Sunday, November 8, 2009

भाई दूज पर तारी सवारी और सुगम टीका-करण की चंद तरकीबें जुदा

इस साल भाई दूज पर मेरा भी गाँव जाने का योग- पाठक ही बता पाएंगे कि 'सु' या 'दु'- हुआ। देखता क्या हूँ कि सुबह से ही सड़क पुल्लिंग भरपूर वयस्कों, वयस्कों और अल्पव्यस्कों से पटी हुई है। देश की आधी आबादी शेष आधी आबादी से टीका कराने को यूँ उमड़ रही है जैसे किसी ज़माने में आजादी के परवानों की टुकडियां सड़कों पर निकल पड़ती थी। जल्दी ही हमने भी बाकियों की तरह सड़क पर डेरा डाल दिया। करवा चौथ पर चाँद देखने को उतारू सुहागिन की तरह हम किसी सवारी वाहन की एक झलक पाने को रह रह कर सड़क की मंझधार में कूदते। दूर सड़क और आसमान के संधि-स्थल से जो वाहन भ्रूण उभरते, उनकी बढ़त पर लगातार नजर गडाये रखते। जब वे इतनी नजदीक आ चुके होते कि अंग-प्रत्यंग विकसित कर कोई शक्ल अख्तियार कर सकें तो वह शक्ल अमूमन किसी कार, ट्रक, ट्रेक्टर, ट्रैक्स अथवा अनुबंधित बस की होती। हमारी घनघोर तपस्या से किंचित प्रसन्न हो कर कभी-कभार परम पिता हमारी ओर टेंपो आदि धकेल देता। उसे देख कर ही अपना कलेजा मुंह को आ जाता क्योंकि उस पर चढ़ कर सफर करना किसी सर्कस में करतब दिखाने से कम न होता। छप्पन गोधन पुजवा चुके हमसे इस उम्र में खतरों के खिलाड़ी बन जाने की उम्मीद रखना हमारे साथ नाइंसाफी होता। दुपहर होने को आई, भाई-भतीजों में जो भाग्यवान थे, गंतव्य पर पहुँच कर मुंह मीठा करा चुके, मगर हम बस सड़क के किनारे से सड़क के मध्य के बीच दोलक की तरह गति करते ही रह गए।
कोई चारा रहते न देख, हमने पास के शहर में ट्रेवल्स वालों से संपर्क किया। पता चला कि शहर की तमाम टैक्सियाँ पहले ही बुक हो चुकी हैं। कुछ जो बची हैं वे बुक नहीं हो सकती चूँकि उनके पुरूष ड्राईवर टीका कराने हेतु गमन कर चुकें हैं। इसी बीच मौका ताड़ कर कुछ ट्रैक्टर- ट्रोली मालिकों ने बड़ी चतुराई से अपने वाहनों को टीकाच्छुकों को इधर से उधर धोने में जरूर जोत दिया था। परन्तु उनकी सेवाएं इस समय लेने से तो दीया-बत्ती तक भी पहुँच पाना मुमकिन न होता। झक मार कर मैंने पास पड़ा डंडा उठाया और तडातड मन को मार दिया। मन बेचारा एक कोने में बैठकर सिसकने लगा, मैं भी उसी कोने में बैठ गया।
बैठ तो गया, मगर चिंतन को तो मारा नहीं था चुनांचे वह नहीं बैठा। नाथ-पगहा खींच फिर टीके की दिशा में दौड़ने- मचलने लगा। मैंने झोले में से तरकीबों को उठाया और उन्हें आपस में भिड़ाने लगा। जो स्वर्ग नहीं सिधारी.... उनमे से कुछ प्रस्तुत हैं। आने वाली संततियां उन्हें काम में लेना चाहें तो माबदौलत को कोई उज्र नहीं होगा।
पहली तरकीब- भारतवर्ष में सभी प्रमुख पर्व तिथियों पर पड़ते हैं। अक्सर कैलेंडर में दो तीज, दो अमावस, दो अष्टमी, दो पूर्णिमा आदि होते हैं। यह महज संयोग नहीं है। यह इस बात का सबूत है कि हमारे पुरखों ने आदि काल में ही मात्र एक तिथि पर तीज-त्यौहार पड़ने की दिक्कतों को सफलतापूर्वक भांप लिया था। इसलिए अपनी सुविधानुसार पर्व मनाने का विधि-विधान वे पहले ही कर के गए थे। किंतु में ठहरा उनके बलशाली कन्धों पर आरूढ़ उनका अर्वाचीन उत्तराधिकारी, सो उनसे ज्यादा दूरअंदेशी तो मुझे होना ही था। मेरा युग-प्रवर्तक सुझाव है कि धनतेरस से शुरू कर दूज तक आपसी समझ से किसी एक दिन यह त्यौहार मना लिया जाए तो दुनिया को भारी आप-धापी से बचाया जा सकता है।
दूसरी तरकीब- दो दूरस्थ भाई अपनी प्रिय बहनों की अदला-बदली कर लें, यानि 'सिस्टर स्वापिंग'। मैं तुम्हारी बहन से जो यहाँ मेरे गाँव में है टीका करा लूँ, बदले मैं तुम मेरी बहन से वहीं अपने गाँव में टीका करा लो। ठीक वैसे ही, जिस तरह दो कर्मचारी 'म्यूचुअल ट्रान्सफर' करा लेते हैं। इससे टीका-करण में सुगमता तो होगी ही, साथ ही राष्ट्रीय खजाने पर पड़ने वाला बोझ भी कुछ कम हो सकेगा।
तीसरी और आखिरी तरकीब - सर्व ज्ञात तथ्य है कि दूर बसे भाइयों को प्रतिवर्ष बहनें डाक द्वारा राखी पहुँचाती हैं। इसके एवज में भाई लोग
भी अपना आशीर्वाद और स्नेह मनीऑर्डर द्वारा भेज कर निश्चिंत हो जाते हैं। मुझे कोई वजह दिखाई नहीं देती कि इसी माकूल व्यवस्था को रोली-टीका के लिए भी लागू न किया जा सके। टेलेफोन, ई -मेल के हाथों बुरी तरह पिटे डाक विभाग के स्वास्थ्य के लिए भी यह गुणकारी होगा। अलावा इसके, मेरे जैसों के मस्तक भी बिन टीका सूने नहीं रहेंगे।

4 comments:

  1. best tarkeeb mujhe pehli wali lagi.. har tyohaar 2-2 hone k peeche meine socha nahi tha aisa bhi reason ho skta hai :)

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  2. Hanu Agar tu Papa jaise sochtaa toh tu likh raha hota :)

    Lovely thoughts !

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  3. sister swaping mein problem hai, bina baat ke parayi istree ko behen bana padega, no...not a good idea

    baaki dono tarkeeb badhiya hain

    tauji do chaar paise humein de dena, tika to hum laga denge, ghar pe aake

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  4. Good morning sir - is vast jindgi me time and mony saving ka achcha idea hai.

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