Wednesday, May 12, 2010

ठंडी राख़

वे गत तीन महीनों से निलंबित चल रहे थे। मिलने पर हमने सहानुभूति जतानी चाही, कहा-आपके साथ बड़ा अन्याय हुआ! उपदेश की मुद्रा में बोले- जो भी होता है भले के लिए ही होता है। उत्तम शिष्य की भांति हमने जिज्ञासा प्रकट की, 'भला निलंबन से आपका क्या भला हुआ होगा?' बोले- मुझमे धैर्य नहीं था, इस वाकये से मैंने धीरज धरना सीखा। हमने कहा- ठीक है मगर आपको धीरज नहीं धरना चाहिए, बल्कि लड़ना चाहिए। 'क्या होगा लड़ कर?', उन्होंने प्रति प्रश्न किया। 'आपके दुश्मन जिन्होंने आपको फंसाया है उन्हें सबक मिलेगा , और क्या!' वे पुनः सूफियाना अंदाज़ में बोले-सच कहूँ मुझे कोई दुश्मन ही नज़र नहीं आता। हर कोई दोस्त ही दीखता है। हम पर उत्तर की गुंजायश ही न बची।
एक रोज़ रास्ते में टकर गए। हाथ में झोला था, शायद सौदा-सुलफ लेने जा रहे थे। हमने उत्साह में भर कर कहा, 'बधाई, आपकी बेटी का प्लेसमेंट हो गया।' सुन कर नहीं लगा कि उनके मुख मंडल पर पौ जैसा कुछ फटा हो या उनके अन्दर भी कहीं कोई बांछे खिली हों अथवा उनके शरीर के आयतन में जरा भी इजाफा हुआ हो। बराबर मुरझाये से बोले- प्लेसमेंट से क्या होता है, अपॉइंटमेंट लेटर मिले तब न । 'समय आने पर वह भी मिल जायेगा', हमने तसल्ली दी। ' आजकल कम्पनियाँ प्लेसमेंट तो कर लेती हैं पर नियुक्ति पत्र नहीं देती', उन्होंने रोना रोया। खैर हमने हिम्मत नहीं हारी, फिर पूछा - और आपका बड़ा बेटा कौन सी कंपनी ज्वायन कर रहा है, उसे तो अपॉइंटमेंट लेटर मिल गया न? 'पता नहीं, ये तो वही जाने।' हमने हैरत से कहा, 'आपने पूछा तो होगा?' 'नहीं भाई हम नहीं पूछते।' 'अच्छा उसने तो बताया होगा?' 'ना, उसने भी नहीं बताया। उसकी जिंदगी, वो जहाँ चाहे जाए-हमें क्या?' मैं सिहर उठा। इससे पहले कि मैं खुद राख़ के ढेर मै बदल जाऊं, मैंने वहाँ से खिसकने में ही भलाई समझी। उसी क्षण मुझे यह भी इल्हाम हुआ कि लोग ठंडी राख़ को नदियों में क्यों प्रवाहित कर देते हैं।

5 comments:

  1. ye bade pedon se prateet hote hain jo akela khada hai...shayad inke dil mein bojh bada hai..aaj akelapan unhe ghere hue hai.. :(

    bahut ache tareeke se sir aapne unki vyatha katha ka vivran dia..ek shan bhi dhyan nhi bhatka is post se..is mein vo amol palekar type simplicity hai but apna maksad bahut bakhoobi poora karti hai ye post :)

    ReplyDelete
  2. aakhiri pankti ka matlab mujhe samajh nahi aaya.. baharhaal aap ko khush hona chahiye ki aap k suputra aise nahi hain :)
    vaise mein smajh gya ki ye deen-dukhi kaun hain ;)

    ReplyDelete
  3. Nanak ji ne kaha tha ujad jao, Rakh hoti to kahte oodd jao. Baha dete hain yahi achchha hai.

    ReplyDelete
  4. आखरी लाईन में त आप कमाले कर दिए हैं… एकदम संतुलित लेखन...

    ReplyDelete