रोज-रोज की लूटपाट, गाली-गलौच और हाथापाई की घटनाओं से आजिज़ आ कर उन्होंने बेमुद्दत हड़ताल पर जाने की धमकी दे डाली । नज़दीक आते चुनावों के वक़्त जनता में रोष फूटने के डर से सत्ता के गलियारों में हड़कंप मच गया। मुख्यमंत्री के निवास पर ताबड़तोड़ बुलाई गई कैबिनेट की आपात बैठक में उनकी प्रमुख मांगें मानते हुए पानी के प्रत्येक टैंकर पर लालबत्ती और हूटर लगाने तथा उसके साथ स्वचालित हथियारों से लैस पैरामिलिट्री फोर्स के चार मोटरसाइकिल सवारों के विशेष दस्ते की तैनाती की फौरन मंजूरी दे दी गई।
Tuesday, June 23, 2009
तिथि का रहस्य
हाल ही में मैंने एक नितान्त उपेक्षित विषय पर शोध किया है -यही की रचना के अंत में या ठीक पहले हर रचनाकार आख़िर दिन अथवा दिनांक या दोनों क्यों लिख छोड़ता है। मैं यहीं पर नहीं रुका बल्कि मशहूर रचनाओं की तिथियों पर अंधाधुंध और ज्यादा घनघोर शोध सम्पन्न कर कई महत्वपूर्ण निष्कर्षों तक भी पहुँच गया। इन्हीं में से एक निष्कर्ष में मैंने पाया कि गुलज़ार साहब ने अपने गीत ' दिल ढूँढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन.........' तथा दुष्यंत कुमार ने अपनी गज़ल ' कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए, कहीं ये शाम सिरहाने लगा के बैठ गए.....' जिस दिन लिखी थी वो पानी ना आने वाला दिन था।
Saturday, June 20, 2009
मुमकिन है जी उठो तुम,सृष्टि भी
लुटाने को अब बचा ही क्या है
इन्द्रदेव के पास
कब का खाली हो गया है उनका खजाना
देते-देते हो चुके हैं
वे अब राजा से रंक ।
हवियों को सीढियां बना कर भी
अब नहीं पहुँचा जा सकता जलधरों तक
यज्ञाहुतियों से पसीज कर भी
नहीं उतरेगा कुपोषित बादलों के
अंक से दो बूंद जल।
और कितने गहरे उतरोगे
धरती के भीतर तुम?
फ़िर हाथ भी क्या लगेगा वहां
जो तर कर सके सूखे हलक।
मेधा के बल पर
(खूब इतराते हो तुम जिस पर )
शायद ही कभी निकल पायेगा
प्यास का कोई मुकम्मल हल।
बस एक ही रास्ता है
गर लगा सको लगाम लालच पर
कर सको वामनी खुदगर्जी स्वाहा
और तोड़ सको कुदरत से छल का
सदियों से चला आ रहा सिलसिला
तो मुमकिन है इन्द्रदेव
फ़िर से हो उठें मालामाल
फ़िर नाच उठे ताज़गी हवाओं पर चढ़ कर
धरती से फ़िर फूट पड़ें अनजान सोते
आसमान से झमाझम बरसने लगे सुकून
और जी उठो तुम, तुम्हारे साथ सृष्टि भी।
इन्द्रदेव के पास
कब का खाली हो गया है उनका खजाना
देते-देते हो चुके हैं
वे अब राजा से रंक ।
हवियों को सीढियां बना कर भी
अब नहीं पहुँचा जा सकता जलधरों तक
यज्ञाहुतियों से पसीज कर भी
नहीं उतरेगा कुपोषित बादलों के
अंक से दो बूंद जल।
और कितने गहरे उतरोगे
धरती के भीतर तुम?
फ़िर हाथ भी क्या लगेगा वहां
जो तर कर सके सूखे हलक।
मेधा के बल पर
(खूब इतराते हो तुम जिस पर )
शायद ही कभी निकल पायेगा
प्यास का कोई मुकम्मल हल।
बस एक ही रास्ता है
गर लगा सको लगाम लालच पर
कर सको वामनी खुदगर्जी स्वाहा
और तोड़ सको कुदरत से छल का
सदियों से चला आ रहा सिलसिला
तो मुमकिन है इन्द्रदेव
फ़िर से हो उठें मालामाल
फ़िर नाच उठे ताज़गी हवाओं पर चढ़ कर
धरती से फ़िर फूट पड़ें अनजान सोते
आसमान से झमाझम बरसने लगे सुकून
और जी उठो तुम, तुम्हारे साथ सृष्टि भी।
Friday, June 19, 2009
जलोपदेश
पानी के मिल जाने पर इतना अहंकार मत कर, न ही नल के चले जाने पर नाहक शोक कर। पानी एक आनी जानी चीज़ है। हमेशा खुले नल के नीचे रखी बाल्टी को ही परम सत्य मान।
न्यूनतम साझा कार्यक्रम
*सीमा सुरक्षा बल की तर्ज़ पर जल सुरक्षा बल /नल सुरक्षा बल का गठन
*स्विस बैंकों में जमा जल राशियों का पता लगा कर देश में वापस लाना
*जमीन के अन्दर से जमीन के अन्दर दुश्मन की पेय जल पाइप लाइन पर अचूक वार करने वाले मध्यम दूरी के जल प्रक्षेपास्त्र का परीक्षण करना
*शासकीय कर्मचारियों को अपने घरों के लिए पानी भरने हेतु स्ट्रेटेजिक टाइम आउट की मंजूरी
*गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के लिए सस्ती दरों पर (एक रूपया प्रति ड्रम ) पानी मुहैय्या कराना
*स्विस बैंकों में जमा जल राशियों का पता लगा कर देश में वापस लाना
*जमीन के अन्दर से जमीन के अन्दर दुश्मन की पेय जल पाइप लाइन पर अचूक वार करने वाले मध्यम दूरी के जल प्रक्षेपास्त्र का परीक्षण करना
*शासकीय कर्मचारियों को अपने घरों के लिए पानी भरने हेतु स्ट्रेटेजिक टाइम आउट की मंजूरी
*गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के लिए सस्ती दरों पर (एक रूपया प्रति ड्रम ) पानी मुहैय्या कराना
Thursday, June 18, 2009
नल घनत्व पैमाना
एक या कम घर प्रति नल- यानी कुलीन वर्ग
प्रति नल दर्जन भर तक घर- यानि साधारण वर्ग
प्रति नल दर्जन से अधिक घर- यानि निम्न वर्ग
( इस वर्गीकरण के दायरे से बाहर- यानि वंचित वर्ग)
प्रति नल दर्जन भर तक घर- यानि साधारण वर्ग
प्रति नल दर्जन से अधिक घर- यानि निम्न वर्ग
( इस वर्गीकरण के दायरे से बाहर- यानि वंचित वर्ग)
मल्टीलेयर वॉशिंग
( समय- खाना खाने के फौरन बाद, स्थान- वॉश बेसिन )
सुनती हो !सभी बच्चों को ले कर आ जाओ और हाथों को एक के ऊपर एक रख कर खड़े हो जाओ। हाँ ऐसे, अब मै धीरे-धीरे पानी डालूँगा, सभी के हाथ एक साथ धुल जायेंगे।
नोट- एक ही पानी से कुल्ला करने पर शोध अभी जारी है।
सुनती हो !सभी बच्चों को ले कर आ जाओ और हाथों को एक के ऊपर एक रख कर खड़े हो जाओ। हाँ ऐसे, अब मै धीरे-धीरे पानी डालूँगा, सभी के हाथ एक साथ धुल जायेंगे।
नोट- एक ही पानी से कुल्ला करने पर शोध अभी जारी है।
जल ऑडिट
सर्व जल अभियान से सम्बंधित एक याचिका की सुनवाई करते हुए माननीय न्यायालय ने सरकार को निर्देशित किया कि वह शीघ्र एक जल नियामक तंत्र विकसित करे। साथ ही सरकार को आदेश भी दिया कि वह हर घर के जल खर्च का वार्षिक ऑडिट कराये। माननीय न्यायालय ने यह भी कहा कि शौच जैसे अत्याधिक महत्व के कार्यों पर खर्च की गई जल राशि को ऑडिट से मुक्त रखा जाए।
पानी के प्रकार
पानी के तीन भेद हैं। पहली प्रकार का पानी वह है जो स्वयं नलों में आ जाता है। दूसरी प्रकार का पानी मोटर आदि से जबरन खींच कर नलों में लाया जाता है। और तीसरी प्रकार का पानी वह है.....जो टैंकर-युद्ध में अपने घोर पराक्रम से प्रतिद्वंद्वियों को परास्त कर प्राप्त किया जाता है.
Tuesday, June 16, 2009
अथ श्रीमदजलगीता
जलक्षेत्रे नलक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः
बालका नर नारीश्चैव किमकुर्वत संजय।
(अर्थात, हे संजय, जल क्षेत्र यानि नल के मुहाने पर जल-युद्ध के लिए तत्पर बालकों, नर और नारियों ने क्या किया?)
बालका नर नारीश्चैव किमकुर्वत संजय।
(अर्थात, हे संजय, जल क्षेत्र यानि नल के मुहाने पर जल-युद्ध के लिए तत्पर बालकों, नर और नारियों ने क्या किया?)
अथश्रीजलगीता
जलक्षेत्रे नलक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः
बालका नरनारीश्चैव किमकुर्वत संजय।
(अर्थात, हे संजय, जलक्षेत्र यानि नल के मुहाने पर जल-युद्ध के लिए तत्पर बालकों, नर और नारियों ने क्या किया?)
बालका नरनारीश्चैव किमकुर्वत संजय।
(अर्थात, हे संजय, जलक्षेत्र यानि नल के मुहाने पर जल-युद्ध के लिए तत्पर बालकों, नर और नारियों ने क्या किया?)
Sunday, June 14, 2009
अदा-ए-नल
वो तेरा इस लहज़ा आना ...
कि एक लम्हे की झलक, फ़िर दूर कहीं खो जाना,
मुद्दतों तडपना।
जाने जानां...
वो तेरा इस लहज़ा आना।
कि एक लम्हे की झलक, फ़िर दूर कहीं खो जाना,
मुद्दतों तडपना।
जाने जानां...
वो तेरा इस लहज़ा आना।
जहर
अरे! अरे! क्या कर रहे हो? नीट पीओगे तो लीवर का सत्यानाश हो जाएगा। पानी में कुछ मिला क्यों नहीं लेते? सोडा, व्हिस्की, पेप्सी.... कुछ भी।
Saturday, June 13, 2009
जल मैनिफेस्टो
सदियों से समाज दो वर्गों में बँटा है। एक तरफ़ मुट्ठीभर जलवान कुलीन, तो दूसरी तरफ़ असंख्य जलहीन दीन। एक आकंठ सिंचित तो दूसरा ठेठ वंचित। दोनों वर्गों में जल संघर्ष अटल है। वंचितों ! एक जुट हो। जल पर कल जन- जन का हक़ होगा।
जलोपनिषद
पानी एक है, निराकार है, किंतु हम सांसारिक जीवों को यह टैंकर, टंकी, बाल्टी आदि के रूप में दिखता है। यह सब प्रकार के बंधनों से परे है मगर मोह माया के अज्ञान में पड़ कर प्राणी इसे तेरा मेरा समझने लगते हैं व सिर-फुटौवल करते हैं।
डायनासोर
पापा, पापा, ये खंडहर से कैसे हैं? कौन से ज़माने के है ये? बताओ न पापा।
बेटा, लोग इन्हें वाटर पार्क कहा करते थे। सदी के शुरू में पानी का संकट क्या आया कि ये चलन से बाहर हो गए। पुरातत्व विभाग ने इन्हें जल स्मारक घोषित कर पर्यटकों हेतु खोल दिया है।
बेटा, लोग इन्हें वाटर पार्क कहा करते थे। सदी के शुरू में पानी का संकट क्या आया कि ये चलन से बाहर हो गए। पुरातत्व विभाग ने इन्हें जल स्मारक घोषित कर पर्यटकों हेतु खोल दिया है।
Friday, June 12, 2009
ये जो एक शहर था
इस नगरी में अब कोई नहीं रहता - न कोई मानुस, न चौपाया और न ही परिंदा। सड़कें तो हैं मगर वीरान हैं; फैक्ट्रियों में मशीनों के हमेशा घूमते चक्के पूरी तरह जाम हैं। हाट-बाज़ार अब यहाँ किसी रोज नहीं सजते और न ही नुमायशें या मेले ही भरते। मंदिरों में भजन और मस्जिदों में अजान की गूंजें कब की गुम हो चुकी हैं। स्कूलों और कोलिजों के प्रांगन एक अरसे से सूने है। सब तरफ़ एक मुर्दनी सी छाई हुई है।
सुनते हैं, जब यहाँ पानी था तो एक शहर हुआ करता था।
सुनते हैं, जब यहाँ पानी था तो एक शहर हुआ करता था।
Thursday, June 11, 2009
टंकी वंदना
जल दे
पानी दायिनी जल दे
घर घर के टब, जग, मग तक
सब भर दे।
खुश्क कंठ
पपडाए लब
तरसे घट घट को झट
तर कर दे।
तीक्ष्ण ताप हर
शीघ्र शाप हर
धरती के कण कण को
निर्झर कर दे
पानी दायिनी जल दे।
जल दे।
पानी दायिनी जल दे
घर घर के टब, जग, मग तक
सब भर दे।
खुश्क कंठ
पपडाए लब
तरसे घट घट को झट
तर कर दे।
तीक्ष्ण ताप हर
शीघ्र शाप हर
धरती के कण कण को
निर्झर कर दे
पानी दायिनी जल दे।
जल दे।
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