिलाड़ी खिलाये गए थे। एकाधिक ही क्यों? मैं तो कहूँगा कि सारे के सारे खिलाड़ी ही अनफिट थे। यूँ देखा जाए तो इसमे खिलाड़ियों का कुछ दोष भी नहीं है। हिंदुस्तान जैसे देश में जहाँ चित्त कि वृत्तियों के निरोध का पाठ घुट्टी में पिलाये जाने का रिवाज़ रहा हो, वहां आख़िर जीत के लिए फिट खिलाड़ी पैदा भी कैसे हो सकते हैं? तो क्या हम भारतवासियों के भाग्य में पराजय के अलावा कुछ भी नहीं बदा है? नहीं, ऐसा नहीं है - दो तीन रास्ते हैं। अव्वल तो छद्म राष्ट्रवादी इजाजत दें तो कोच, मेंटल कंडीशनर, चीयर लीडर्स की तरह ही फिट खिलाड़ी भी आयात किए जा सकते हैं। मगर देशभक्ति कुछ ज्यादा ही अंगडाई ले रही हो तो खिलाड़ियों की स्नायु-दुर्बलता दूर करने हेतु जैतून का तेल, शिलाजीत या स्वर्ण- भस्म सरीखे देसी नुस्खे आजमा कर देखे जा सकते हैं। फायदा महसूस न होने की सूरत में टीम को एक सेक्सोलोजिस्ट की सेवाएं तो दी ही जा सकती हैं, जो उपलब्ध घरेलू अनफिटों में से ही सर्वाधिक फिट खिलाड़ी चुनने में हमारी मदद कर सके। हाँ! टीम में चयन के दावेदार उम्र-दराज खिलाड़ियों की फिटनैस पर खास निगाह रखने की जरूरत है, क्योंकि उम्र ढलने से कुदरती तौर पर कमजोरी आ कर छा जाया करती है।
३-अनदुही प्रतिभा
३-अनदुही प्रतिभा
हिंदुस्तान के नौजवानों , मैं तुम्हारा आव्हान करता हूँ। हे युवाओं! दुनिया को दिखा दो, कि तुम्हारे होते किसी के लिए भी देश की नाक के साथ छेड़-छाड़ करना मुमकिन नहीं। सर्कुलर रोड पर शाम के झुटपुटे में पार्क मोटर सायकिलों की आड़ में खड़े बेखबर आलिंगनबद्ध जोडों, जागो! और स्वयं का मोल पहचानो, पहचानो की तुममे देश को जिताने की अकूत क्षमता है। जमाने की निगाहों से ओझल हो, बुद्धा गार्डन की सूनी झाडियों के तले लुक-छिप कर काम-क्रीडा में रत प्रेमी युगलों! तुम्हे तनिक भी अहसास नहीं कि तुम अपने साथ-साथ राष्ट्र की भी प्रतिभा निखारने में किस कदर जी-जान से जुटे हो। तुम्हे नहीं पता तुम क्रिकेट के आसमान के उभरते नक्षत्र हो,विश्व कप
के संभावित हो, भावी टीम के कर्णधार हो। व्यर्थ का संकोच और लोक-लाज त्याग कर अपनी साधना का बेधड़क और खुल्लम-खुल्ला अभ्यास करो ताकि लोगों की नजरों में आ सको। .....तभी तो इने-गिने चेहरों में से ही उठा-गिरा कर टीम खड़ी करने की कवायद में लगे चयनकर्ताओं को पञ्च-तारा होटलों के वातानुकूलित कक्षों से बाहर निकाल अपनी ओर खींच सकोगे। श्रीकांत और उनकी मण्डली को भी चाहिए कि वे गेंद ओर बल्ले से आगे जा कर बिखरी हुई कुदरती प्रतिभा को सहेजें , जिसे क्रिकेट का अल्पकालीन कोर्से करा कर विश्वकप की जंग में उतारा जा सके।
How very Imaginative !! Awesome !!
ReplyDeletehaha.. quickie practice has a new meaning now ;)
ReplyDeleteZabardast!!
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