Tuesday, June 23, 2009

तिथि का रहस्य

हाल ही में मैंने एक नितान्त उपेक्षित विषय पर शोध किया है -यही की रचना के अंत में या ठीक पहले हर रचनाकार आख़िर दिन अथवा दिनांक या दोनों क्यों लिख छोड़ता है। मैं यहीं पर नहीं रुका बल्कि मशहूर रचनाओं की तिथियों पर अंधाधुंध और ज्यादा घनघोर शोध सम्पन्न कर कई महत्वपूर्ण निष्कर्षों तक भी पहुँच गया। इन्हीं में से एक निष्कर्ष में मैंने पाया कि गुलज़ार साहब ने अपने गीत ' दिल ढूँढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन.........' तथा दुष्यंत कुमार ने अपनी गज़ल ' कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए, कहीं ये शाम सिरहाने लगा के बैठ गए.....' जिस दिन लिखी थी वो पानी ना आने वाला दिन था।

1 comment:

  1. mein kahunga ki ye aap ka charam hai!!
    ise padh k jitna maza aaya use bayaa krna na mumkin hai..
    lovely!! :D

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