* कोई-कोई चालक इस अंदाज़ में गाड़ी चलाता है मानो स्वयं सिकंदर महान विश्व विजय के अभियान पर निकल पडा हो। अपने आगे चल रहे वाहनों को एक के बाद एक ओवरटेक कर पीछे छोड़ते वक़्त वह उसी अकड़, उन्माद और आनंद से भर उठता है जो एक चक्रवर्ती सम्राट छोटे-बड़े राज्यों को अपने राज्य में मिलाने और उनके शासकों को अपने अधीन करने पर महसूस करता है।
* कभी- कभी सड़क के बीचो-बीच पशु इस अदा से चलते हुए मिल जाते हैं गोया मिस इंडिया कंटेस्टेंट कैट वॉक पर निकले हों। पास आ कर होर्न बजने पर वे वैसे ही ठिठकते हैं जैसे सुपर मॉडल रैम्प के किनारे पर पलटने से पहले ठिठका करते करते हैं। हाँ! यह जरूर है कि ये ऐन वक़्त पर पलटने से इनकार कर देते हैं।
* कहीं- कहीं ज़रा अवस्था को प्राप्त हो कर सड़क अपना चोला ही छोड़ बैठती है। तब जिस प्रदेश में ट्रैफिक प्रवेश करता है उसे पीछे से देखें तो ऐसा लगे जैसे बाधा दौड़ धावक नियमित अन्तराल से हवा में उछल तो रहे हों मगर दौड़ न पा रहे हों अथवा कोई डोंगी समंदर कि लहरों पर बेबस सर पटक रही हो या फिर वाहन चालक जबरन ऊंट की सवारी का मज़ा लूट रहे हों।
* यदा-कदा भेड़ों का झुण्ड सड़क के एक ओर आपके सामने की तरफ से आ रहा होता है कि उसके लीडरान एकाएक सड़क पार करने का फैसला कर बैठते हैं। तब आमने सामने के वाहनों को उन्हें उतने ही सम्मानपूर्वक गुजर जाने देना पड़ता है जितने सम्मान से आम आदमी को मंत्रियों के लालबत्ती धारी गाड़ियों के काफिले को गुजर जाने देना होता है .
* कुछ खास सड़कें, जिन्हें लाड से बौंड सड़कें या बी आर टी एस सड़कें भी कहा जाता है सुगठित देहयष्टि वाली, धुली-पुंछी और लिपी-पुती होती हैं। इनका उपभोग करने पर आपको नाके पर महसूल (टोल) चुकाना पड़ता है। इसके उलट कुछ पहुँच मार्ग इस कदर ऊबड़-खाबड़ और जर्जर होते हैं कि आपका और आपके वाहन दोनों का भरपूर उपभोग कर लेते हैं।
* बीच-बीच में कबीरा के ज़माने की एकाध बेहद संकरी पुलिया मिल जाती है जिसमे दो (वाहनों) का समाना मुमकिन नहीं होता। लिहाज़ा पहले पार करने की जुगत में दोनों तरफ से आगे बढ़ आये चालकों की बीच पुलिया के मुठभेड़ हो जाती है। गुर्राहटों के समापन के बाद जिस पक्ष को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ता है वह खुद को पराजित जनरल सा लज्जित, पतित एवं कलंकित महसूस करता है।
Hehehe pehla chaalak toh main hoon :p
ReplyDeletereally..best of the best..ab tak ka best one..gaay wala to bahut mazedar tha.. :P
ReplyDeletesahi sthiti darshayi sadkon ki aur vaahan chaalkon ke..saahab meri gaadi badi to pehle mera hak banta hai...
ReplyDeleteवो गये
ReplyDeleteरफ़्तार में,
और आए
अखबार में,
सही लिखा आपने..बढ़िया है.
ReplyDelete_______________
'पाखी की दुनिया' में " एक दिन INS राणा पर"
sir jo aise gadi chalate hai unko photo khichane ka bahut shouk hota hai...isaliye hame unke arman pure karne me madad karni chahiye.kyon ki unki zindagi hamse kam hai .........rahi baat sadko ki to kuchh sadke to aisi hai jahan se surkshit nikal jaane par virta purskar mailna chahiye.
ReplyDeletefabulous sir....
excellent composition
ReplyDeleteThank you Doctor sahab!
ReplyDeleteSmitaji, last sentence of the comment is quite apt and impressive. Keep encouraging...!
ReplyDeleteआप त पूरा सड़क पुराण लिख दिए हैं..सड़क का कोनों जाती, प्रजाति अउर उपजाति नहीं छोड़े हैं आप... एक्के बात का जिकिर छूट गया बुझाता है.. बड़ा-बड़ा बंगला के सामने लोग पराइवेट इस्पीड ब्रेकर बना देते हैं ताकि आप अपना गाडी, जो निश्चित रूप से छोटा गाडी होगा, ओहाँ रोक कर उनका बंगला का छबि निहारे... भाई ताजमहल देखने के लिए आप टिकट लेते हैं... अउर ई जो मंगनी में आपको अपना २१वीं सदी का ताज महल देखा रहे हैं..बिना देखले कइसे पार हो जाइयेगा..
ReplyDeleteमजा आ गया त्यागी जी..बेजोड सब्जेक्ट चुने हैं आप उवाचाने के लिए !!
ब्लोगर जी, आपके चुटकी भरे अंदाज़ में टिपियाने का धन्यवाद!
ReplyDeleteyeh dilli ke sabhi honhar vaahan chalakon ko padhwana chahiye.. bahut khoob likha sir :)
ReplyDeleteraste me ek chand wali sadak mili thi, uska jikr chhut gaya.
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