मंगलवार का दिन था। हम सपत्नीक मित्र के घर पारिवारिक दौरे पर गए थे। ठन्डे पानी के सेवन से आवभगत के तुरंत बाद ही वे असल मुद्दे पर आ गए। उन्होंने कॉलोनी के पार स्थित शिव मंदिर की आरती की भव्यता और उससे मिलने वाले सुकून का मनभावन दृश्य खींचा, जिससे हम प्रभावित हुए बिना ही रहे। मगर पत्नी के चेहरे पर आ जा रहे भावों को ताड़ते हुए उन्होंने हमें आरती में शरीक होने का आग्रह कर ही डाला। चाहते तो नहीं थे, किन्तु किसी की इबादत में विघ्न का पाप हमारे सर न आये , सो उनके साथ हो लिए।
मदिर पहुंचे तो भक्त-गण हाथ जोड़े शिव वंदना में लीन थे। पत्नी और मित्र भी शामिल हो कर स्वर में स्वर मिलाने लगे। हम दूर खड़े झील का मनोरम दृश्य निहारने लगे। कोई दस मिनट गुजरे होंगे कि अचानक सब और सन्नाटा छा गया। मंदिर के एक कोने से एक पुजारीनुमा व्यक्ति टोकरी लिए प्रकट हुआ व भक्तों की और बढ़ा। हम तो इसी फिराक में थे कि कब प्रसाद मिले, कब हम फारिग हों सो झट से सब के पीछे जा खड़े हुए। बारी आने पर हमारी अंजुरी में पडितजी ने जो छोड़ा वह प्रसादम नहीं बल्कि पुष्प थे। पुष्प पा कर भक्त-भक्तिन अब दुगुनी श्रद्धा भाव से गायन करने लगे। हम प्रसाद के चक्कर में उल्लू बन गए। कम से कम पंद्रह मिनट खड़े रहने की कवायद तो हमने जरूर झेली होगी। खैर, पुष्प समर्पण के बाद पुष्पांजलि सम्पन्न हुई। तब मैंने गौर किया कि भक्तगण अजीबो-गरीब हरकतें करने लगे हैं। कई अपना माथा फर्श पर ठोकने लगे तो कोई-कोई मंदिर की दीवार को अपने हाथों और सर से ठेलता सा दिखाई दिया। पुरुष महिलाओं का एक दस्ता अपनी ही रौ में मंदिर का चक्कर काटने लगा। छिटपुट भक्तों को तो शंकर भगवान अर्ध नौकासन जैसा कुछ कराते नजर आये। इस तूफानी सत्र की समाप्तिके बाद सब अपने-अपने स्थान पर लौट आये। एक सज्जन ने श्रद्धालुओं को कोई पर्चा बांटना शुरू किया तो हमें लगा कि लो, फिर आरती शुरू होगी! हमारी और बढाने पर हमने कहा-हमारे पास चश्मा नहीं है। पास बैठा मित्र मंद-मंद मुस्कुराया, धीरे से बोला- ले लो, ले लो, प्रसाद के लिए है। हम सोच रहे थे कि आरती की प्रति होगी, हर एक के वाचन के लिए- एक बार फिर से बन गए।
आखिरकार भोलेशंकर प्रसन्न हुए, प्रसाद वितरित हुआ। औरों की देखा-देखी हमने भी एक चिरोंजी दाना मुंह में डाला और बाकी की पुडिया बना कर जेब में रख ली। सोचा- जैसे गंडा या तावीज़ को खाया नहीं जाता, शरीर पर धारण किया जाता है वैसे ही प्रसाद को भी जेब में रखना ही शुभ होता होगा!... मंदिर से लौटते वक़्त हमने मन ही मन संकल्प किया कि आइन्दा मित्र के घर जायेंगे तो ध्यान रखेंगे कि वह दिन मंगलवार या बृहस्पतिवार न हो।
CAT kaa vakiya hai kya ?? ;)
ReplyDeletebilkul!
ReplyDeleteBingo !! Main aur meri biwi bhi toh bhugtbhogi hain !! Aur fir jheel kaa ek poora round lagwaana :p
ReplyDeleteamps.. chacha murari padhenge to achha nahi lagega :P :P hehee..
ReplyDeletebest part.. jb aap kaagaz k liye apne chashma dhundhne lage..!! hahaa..
kaagaz wala mast tha :P
ReplyDeleteHanu : Padhnaa kya, yeh toh main unhein munh dar munh bhi kai baar keh chuka !! Add to Irony, biwi ki pehli CAT visit & she walked 2.5 kms in high heels (imagine nai nai bahu) !! Aur imagine Vinod chachaji saying, bas yeh toh raha ghar agle mod pe :P
ReplyDeleteHaha...Aaj to mujhe aur bhi hasi aa rhi hai jitna ki us din nhi aaya jab aap hum sabko suna rhe the...
ReplyDeleteI wish ke ye blog woh saare bhakt naa pade.....otherwise you can imagine aapake saath kya ho........
ReplyDeletewell fabulous.next time if you go to temple(?) don't forget to take your spects with you..........hahahaha.
Next time, it would not be my pehli aarti!
ReplyDeletebeman se kisi karyakram me shamil hone ka achchha chitran!
ReplyDeletebeman se kisi karyakram me shamil hone ka sundar chitran!
ReplyDeleteBehtareen varnan, Any way, Khud ko kahani ke mukhya kirdar ki roop mein accha laga.
ReplyDeleteye apka baddapan hai, vinod ji!
ReplyDeleteab nastik kahlane ka jokhim utha liya aapne............
ReplyDeleteaccha laga aapke blog par aakar .