Thursday, September 17, 2009

ख़बर की मौत

शहर के लोग मर रहे थे
हर शक्ल, हर मिजाज़
उम्र के हर पड़ाव पर
लोग बराबर मर रहे थे।
डर लगने लगा था
कि न जाने किधर से निकल मौत
कब हम में से किसी को ही न दबोच ले।
फिर कुछ रोज़ बाद लगा कि
मौत शहर छोड़ चुकी है
हर सिम्त निरापद है, हर ओर मौज है।
मगर यह ग़लत था
लोग अभी भी मर रहे थे
बदस्तूर मर रहे थे
और भी ज्यादा तादाद में मर रहे थे
पूरी ईमानदारी के साथ मर रहे थे।
यह जरूर है कि अब
खबरचियों कि भूख मर गई थी।

6 comments:

  1. tripti se tript nhi hua mein... kuch kami se reh gyi... thoda aur add kro.. nhi to milne pe aashya spashat krna ...

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  2. avtarji,thanks for your honest reaction!!title badal diya hai...dekhna kami dur hui ki nahi??

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  3. indore mein bom blast ho gaya hai kya?

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  4. tauji lagata hai ki khabaron ke baazaar mein bhi "law of diminishing returns" lagta hai, every additional khabar ke less interesting than the previous one

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